विश्वप्रसिद्ध अलकनंदा भागीरथी संगम देवप्रयाग

 

नरी लाल निर्वेद
श्रीनगर गढ़वाल।

श्रीनगर गढ़वाल – आज नरी लाल निर्वेद के माध्यम से उनकी लिखी गयी किताब प्रेरणा पुंज भी हैं संगम से हम पंच प्रयाग की सीरीज़ आरम्भ कर रहे हैं ।इस पुस्तक में ऋषिकेश से श्री बद्रीनाथ और श्री केदारनाथ के बीच पड़ने वाले नदियों के होने वाले संगमों के बारे में बताया गया है। जो कि तीर्थ यात्रियों के लिए जानकारी प्राप्त करने का अच्छा साधन सिद्ध होगी। आज हम सबसे पहले पड़ने वाले संगम जिसे देवप्रयाग संगम भी कहते हैं। उसी के बारे में आपको जानकारी देंगें।
देवप्रयाग-
ऋषिकेश से श्री बद्रीनाथ की यात्रा आरम्भ करने से लगभग 70 किमी की दूरी पर बसा शहर आता है देवप्रयाग। जो अलकनंदा और भागीरथी के संगम पर स्थित है। अलकनंदा नदी जो कि विष्णु स्वरूप है ,और भागीरथी नदी जो कि पवित्र गंगोत्री स्थान से निकलती है।देवप्रयाग तीन पर्वतों के मध्य बसा हुआ है । उत्तर में स्थित पर्वत को दशरथांचल पर्वत,पूर्व में नरसिंह पर्वत और जबकि खुद देवप्रयाग गृद्ध पर्वत पर बसा है। अर्थात पूरा देवप्रयाग दशरथांचल ,नरसिंह अंचल और गृद्ध अंचल पर्वत पर बसा हुआ है।इसमें अलकनंदा और भागीरथी नदियों की धाराएं अलग अलग बहकर आती हैं। अलकनंदा और भागीरथी नदियां यहीं पर आकर मिलती हैं ।जिन्हें देवप्रयाग संगम नाम से पुकारा जाता है। जबकि इसी संगम मिलन के बाद यह नदी विश्व प्रसिद्ध नदी गंगा नदी कहलाने लगती है। इन्हीं दो नदियों के संगम पर और उपरोक्त तीनों पर्वतों के ढ़लान पर देवप्रयाग बसा हुआ है। देवप्रयाग का नाम देवशर्मा नामक ऋषि के नाम पर पड़ा है। कहते हैं कि सतयुग में देवशर्मा नामक ऋषि ने अपनी कठोर तपस्या से भगवान विष्णु को अति प्रसन्न किया तत्पश्चात भगवान विष्णु नर उनको दर्शन दिए और वर मांगने के लिए कहा।तो देवऋषि ने कहा कि मैं आपको रामस्वरूप के रूप में देखना चाहता हूं।तब उस क्षेत्र का नाम सुदर्शन क्षेत्र था।भगवान विष्णु ने उनसे कहा कि जब मैं रावण का वध करके उत्तराखंड में आऊंगा तब मैं आपको फिर दर्शन दूंगा, तब इस क्षेत्र का नाम आपके नाम से जाना जाएगा। तत्पश्चात ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए गुरु वशिष्ठ की आज्ञा के अनुसार भगवान राम यहां आए और यहीं तपस्या करने लगे। तब से इस क्षेत्र का नाम देवप्रयाग पड़ गया।मान्यता है कि राजा दशरथ ने हिंसक पशु के भ्रम में यहां मातृ पितृ भक्त श्रवण कुमार को शब्दभेदी तीर से मार डाला था।प्रायश्चित स्वरूप राजा दशरथ यहां तप करने लगे थे ।इस कारण यहां का एक पर्वत दशरथ पर्वत कहलाता है। केदारखंड के अनुसार इसे सभी तीर्थों से स
सर्वोत्तम तीर्थ कहा गया है। अयोध्या मथुरा काशी द्वारका सेतु बंधक कांची गया कुरुक्षेत्र क्षेत्रम badyyarsham एवच
गंगाद्वारम पर्यगशर्मायक्षेत्र तदैव च।देवप्रयाग तीर्थ च तीर्थनाम तीर्थमुत्तमम।
अर्थात अयोध्या ,मथुरा, काशी,द्वारिका,रामेश्वरम, कांची,कुरुक्षेत्र, बद्रीनाथ, हरिद्वार, प्रयाग,माया क्षेत्र तीर्थों में देवप्रयाग तीर्थ उत्तम तीर्थ है। देवप्रयाग में अलकनंदा और भागीरथी के कटाव से दो कुण्ड बन गए हैं। अलकनंदा नदी वाले कुण्ड को वशिष्ठ कुण्ड और भागीरथी नदी वाले कुण्ड को ब्रह्म कुण्ड कहा जाता है।यहां पिंडदान आदि कर्म किये जाते हैं।पिंडदान करने हेतु देवप्रयाग को गया से भी श्रेष्ठ माना गया है।
ये कृतं पिंडदान हि तीर्थ देवप्रयाग एक
पितृ कार्य मुनि श्रेष्ठ
कर्तव्यम न हि विहाते
गरयार्यम संशय ।
अर्थात देवप्रयाग में जिसने पिंडदान किया है उसका पितरों के प्रति कोई कर्तव्य शेष नहीं रह जाता।गया में पिंडदान करने से करोड़ों गुना फल देवप्रयाग में पिंडदान करने से प्राप्त होता है। देवप्रयाग पांचों महादेवों आदि विश्वेश्वर, तारकेश्वर ,धनेश्वर,तुन्दीश्वर,एवम विल्वेश्वर से घिरा हुआ है।
समुद्रतल से ऊंचाई देवप्रयाग समुद्रतल से लगभग 549 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है।
दर्शनीय स्थल देवप्रयाग में भगवान श्री रघुनाथ का अदभुत शिल्प का मंदिर स्तिथ है। आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित इस मंदिर मे भगवान रघुनाथ की साढ़े 6 फिट की ऊंची आकर्षक मूर्ति स्थापित है।
यहां अधिकतर बद्रीनाथ धाम के पंडित लोग निवास करते हैं।वर्षों पूर्व जब आवागमन के साधन नहीं थे और पूरी यात्रा पैदल ही तय करनी पड़ती थी तो देवप्रयाग यात्रियों के लिए एक मुख्य पड़ाव हुआ करता था।
हरिद्वार ऋषिकेश से दूरी हरिद्वार से ऋषिकेश की दूरी 24 किमी लगभग और देवप्रयाग से तक इसकी दूरी हरिद्वार से लगभग 95 किमी है। यहाँ तक आवागमन के रूप में बस जीप टैक्सी कार आदि वाहनों से आया जा सकता है।देवप्रयाग में रेलवे लाईन की कोई व्यवस्था नहीं है।
मौसम घाटी में बसे होने के कारण यहां का मौसम गर्म है। किंतु वर्ष के पांच महीने सितंबर ,अक्टूबर, नवंबर, दिसंबर जनवरी में ठंड का प्रकोप रहता है।
नरी लाल निर्वेद
श्रीनगर गढ़वाल।

गबर सिंह भंडारी