हरिद्वार -उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय एवं गुरुकुल एलुमनाई एसोसिएशन के संयुक्त तत्वाधान में स्वामी श्रद्धानन्द जी द्वारा स्थापित (1922- 2022 ) गुरुकुल कांगड़ी आयुर्वेद कॉलेज, हरिद्वार के गरिमामयी 100 वर्ष पूर्ण होने पर भव्यता एवं दिव्यता के साथ हर्षोल्लास पूर्वक शताब्दी वर्ष समारोह के आयोजन शुभारंभ किया गया।इस अवसर पर
मा० श्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक'(सांसद, हरिद्वार), प्रोफेसर सुनील जोशी कुलपति उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय, प्रो० सोमदेव सतासु कुलपति गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय, श्रद्धेय आचार्य बालकृष्ण (कुलपति, पतंजलि विश्वविद्यालय, हरिद्वार) श्री कुंवर बृजेश सिंह(मा० राज्यमंत्री, लोकनिर्माण विभाग, उ०प्र०), संस्था के पूर्व स्नातक एवं विधायक उत्तर प्रदेश डॉक्टर राकेश वर्मा जी, स्नातक संघ के अध्यक्ष डॉक्टर राजकुमार रावत, प्रोफेसर पी०के० प्रजापति कुलपति सर्वपल्ली राधा कृष्ण आयुर्वेद विश्वविद्यालय, जोधपुर, डॉक्टर वीरपाल सिंह, जिला पंचायत अध्यक्ष, मुजफ्फरनगर, आदि विशिष्ट अतिथियो की गरिमामई उपस्थिति रही। कार्यक्रम की अध्यक्षता वर्चुअली मोड मे राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल गुरमीत सिंह (से नि) की गई। राजभवन से अपने वर्चुअली सम्बोधन में
राज्यपाल महोदय ने कहा कि स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं महान शिक्षाविद् स्वामी श्रद्धानंद जी द्वारा स्थापित गुरुकुल आयुर्वेदिक कॉलेज की स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण होने पर इस संस्थान से जुड़े सभी लोगों को हार्दिक बधाई और हार्दिक शुभकामनाएं दी। राज्यपाल ने कहा कि आयुर्वेद केवल चिकित्सा शास्त्र ही नहीं बल्कि जीवन जीने की एक कला है। स्वास्थ्य संरक्षण और स्वास्थ्य संवर्धन में आयुर्वेद की विशेष भूमिका है। आज रोग से सुरक्षा हेतु रोग प्रतिरोधक क्षमता को उन्नत करने में आयुर्वेद की औषधियों की भूमिका वैज्ञानिक कसौटी पर खरी उतरी है। हाल ही में कोरोना महामारी में आयुर्वेद चिकित्सा की सार्थकता साबित हुई है। राज्यपाल ने कहा कि आयुर्वेद के नियमों के अनुसार यदि हम अपनी दिनचर्या, रात्रिचर्या तथा साथ ही ऋतुचर्या का पालन करें तो हम अपने आप को बीमार पड़ने से बचा सकते हैं। पंचकर्म चिकित्सा, क्षारसूत्र चिकित्सा, रसायन जड़ी बूटियों का प्रयोग आयुर्वेद की ऐसी विधाएँ हैं जिन्होंने आयुर्वेद के वैश्वीकरण में अहम भूमिका निभायी हैं। राज्यपाल ने कहा कि इस संस्थान से विद्या अर्जित करने वाले बड़े-बड़े वैद्य और चिकित्सकों ने इस विद्या के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि देवभूमि उत्तराखण्ड आयुर्वेद की जन्मभूमि है। हिमालय क्षेत्र से ऋषि मुनियों ने योग और आयुर्वेद के द्वारा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ जीवन मुक्त अवस्था प्राप्त करने का मंत्र दिया है। उन्होंने कहा कि योग, आयुर्वेद और मर्म चिकित्सा ऐसी पद्धतियां हैं जिनकी वर्तमान समय में मानव के स्वास्थ्य के संदर्भ में अहम भूमिका है। यह हर्ष का विषय है कि उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय और इससे संबद्ध कालेज आयुर्वेद की प्राचीन विधा -‘मर्म चिकित्सा’ को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। उन्होंने कहा कि भारत को विश्व गुरु बनाने में आयुर्वेद एवं युग की अहम भूमिका हो सकती है। अवसर पर विश्वविद्यालय कुलपति प्रपोजल सुनील जोशी ने कहा आयुर्वेद के पूर्व स्नातकों वैद्य धर्मानन्द केसरवानी, वेद्य धर्म दत्त, डा०रणजीत देसाई, वैद्य अनंतानंद जी, अत्रि देव विद्यालंकार, वैद्य जयदेव विद्यालंकार आदि के द्वारा किए गए योगदान को याद किया। आयुर्वेद के स्नातकों से आवाहन किया कि आयुर्वेद को अपने जीवन में उतारे एवं आयुर्वेद पद्धति के प्रचार-प्रसार एवं स्वास्थ्य संबंधी में अपना सर्वस्य लगा दें जिससे आयुर्वेद की पुनः प्रतिष्ठा की जा सके । इस इस अवसर