माटी का वरदान मानवता के लिये अन्नदान -स्वामी चिदानन्द सरस्वती

विश्व मृदा दिवस
इन्डोनेशिया के धर्मगुरू पद्मश्री श्री इन्द्रा उदायन जी पधारे परमार्थ निकेतन
भारत और इन्डोनेशिया, बाली की संस्कृति और योग के प्रसार पर हुई चर्चा
मिट्टी के प्रति जागरूकता जरूरी
मिट्टी जीवन, जीविका और कल्याण का प्राथमिक आधार
माटी बचेगी तो थाती बचेगी
माटी का स्वाभिमान राष्ट्र का उत्थान
माटी का वरदान मानवता के लिये अन्नदान
स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश, 5 दिसम्बर। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज विश्व मृदा दिवस के अवसर पर कहा कि मिट्टी जीवन, जीविका और मानवता के कल्याण का प्राथमिक आधार है इसलिये मिट्टी के प्रति जागरूकता जरूरी है। मिट्टी में पोषण करने की क्षमता होती है तथा मिट्टी एक परिवर्तनशील एवं विकासोन्मुख तत्त्व हैं।
इन्डोनेशिया के धर्मगुरू पद्मश्री श्री इन्द्रा उदायन जी अपने विद्यार्थियों के साथ परमार्थ निकेतन पधारे उन्होंने परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी से भेंट कर बाली, इन्डोनेशिया की संस्कृति, गुरूकुल शिक्षण पद्धति और योग के प्रसार-प्रचार के विषय में विस्तृत चर्चा की। ज्ञात हो कि परमार्थ निकेतन परिसर में पद्मासना मन्दिर है जो कि बाली और भारत की संस्कृतियों के आदान-प्रदान और समन्वय का प्रतीक हैं।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने विश्व मृदा दिवस के अवसर पर कहा कि जैविक खेती ‘ऑर्गेनिक फार्मिंग’ के माध्यम से भी मिट्टी को स्वस्थ बनाये रखा जा सकता है। मिट्टी की उर्वरा शक्ति को बचाए रखने के लिये कृषि के माध्यम से फसल चक्र, हरी खाद, कम्पोस्ट आदि का प्रयोग जरूरी है। इससे पानी की गुणवत्ता में सुधार होगा, ऊर्जा की बचत होगी तथा जैव विविधता बनी रहेगी।
मिट्टी के स्वास्थ्य के लिये हमें स्थायी विकल्प खोजने होंगे और इसके लिये सिंगल यूज प्लास्टिक के उत्पादन और उपयोग को पूर्ण रूप से बंद करना होगा क्योंकि इससे न केवल मिट्टी बल्कि हमारे महासागर भी प्रदूषित हो रहे हैं, समुद्री जीवन नष्ट कर रहा है तथा प्लास्टिक मानव स्वास्थ्य के लिये खतरा बनता जा रहा है।
मिट्टी के लिये प्लास्टिक सबसे अधिक खतरनाक है क्योंकि प्लास्टिक को नष्ट होने में काफी समय लगता है तथा इसके कारण जल और वायु सभी प्रदूषित हो रहे  हैं अतः व्यक्तिगत रूप से हमें अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह करना पड़ेगा, तभी हमारी धरा सुरक्षित रह सकती है।
स्वामी जी ने पद्म श्री श्री इन्द्रा उदायन जी को रूद्राक्ष का पौधा भेंट कर उनका अभिनन्दन किया।