अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत शहर से लेकर गाँव तक फैलाएगी ग्राहक जागरूकता- हरिशंकर सिंह सैनी
अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत की स्थापना 1974 में पुना में हुई। इस संगठन का मूल उध्देश्य ग्राहक को अपने अधिकारों के प्रति जागरूक करना एवं उसे उचित मूल्य पर अच्छी गुणवत्ता, सही नाप, विक्रय उपरांत सेवा एवं अच्छा व्यवहार दिलवाना है। इस संगठन की सबसे बड़ी उपलब्धि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 लागू करवाना रही है। अन्य क्षेत्रों जैसे पेट्रोलियम पदार्थो में कम मात्रा मिलना, मिलावट, अधिक पैसा लेना, समय पर ग्राहक को सुविधा उपलब्ध न करवाना इसी तरह टेलीफोन, मोबाईल, इंटरनेट उपभोक्ताओं से मनमाना शुल्क वसूलने एवं उचित सेवा प्रदान न करने के मामले, बिजली उपभोक्ताओं का शोषण इन विषयों पर सेमिनार आयोजित किये गये एवं इसके सुपरिणाम ग्राहकों के हित में आये। अब बस, ऑटो में यात्रियों से दुर्व्यवहार, किराना व्यापारियों द्वारा चिल्लहर के स्थान पर चॉकलेट या अन्य उत्पाद देना, दवा व्यवसायियों द्वारा कम स्टैंडर्ड की दवाईयां बेचना इन विषयों को लेकर संगठन उपभोक्ताओं को जागरूक करने के लिए जनजागरण अभियान उत्तराखंड में भी प्रारंभ करने जा रहा है। अपराध को लेकर ग्राहकों को जागरूक करना हमारा ध्येय
शोषण के खिलाफ सरकार व समाज को मिलकर काम करना होगा। शोषण मानव निर्मित व्यवस्था से उत्पन्न दोष है, इसे दूर करने के बजाए लोग इसे नियति मान लेते हैं। किसी भी समाज में व्यक्ति की भूमिका केंद्र बिंदु होती है। समाज के संचालन के लिए मानव निर्मित व्यवस्था में जब दोष उत्पन्न होने लगता है तो उसका प्रभाव सीधे तौर पर उस आम व्यक्ति पर पड़ता है। फिर नागरिक तो सेवा प्रदाता है। एक जगह वह सेवा प्रदाता है तो दूसरी अन्य जगह उपभोक्ता। दोहरी भूमिका होने के कारण उसका शोषण होता है। उपभोक्ताओं के इस शोषण को रोकने के लिए सामाजिक संगठन ‘अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत’ अस्तित्व में आया है। हाल के कुछ सालाे में ग्राहक पंचायत ने उपभोक्ताओं की लड़ाई में महती भूमिका निभाई है। ‘अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत’ उत्तराखंड के प्रांतीय संगठन मंत्री हरिशंकर सिंह सैनी के साथ बातचीत में देश की अर्थव्यवस्था से जुड़े तमाम पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की।
श्री हरिशंकर सैनी का मानना है कि बदलते परिवेश में देश की अर्थव्यवस्था जब निजीकरण की दिशा में आगे बढ़ रही है तो ग्राहकों का शोषण भी बढ़ा है। शोषण के खिलाफ इस लड़ाई को उपभोक्ता अकेले नहीं लड़ सकता, इसके लिए ग्राहक संगठन कारगर भूमिका निभा सकता है। प्रस्तुत है अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत उत्तराखंड के प्रांतीय संगठन मंत्री हरिशंकर सिंह सैनी के साथ विशेष बातचीत के मुख्य अंश –
सवाल: समाज और लोगों को आर्थिक न्याय के लिए देश में अनेकों कानून हैं फिर भी ‘ग्राहक पंचायत’ जैसे संगठन की जरूरत महसूस की जा रही है, ऐसा क्यों ?
