जिसके भाव प्रबल हैं परमात्मा सदैव उसके संग है- साध्वी विदुषी जाह्नवी भारती जी

जिसके भाव प्रबल हैं परमात्मा सदैव उसके संग है- साध्वी विदुषी जाह्नवी भारती जी
देहरादून। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की शाखा, 70 इंदिरा गांधी मार्ग, (सत्यशील गैस गोदाम के सामने) निरंजनपुर के द्वारा आज आश्रम प्रांगण में दिव्य सत्संग-प्रवचनों एवं मधुर भजन-संर्कीतन के कार्यक्रम का भव्य आयोजन किया गया। संस्थान के संस्थापक एवं संचालक ‘‘सद्गुरू श्री आशुतोष महाराज जी’’ की शिष्या तथा देहरादून आश्रम की प्रचारिका साध्वी विदुषी जाह्नवी भारती जी ने अपने प्रवचनों के द्वारा उपस्थित भक्तजनों को बताया कि अनन्य एकनिष्ठ तथा प्रबल सुन्दर भाव यदि एक भक्त के भीतर विद्यमान हैं तो भगवान एैसे भक्त से कभी भी दूर नहीं रहा करते सदैव उसके अंग-संग रहते हुए उसका कल्याण किया करते हैं। भगवान श्री कृष्ण एैसे ही भक्त के सम्बन्ध में वचन करते हैं कि, जो अनन्य भाव से मेरा ही चिन्तन किया करता है तथा पूर्ण रूप से मात्र मुझ पर ही आश्रित है एैसे भक्त का योग तथा क्षेम मैं स्वयं ही वहन किया करता हूं।
सन्त जब जीवन में आते हैं तब मनुष्य को वे उसके घर का पता बता देते हैं, यह कोई संसारिक घर नहीं बल्कि उसे दिव्य तथा स्थायी घर की बात है जहां इस जीवन यात्रा को पूर्ण कर प्रत्येक मनुष्य को जाना होता है, बसना होता हैं। ‘‘ब्रह्म्ज्ञान’’ प्रदान कर पूर्ण गुरू जीव को परमात्मा से मिलाकर इस अलौकिक घर का सुदृढ़ निर्माण किया करते हैं। गुरू दरबार ही वह वास्तविक ठिकाना है जहाँ सत्संग की वर्षा नित्य होती रहती है, इसी वर्षा में भीगकर मानव अपनी मंज़िल तक पहुंच पाता है।
सद्गुरू अपने शिष्य को राह दिखाने, प्रकाश रूप में सदा साथ रहते है- साध्वी ममता भारती जी
गुरू पल-प्रतिपल मात्र अपने शरणागत शिष्य के उद्धार हेतु प्रयत्नशील रहा करते है, संघर्षों की घोर तपिश में जब शिष्य तपता है तब सद्गुरू ओंस की बूंद बनकर उसे तृप्त करते हैं, अपनी कृपा वर्षा से उसकी तपिश को शान्त किया करते है। सद्गुरू स्वयं एक दिव्य प्रकाश पुंज हुआ करते है, जो शिष्य उनके पीछे-पीछे चलता है वहीं अंधकार भरे जीवन में लक्ष्य की प्राप्ति किया करता है।
सद्गुरू शिष्य की पीड़ाओं से निजात दिला उसे अपनी कृपा हस्त तले सुख तथा शांति प्रदान किया करते हैं। गुरू के दिव्य संकेतों को एक शिष्य तभी पकड़ पाता हैं जब वह पूर्ण निष्ठा व समर्पण से गुरू की शरणागत् हुआ करता है। साध्वी जी ने सत्संग-प्रवचनों के मध्य परहंस योगानन्द जी तथा उसके शिष्य का प्रसंग भी रेखाकिंत करते हुए बताया कि ब्रह्म्ज्ञान के प्रचार-प्रसार से जग का कल्याण करते हुए जब शिष्य बीमार हुए तो कई चिकित्सकों से ईलाज होने पर वह स्वस्थ तो हुए मगर गुरू के प्रति संशयों ने शिष्य को मानसिग रोगी बना दिया, सद्गुरू रेडियों होते है जो तंरगे प्रसारित करते है शिष्य वही सफल है जो रेडियो की तंरगों को पकड़कर उसी के अनुरूप चले, यह संशय बिना नियमित साधना के ही शिष्य के जीवन में दस्तक देता है।
प्रसाद का वितरण कर साप्ताहिक कार्यक्रम को विराम दिया गया।