ग्रीष्म के गीत
नरी लाल निर्वेद
श्रीनगर गढ़वाल।।
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दिल है तपता
साँसें तपतीं
और तपते हैं पांव
ग्रीष्म की इस दुपहरी में
तपता है हर गांव।
२
इस तपती दुपहरी का
कोई नहीं है ठौर
हर चिंता से मुक्त हों बैठें
पीपल की छाँव।
3
पानी बरसे आग बरसे
कोई नहीं परवाह,
पोखरों पर बच्चे खेल रहे
बनाकर कागज की नाव।
४
तन है गिरवी
मन है गिरवी,
गिरवी है हर सांस
बंधुआ रहके
उम्र कटी अब
जीवन है इक दांव।
नरी लाल निर्वेद
श्रीनगर गढ़वाल।।
प्रस्तुति -गबर सिंह भंडारी श्रीनगर गढ़वाल