राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान उत्तराखंड को वन विभाग ने मानव गुलदार संघर्ष प्रबंधन के अंतर्गत परामर्श परियोजना प्रदान की

 दैनिक विराट न्यूज चैनल गबर सिंह भण्डारी श्रीनगर गढ़वाल

श्रीनगर गढ़वाल :- राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान, उत्तराखण्ड के यांत्रिक अभियांत्रिकी विभाग में सहायक प्राध्यापक पद पर कार्यरत डॉ विनोद सिंह यादव, डॉ डी श्रीहरि एंव डॉ विकास कुकशाल को उत्तराखंड वन विभाग ने मानव गुलदार संघर्ष प्रबंधन के अंतर्गत परामर्श परियोजना प्रदान किया है। इसके अंतर्गत संस्थान को पोर्टेबल, मजबूत, हल्के वजन और उन्नत ट्रैप केज (जाल पिंजरे) का डिजाइन और पशु सहित जाल-पिंजरे को संभालने के लिए वाहन की स्वचालित प्रणाली का डिज़ाइन प्रदान करने का उत्तरदायित्व दिया गया है।
संस्थान के माननीय निदेशक प्रोफेसर ललित कुमार अवस्थी ने इस अवसर पर ख़ुशी व्यक्त करते हुए कहा कि एनआईटी उत्तराखंड की टीम पहाड़ी क्षेत्रों के विकास के क्षेत्र में लगातार काम कर रही है और स्थानीय लोगों के विकास और सुरक्षा के संदर्भ में संभावित समाधान प्रदान कर रही है।
प्रोफेसर अवस्थी ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा ” प्राकृतिक सौंदर्य और जैव विविधता से परिपूर्ण उत्तराखंड राज्य की देश -विदेश में अपनी विशिष्ट पहचान है। परन्तु हाल के कुछ वर्षो में बढ़ते मानव वन्य जीव संघर्ष के चलते राज्य की जैव विविधता पर संकट छाने लगा है। इसमें मानव और बाघ, गुलदार जैसे हिंसक जानवरो का संघर्ष सबसे महत्वपूर्ण और निर्णायक अभिव्यक्ति है। ऐसे में वन्य जीवों के संरक्षण के लिए स्थानीय समर्थन बनाए रखने के लिए इसे संवेदनशील तरीके से संबोधित करने की आवश्यकता है। उत्तराखंड राज्य में पौड़ी गढ़वाल को मानव-गुलदार के संघर्ष की भयावहता के लिए ऐतिहासिक रूप से मान्यता दी गई है, जब 20वीं शताब्दी में भी सैकड़ों लोग गुलदार द्वारा मारे गए थे और एक दर्जन गुलदारआदमखोर के रूप में मारे गए थे। भारत सरकार के पर्यावरण और वन मंत्रालय (एमओईएफ) एवं अन्य वन्यजीव ट्रस्ट इस संघर्ष को नियंत्रित करने के लिए बेहतर तकनीकों और तरीकों को खोजने के लिए निरंतर प्रयासरत हैं। उन्होंने आगे कहा ” इस दृष्टि से पारंपरिक और भारी ट्रैपिंग सिस्टम को बदलने के लिए उत्तराखंड वन प्रभाग द्वारा उठाया गया यह एक बहुत ही महत्वपूर्ण और सराहनीय कदम है। संस्थान अन्य भारतीय वन विभागों को डिजाइन प्रदान करेगा ताकि वे भी नवीनतम डिजाइन से लाभान्वित हो सकें। संस्थान वन विभाग की स्वीकृति के बाद डिजाइन को पेटेंट कराने की भी योजना बना रहा है ताकि नये रोजगार सृजित करने के अवसरों में वृद्धि हो सके।”
प्रोफेसर अवस्थी ने कहा कि एनआईटी उत्तराखंड अनुसन्धान और नवाचार गतिविधियों के लिए एक उपयुक्त वातावरण प्रदान करने के लिए कटिबद्ध है जो छात्रों और संकाय सदस्यों को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए प्रोत्साहित करता है। इस सन्दर्भ में उन्होंने कहा कि नवाचार को बढ़ावा देने और इन विचारों को कानूनी रूप से अपनाने और मुद्रीकृत करने के लिए संस्थान की तरफ से आर्थिक सहायता भी प्रदान की जाती है जिससे की संकाय सदस्यों द्वारा अधिकाधिक परियोजनाओं का लेखन और पेटेंट दाख़िलाकरण किया जा सके और एनआईटी उत्तराखंड को देश के सर्वश्रेष्ठ शैक्षणिक संस्थानों में से एक के रूप में प्रतिष्ठित किया जा सके।
इस मौके पर डॉ विनोद सिंह यादव (प्रमुख अन्वेषक) ने बताया कि पौड़ी गढ़वाल जिले के प्रभागीय वनाधिकारी श्री स्वप्निल अनिरुद्ध ने हमसे संपर्क किया और बताया कि पारंपरिक ट्रैपिंग प्रणाली के कारण उसमें काम करने वाले लोगों और अधिकारियों को पिंजरे के वजन और परिवहन व्यवस्था से संबंधित बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने नवीनतम प्रणाली प्रदान करने के लिए कहा जो उन्हें कुशल तरीके से जानवरों को पकड़ने में मदद करे।
संस्थान के प्रभारी सचिव डॉ धर्मेंद्र त्रिपाठी ने भी शोधकर्ताओं को बधाई दी और कहा कि एनआईटी उत्तराखंड माननीय निदेशक के कुशल नेतृत्व में विज्ञान और अभियांत्रिकी शिक्षा, नवाचार, ज्ञान सृजन बौद्धिक सम्पदा उत्पादन के क्षेत्र में तेजी से उभर रहा है। उन्होंने बताया कि निदेशक द्वारा पदभार सँभालने के बाद, संस्थान उत्तराखंड के समाज के साथ-साथ पूरे देश की सेवा के लिए बहु-आयामी कार्य कर रहा है।