ग्रीष्म के गीत

ग्रीष्म के गीत

नरी लाल निर्वेद
श्रीनगर गढ़वाल।।
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दिल है तपता
साँसें तपतीं
और तपते हैं पांव
ग्रीष्म की इस दुपहरी में
तपता है हर गांव।

इस तपती दुपहरी का
कोई नहीं है ठौर
हर चिंता से मुक्त हों बैठें
पीपल की छाँव।

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पानी बरसे आग बरसे
कोई नहीं परवाह,
पोखरों पर बच्चे खेल रहे
बनाकर कागज की नाव।

तन है गिरवी
मन है गिरवी,
गिरवी है हर सांस
बंधुआ रहके
उम्र कटी अब
जीवन है इक दांव।
नरी लाल निर्वेद
श्रीनगर गढ़वाल।।

प्रस्तुति -गबर सिंह भंडारी श्रीनगर गढ़वाल