माहू या एफिड कीट से कैसे करें फसलों की सुरक्षा

गबर सिंह भण्डारी श्रीनगर गढ़वाल

श्रीनगर गढ़वाल – आज उद्यान विशेषज्ञ राजेंद्र कुकसाल आपको माहु या एफिड कीट से कैसे करें फसलों की सुरक्षा के विषय में विस्तार पूर्वक जानकारी दे रहे हैं। ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों में बन्द गोभी एवं फूल गोभी की व्यवसायिक खेती बर्ष भर की जाती है रवि मौसम में इन फसलों के अतिरिक्त सरसों,राई, मूली, आलू ,बारह मासी छेमी ( वीन ) गुलदावदी आदि पर माहू कीट का प्रकोप देखने को मिलता है।
इस कीट से ग्रसित पौधों की पत्तियां मुड़ जाती है, पौधे पीले होने लगते हैं, तथा छोटे रह जाते हैं। ग्रसिस पौधों की पत्तियां, टहनियों,तना व फल काले पड़ जाते हैं , साथ ही पौधों पर चींटियों चढ़ती उतरती हुई दिखाई देती है।
माहू / एफिड , रवि मौसम की फसलों को हानि पहुंचाने वाला प्रमुख कीट है इसे चेपा, पौधों का जूं , पौधों का खटमल आदि कई नामों से जाना जाता है। माह जनवरी से अप्रैल माह तक इस कीट का प्रकोप फसलों पर अधिक होता है।
किसी भी कीट के प्रभावी नियंत्रण के लिए आवश्यक है कि हम उस कीट की प्रकृति, स्वभाव, पहिचान, जीवन चक्र के बारे में जानकारी रखें, तभी कीट का प्रभावकारी नियंत्रण किया जा सकता है।

 


माहू / एफिड कीट के वयस्क एवं शिशु दोनों हरे भूरे या स्लेटी रंग के होते हैं । यह कीट छोटा (दो मिलि मीटर लम्बा) तथा कोमल शरीर वाला होता है। वयस्क कीट पंखदार या पंखहीन दोनों प्रकार के हो सकते हैं । शिशु एवं वयस्क कीट पौधों का रस (sap) चूसते हैं, जिससे ग्रसित पौधे पीले हो कर सिकुड़ व मुड़ जाते हैं, पौधे छोटे रह जाते हैं तथा पौधों की पत्तियां व ग्रसित भाग काला पड़ जाता है।
इस कीट की वयस्क मादा अलैंगिक प्रजनन (asexual reproduction) द्वारा बड़ी तेजी से वंश वृद्धि करती है , एक वयस्क मादा एक समय में बिना निषेचन ही तकरीबन सौ-सवा सौ शिशुओं को जन्म देती है। इस तरह पैदा हुए सभी बच्चे / निम्प मादा होते हैं और सात-आठ दिन में ही खा पीकर प्रौढ़ मादा के रूप में विकसित हो जाते हैं। इस तरह से एक साल में ही इस कीट की एक-दुसरे में गुत्थी हुई चालीस-चवालीस पीढियों की उत्पत्ति हो जाती है।
ये कीट पौधे का रस शीघ्रता से अधिक मात्रा में चूसते हैं साथ ही पौधों पर सुस्वाद शर्करा द्रव के रूप में छोड़ते जाते हैं , इस शर्करा द्रव को मधु-रस (Honey dew) कहते हैं।
माहू द्वारा पत्तियों की सतह पर या पौधों के अन्य भागों के ऊपर मधुरस का स्राव होने के कारण उस भाग में सूटी मोल्ड या काली फफूंद का विकास हो जाता है जिससे पौधे का ग्रसित भाग काले रंग का दिखाई पड़ता है , जिस कारण पौधै की प्रकाश संश्लेषण क्रिया प्रभावित होती है तथा पौधे कमजोर हो जाते है। मधुरस के कारण चींटियों आकृषित होती है तथा पौधे पर चढ़ती उतरती हुई दिखाई देती है। माहू कीट पौधों में वाइरस रोग का प्रसार भी करतें है।
कीट नियंत्रण-
1.मुख्य फसल के साथ ट्रेप क्राप के रूप में खेत के दोनों तरफ सरसों की दो-दो लायनों में बुआई करें, जिससे माहू कीट सरसौ के पौधों को ही नुकसान पहुंचाते हैं तथा मुख्य फसल सुरक्षित रहती है।
2.समय समय पर खड़ी फसल की देख रेख करते रहें ,जैसे ही माहू कीट दिखाई दे पौधे के उस भाग को या पौधे को शीघ्र हटा कर गड्डे में दबा कर नष्ट कर दें।
3.एक चम्मच डिटर्जेन्ट/ साबुन , प्रति दो लीटर पानी की दर से घोल बनाकर कर स्प्रे मशीन की तेज धार से ग्रसित भाग पर छिड़काव करें। तीन दिनों के अन्तराल पर दो तीन बार छिड़काव करें।ध्यान रहे , छिड़काव से पहले साबुन के घोल को किसी घास वाले पौधे पर छिड़काव करें यदि यह पौधा तीन चार घंटे बाद मुरझाने लगे तो घोल में कुछ पानी मिला कर घोल को हल्का कर लें।
4. एक लीटर , सात आठ दिन पुरानी छांच/ मट्ठा को छः लीटर पानी में घोल बनाकर तीन चार दिनों के अन्तराल पर दो तीन छिड़काव करें।
5.एक कीलो लकडी की राख में दस मिली लीटर मिट्टी का तेल मिलाएं। 500 ग्राम मिट्टी का तेल मिली हुई लकड़ी की राख प्रति नाली की दर से ग्रसित खड़ी फसल में बुरकें। पौधों पर राख बुरकने हेतु राख को मारकीन या धोती के कपड़े में बांध कर पोटली बना लें, एक हाथ से पोटली को कस्स कर पकड़े तथा दूसरे हाथ से डन्डे से पोटली को पीटें जिससे राख ग्रसित पौधों पर बराबर मात्रा में पढ़ती रहे।


6. एक लीटर, आठ दस दिन पुराना गौ मूत्र का छः लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। गौमूत्र जितना पुराना होगा उतना ही फायदेमंद होगा। 10 दिनों के अन्तराल पर फसल पर गौमूत्र का छिड़काव करते रहें।
7. नीम आयल, निम्बसिडीन का पांच मिली लीटर दवा का प्रति लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करें। 10 दिनों के अन्तराल पर छिड़काव करते रहें।
रसायनिक उपचार-
पहले प्रभावित पौधों को डिटर्जेन्ट/ साबुन के पानी से छिड़काव मशीन की तेज धार से धो लें , उसके बाद
इमिडाक्लोप्रिड या क्लोरोपाइरीफास दवा का दो मिलि लीटर दवा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। दो दिनों के बाद कापर आक्सी क्लोराइड या मैन्कोजैव तीन मिली लीटर दवा, प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।यह क्रम दो तीन बार करें। डॉ०राजेन्द्र कुकसाल उद्यान विशेषज्ञ उत्तराखंड