उत्तराखंड राज्य के जल जंगल और जमीन तथा पलायन रोकने के लिए सरकार को पेसा कानून लागू करना चाहिए- भगवान सिंह चौधरी

गबर सिंह भण्डारी श्रीनगर गढ़वाल

श्रीनगर गढ़वाल – आज सामाजिक कार्यकर्ता भगवान सिंह चौधरी अध्यक्ष वन यूके टीम सामाजिक संगठन भिलंगना ब्लॉक टिहरी गढ़वाल ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा की उत्तराखंड राज्य के जल जंगल और जमीन तथा पलायन को रोकने के लिए सरकार को पेसा कानून लागू करना चाहिए अधिनियम 1996 में “पंचायतों से संबंधित संविधान के भाग IX के प्रावधानों को अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तारित करने के लिये” अधिनियमित किया गया था।
संविधान के अनुच्छेद 243-243ZT के भाग IX में नगर पालिकाओं और सहकारी समितियों से संबंधित प्रावधान हैं।
इस अधिनियम के तहत अनुसूचित क्षेत्र वे हैं जिन्हें अनुच्छेद 244 (1) में संदर्भित किया गया है, जिसके अनुसार पाँचवीं अनुसूची के प्रावधान असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम के अलावा अन्य राज्यों में अनुसूचित क्षेत्रों के अनुसूचित जनजातियों पर लागू होंगे। पाँचवीं अनुसूची इन क्षेत्रों के लिये विशेष प्रावधानों की श्रृंखला प्रदान करती है।
दस राज्यों- आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और तेलंगाना ने पाँचवीं अनुसूची के क्षेत्रों को अधिसूचित किया है जो इन राज्यों में से प्रत्येक में कई ज़िलों (आंशिक या पूरी तरह से) को कवर करते हैं। अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिये ग्राम सभाओं के माध्यम से स्वशासन सुनिश्चित करना।
यह कानूनी रूप से आदिवासी समुदायों, अनुसूचित क्षेत्रों के निवासियों के अधिकार को स्वशासन की अपनी प्रणालियों के माध्यम से स्वयं को शासित करने के अधिकार को मान्यता देता है। यह प्राकृतिक संसाधनों पर उनके पारंपरिक अधिकारों को स्वीकार करता है।
ग्राम सभाओं को विकास योजनाओं को मंज़ूरी देने और सभी सामाजिक क्षेत्रों को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने का अधिकार देता है। पेसा अधिनियम में ग्राम सभा का महत्त्व:लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण: पेसा ग्राम सभाओं को विकास योजनाओं की मंज़ूरी देने और सभी सामाजिक क्षेत्रों को नियंत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने का अधिकार देता है। इस प्रबंधन में निम्नलिखित शामिल है:जल, जंगल, ज़मीन पर संसाधन।लघु वनोत्पाद।
मानव संसाधन: प्रक्रियाएँ और कार्मिक जो नीतियों को लागू करते हैं।
स्थानीय बाज़ारों का प्रबंधन।
भूमि अलगाव को रोकना।
नशीले पदार्थों को नियंत्रित करना।
पहचान का संरक्षण: ग्राम सभाओं की शक्तियों में सांस्कृतिक पहचान और परंपरा का रखरखाव, आदिवासियों को प्रभावित करने वाली योजनाओं पर नियंत्रण एवं एक गाँव के क्षेत्र के भीतर प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण शामिल है।
संघर्षों का समाधान: इस प्रकार पेसा अधिनियम ग्राम सभाओं को बाहरी या आंतरिक संघर्षों के खिलाफ अपने अधिकारों तथा परिवेश के सुरक्षा तंत्र को बनाए रखने में सक्षम बनाता है।
पब्लिक वॉचडॉग: ग्राम सभा को अपने गाँव की सीमा के भीतर नशीले पदार्थों के निर्माण, परिवहन, बिक्री और खपत की निगरानी तथा निषेध करने की शक्तियाँ प्राप्त होंगी।
राज्य सरकारों को इस राष्ट्रीय कानून के अनुरूप अपने अनुसूचित क्षेत्रों के लिये राज्य कानूनों को अधिनियमित करना चाहिये।
इसके परिणामस्वरूप पेसा आंशिक रूप से कार्यान्वित हुआ है।
आंशिक कार्यान्वयन ने आदिवासी क्षेत्रों, जैसे- झारखंड में स्वशासन को विकृत कर दिया है।
प्रशासनिक बाधाएँ: कई विशेषज्ञों ने दावा किया है कि पेसा स्पष्टता की कमी, कानूनी दुर्बलता, नौकरशाही उदासीनता, राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी, सत्ता के पदानुक्रम में परिवर्तन के प्रतिरोध आदि के कारण सफल नहीं हुआ।
वास्तविकता के स्थान पर कागज़ी अनुसरण: राज्य भर में किये गए सोशल ऑडिट में यह भी बताया गया है कि वास्तव में विभिन्न विकास योजनाओं को ग्राम सभा द्वारा केवल कागज़ पर अनुमोदित किया जा रहा था, वास्तव में चर्चा और निर्णय लेने के लिये कोई बैठक नहीं हुई थी।
भारत की जनजातीय नीति:
भारत में अधिकांश जनजातियों को सामूहिक रूप से अनुच्छेद 342 के तहत ‘अनुसूचित जनजाति’ के रूप में मान्यता दी गई है।
भारतीय संविधान का भाग X: अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्र में निहित अनुच्छेद 244 (अनुसूचित क्षेत्रों एवं जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन) द्वारा इन्हें आत्मनिर्णय के अधिकार (Right to Self-determination) की गारंटी दी गई है।
संविधान की 5वीं अनुसूची में अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन एवं नियंत्रण तथा छठी अनुसूची में असम,मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम राज्यों के जनजातीय क्षेत्रों के प्रशासन संबंधी उपबंध किये गए हैं।
पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम 1996 या पेसा अधिनियम।
जनजातीय पंचशील नीति।
अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006 वन में रहने वाले समुदायों के भूमि एवं अन्य संसाधनों के अधिकारों से संबंधित है।
यदि पेसा अधिनियम को अक्षरश: लागू किया जाता है तो यह आदिवासी क्षेत्र में मरती हुई स्वशासन प्रणाली को फिर से जीवंत करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।
यह पारंपरिक शासन प्रणाली में खामियों को दूर करने और इसे अधिक लिंग-समावेशी एवं लोकतांत्रिक बनाने का अवसर भी देगा।हिमाचल का अपना सख्त भू कानून होने के बाबजूद हिमाचल ने पेसा कानून भी लागू किया है उत्तराखंड सरकार को हिमाचल से सीख लेनी चाहिए और अपनी 24 साल की जवानी को देखते हुए उत्तराखंड के जल जंगल जमीन और पलायन को रोकने के लिए सख्त भू-कानून के साथ साथ पेसा कानून लागू करना चाहिए इसके लिए हमारे विधायकों और सांसदों को भी पर्वतीय क्षेत्र के विकास के लिए अपना फीडबैक सरकार को भेजना चाहिए।