जवाब: उपभोक्ता अभी भी अपने अधिकारों को लेकर पूर्णतः जागरूक नहीं हैं। शोषण के खिलाफ आवाज उठाना व्यक्ति और समाज का दायित्व है लेकिन वह ऐसा करने में सक्षम नहीं है। वह तो शोषण को नियति मान बैठा है। शोषण के खिलाफ इस लड़ाई को वह अकेले नहीं लड़ सकता। निजीकरण रूकेगा नहीं, पर इस पर अंकुश लगाना जरूरी है। शासन के साथ समाज की भूमिका निर्धारित करने के लिए ग्राहक संगठन कारगर भूमिका निभा सकता है। अपराध को लेकर उपभोक्ताओं को जागरूक करना हमारा ध्येय है।
सवाल: शासन और समाज के बीच संगठन कैसे तालमेल बिठाता है?
जवाब: संगठन के कार्यकर्ता समाज के बीच जाकर लोगों को जागरूक करते हैं, उनकी समस्याओं के निदान के लिए शिकायतें शासन के पास ले जाते हैं। समस्या निवारण में संगठन शासन और उपभोक्ता के बीच सेतु का काम करता है। चोल प्रशासन में भी इस तरह की व्यवस्था थी, जो बेहद सफल मानी जाती थी। पंचायत स्तर पर समस्या का समाधान हो जाए तो समय और धन दोनों की बचत होती है।
सवाल: पिछले कुछ सालों में देश की सकल घरेलू उत्पाद ;जीडीपीद्ध घटी है, क्या इसकी एक वजह मांग और आपूर्ति में असंतुलन है? उपभोक्ता इससे किस तरह प्रभावित हो रहा है?
जवाब: जीडीपी में गिरावट के पीछे असल कारण वैश्विक अर्थमंदी का होना है। भारत के अलावा विश्व के कई विकसित देशों की जीडीपी भी पांच प्रतिशत या इसके आसपास ठहरी हुई है। पड़ौसी देश चीन की स्थिति भी कमोवेश ऐसी ही है। रहा सवाल उपभोक्ता का, तो मूल्य निर्धारण पद्यति से निदान संभव है। मेरा मानना है अगर चीजों के दाम सस्ते कर दिए जाएं तो वस्तुओं की मांग तेजी से बढ़ेगी और बाजार में भी पंूजी का प्रवाह तेजी से बढ़ेगा। पूंजी आ जाने से जीडीपी बढ़ जाएगी।
सवाल: लेकिन, वामपंथी विचारधारा के लोग मौजूदा अर्थव्यवस्था को लेकर नाहक ही हायतौबा मचा रहे हैं। वे अब इसे सरकार के खिलाफ ढ़ाल बनाकर सड़कों पर उतरने की बात कह रहे हैं। ‘ग्राहक संगठन’ और वामपंथियों के संघर्ष में क्या अंतर है?
जवाब: उनके और हमारे विमर्श में बड़ा अंतर है। वे टकराव चाहते हैं, हम समन्वय। संगठन का प्रयास रहता है कि शिकायत और दंड के बिना आपसी समन्वय के द्वारा ग्राहकों की समस्या का समाधान हो। वे वर्ग संघर्ष चाहते हैं जबकि हम समन्वय स्थापित करके समाधान का रास्ता निकालते है। इस तरह दोनों की कार्यशैली में बड़ा फर्क है।
सवाल: ग्राहकों के लिए संगठन ने क्या लक्ष्य तय किए हैं?
जवाब: अगली पीढ़ी को तैयार करने के लिए संगठन का मुख्य उद्देश्य बड़े शहरों में विद्यालय स्तर पर उपभोक्ता फोरम तैयार करना है, जहां बच्चों को अच्छा ग्राहक बनने का प्रशिक्षण दिया जाएगा। इसके अलावा मिलावट की पहचान और खरीददारी में समझदारी जैसे विषयों में उन्हें पारंगत किया जाना है। अब तो सोशल मीडिया के खतरे भी समाज के लिए चुनौती बन पड़े हैं। साईबर अपराध से कैसे बचें, नापतौल के संबंध में जानकारी लेकर बच्चे महाविद्यालय तक आते-आते अपने अधिकारों की आवाज उठा सकेंगे। यही बच्चे बाद में जाकर समाज के लोगों को जागरूक करेंगे।
सवाल: इसके लिए क्या कार्ययोजना है?