पर डॉ रमेश पोखरियाल निशंक जी सांसद हरिद्वार द्वारा भारत सरकार द्वारा आयुष के विकास में किए गए योगदान के बारे में बताया। तथा कहा कि आयुर्वेद दोयम दर्जे की पद्धति नहीं है आयुर्वेद में टैलेंटेड और फर्स्ट रैंक के बच्चों को प्रवेश मिलना चाहिए। आयुर्वेद के योगदान को सारी दुनिया ने जाना है। उन्होंने साथियों से आवाहन किया कि हम सब मिलकर आयुर्वेद को विश्व की सबसे चिकित्सा सर्वश्रेष्ठ पद्धतिके रूप में में स्थापित कर सकें, ऐसा सबको मिलकर प्रयास करना चाहिए। प्रोफेसर प्रदीप प्रजापति जी गुरुकुल को आयुर्वेद की धरती बताया। आयुर्वेद की ज्ञान गंगा का प्रसार निरंतर यहां से हो रहा है। प्राचीन ज्ञान का भंडार एवं धरोहर देवभूमि गुरुकुल कांगड़ी हरिद्वार के शताब्दी वर्ष पूर्ण होने पर विभिन्न क्षेत्रों में आयुर्वेद के ज्ञान के प्रचार एवं प्रसार के लिए गुरुकुल के स्नातकों, गुरुजनों के योगदान को याद किया। पतंजलि आयुर्वेद के महामंत्री आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि आयुर्वेद में प्रकाशन , संहिता निर्माण एवं अनुसंधान एवं विकास, वैज्ञानिक पद्धतियों को जोड़ने की आवश्यकता है। उन्होंने पतंजलि संस्थान द्वारा विश्व भैषज्य संहिता का निर्माण किया जा रहा है, पतंजलि आयुर्वेद द्वारा विश्व में सर्वाधिक आयुर्वेदिक पांडुलिपि रखने का विश्व कीर्तिमान भी स्थापित किया है। के प्रचार प्रसार में पतंजलि आयुर्वेद द्वारा निरंतर कार्य किए जाएंगे तथा जो भी सहयोग आवश्यक होगा वह विभिन्न स्तरों पर अवश्य ही दिया जाएगा।इस अवसर पर आमंत्रित विशिष्ट अतिथियों ने गुरुकुल आयुर्वेदिक कॉलेज के इतिहास,इसकी गरिमा एवं आयुर्वेद के प्रचार प्रसार में आयुर्वेद संस्थान की महत्वत्ता, संस्था से निकले विशिष्ट व्यक्तित्व एवं ख्याति लब्ध विद्वानों की विद्वता का संस्मरण बताएं। इस अवसर पर गुरुकुल के वरिष्ठ तम स्नातकों को सम्मानित डॉ राजेंद्र कुमार अग्रवाल, डॉक्टर नरेंद्र पाल वर्मा आदि को सम्मानित किया गया।इस अवसर को विशिष्ट एवं ऐतिहासिक बनाने के लिए पूर्व स्नातक संघ एवं उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के सहयोग से धंवतरी मंदिर का लोकार्पण किया गया। के अवसर पर शताब्दी द्वार का शिलान्यास भी किया गया।
प्रो०प्रेमचन्द्र शास्त्री द्वारा कार्यक्रम का संचालन किया गया।इस अवसर पर देश विदेश से इस संस्था के 600 से अधिक पूर्व स्नातकों सक्रिय रूप से प्रतिभाग किया। इस अवसर पर प्रोफेसर पंकज शर्मा कैंपस डायरेक्टर, संजय गुप्ता , उपकुलसचिव एवं आयोजन सचिव, डा० यतेंद्र मलिक स्नातक संघ महासचिव, प्रोफेसर एचएम चंदोला, प्रो० रामबाबू द्विवेदी, प्रो० शर्मा प्रोफ़ेसर गिरिराज गर्ग, प्रो०ओपीसिंह, प्रोफेसर विपिन पांडे,डा० एसपी सिंह, प्रो० मीना रानी आहूजा, डा०वीरेन्द्रकुमार, डा० मयंक भट्ट कोटी, डा० सुरेंद्र चौधरी, डा०राजेश अघाना, डा० संदीप अग्रवाल, डा०राजीव कुरेले, डा०विनीष गप्ता, डा०अनुमेहा, प्रो०डी०सी०सिंह कैम्पस डायरेक्टर ऋषिकुल, डॉ० शैलेंद्र प्रधान, उपकुलसचिव, डा०शशिकांत तिवारी, प्रो० अरुण कुमार त्रिपाठी डायरेक्टर आयुर्वेद, डा० आलोक शर्मा, डा०विपिन अरोरा, डा०राजीव कुमार, डा०पियूष जुनेजा, हरीश चंद्र गुप्ता, राहुल तिवारीआदि गुरुकुल के पूर्व स्नातक एवं विश्वविद्यालय के अधिकारीगण, शिक्षक गणों ने प्रतिभाग किया । द्वित्तीय सत्र कार्यक्रम में वैज्ञानिक सत्र, स्नातकों का व्यक्तित्व परिचय, एवं वरिष्ठ स्नातकों का सम्मान एवं प्रतिष्ठा कार्यक्रम, संस्मरण, सांस्कृतिक कार्यक्रम में देश के सुप्रसिद्ध राष्ट्रकवि एवं गुरुकुल आयुर्वेदिक कॉलेज के पूर्व स्नातक डॉ० ध्रुवेन्द्र भदोरिया, प्रसिद्ध कवि सुनहरी लाल तुंरत, हास्य कवि श्रीकांत जी आदि वरिष्ठ कवियों की उपस्थिति में कवि सम्मेलन, सांस्कृतिक उत्तराखंड के विभिन्न अंचलों की प्रस्तुतियां, गुरुकुल के पूर्व स्नातक एवं वर्तमान छात्रों के द्वारा विभिन्न प्रकार के टैलेंट शो गीत संगीत म्यूजिकल कार्यक्रम आदि किये गये।
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