जवाब: सुदूर क्षेत्रों में वनों में रहने वाले छात्रों के लिए छात्रावास, जहां वे रहकर ग्राहकों के कर्तव्य व कानूनी प्रावधानों को सीखें और शोषण के खिलाफ मुहिम फैलाएं। उन्हें हमारी इकाइयां कानूनी संरक्षण प्रदान करेंगी। इसके इतर, शहरी स्तर पर आदर्श मोहल्लों को स्थापित करने की योजना है। जहां शोषण मुक्त शहर माॅडल तैयार करना हमारा ध्येय रहेगा। अगर यह काम सध जाए तो तो पूरे देश को नई दिशा दे सकता है।
सवाल: मोदी सरकार जिस तरह राष्ट्रवाद की दिशा में आगे बढ़ रही है, क्या उपभोक्ताओं के लिए भी सरकार ने कोई ठोस कदम उठाए हैं?
जवाब: हां , सरकार ने इस दिशा में कई अच्छे निर्णय लिए है, लेकिन ‘रेरा व्यवस्था’ लाकर उसने एक तरह से उपभोक्ताओं को बड़ा हथियार दे दिया है, जिसके माध्यम से भवन निर्माताओं को पंजीयन कराना अनिवार्य हो गया है। ग्राहक अब बिना किसी भय के निवेश कर सकेंगे। इसके लिए शासन को बधाई। इसके साथ ही शहरी मोहल्लों मे कमेटी/वीसी को भी पंजीकरण करने के लिए बाध्य किया गया है। सरकार का यह स्वागत योग्य कदम है, इससे बड़ी संख्या में लोगों को लाभ तो मिलेगा ही साथ ही उन्हें सरकारी संरक्षण भी अलग से मिलेगा।
सवाल- अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत संगठन की महत्ता
जवाब- ग्राहकों के मन से अकेलेपन की भावना भी दूर होना जरूरी है। इसके लिए ग्राहक संगठनों के द्वारा प्रयास किए जाने चाहिए। आजकल सूचना का अधिकार से भी कई समस्याओं के हल निकलते हैं। जनजागृति के लिए आरटीआई भी एक उत्तम उपाय है। समाज को भी ऐसे प्रकरणों में ग्राहकों व ग्राहक संगठनों के साथ खड़े होने की आवश्यकता है। ऐसा हुआ तो अनुचित व्यवहार करने वालों पर भी दबाव बनेगा ।
सवाल – ग्राहक संरक्षण’ भी हो पाठ्यक्रम का हिस्सा
जवाब- ग्राहक अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, इस दृष्टि से शिक्षा में ग्राहक विषय का होना आवश्यक है । कुछ राज्यों के पाठ्यक्रम में ग्राहक संरक्षण यह विषय है तो कुछ अन्य राज्यों में इसके लिए प्रयास हो रहे हैं और यह स्वागत योग्य है। परंतु केवल शैक्षणिक पाठ्यक्रम में ग्राहक विषय का होना पर्याप्त नहीं है, उसे सर्वांगीण बनाना होगा अर्थात सभी में ग्राहक दृष्टि निर्मित होना आवश्यक है। उदाहरण के लिए हमें विद्यालयों में कंज्यूमर क्लब के निर्माण की मांग एवं समर्थन करना चाहिए जिससे बाल्यकाल से ही उनमें ग्राहक दृष्टि विकसित हो। शैक्षणिक पाठ्यक्रम से शिक्षित होने वाला ग्राहक, यह समस्याओं का सामना करने में सक्षम हो ही जाएगा ऐसा भी जरूरी नहीं है । इसलिए हमें समस्याओं का साहस के साथ मुकाबला करने के लिये प्रायोगिक प्रशिक्षण पर भी ध्यान देना होगा ताकि ग्राहक मुखर होकर अपनी समस्या का स्वयं समाधान कर सके।