लोकतंत्र में जन प्रतिनिधियों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती हैः राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द
राष्ट्रपति ने गांधीनगर में गुजरात विधान सभा के सदस्यों को सम्बोधित किया
उन्होंने कहा कि वे उस समय गुजरात विधान सभा सदस्यों को सम्बोधित कर रहे हैं, जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है। राष्ट्रपति ने कहा कि आजादी और उसका अमृत महोत्सव मनाने के लिये गुजरात से बेहतर स्थान और क्या हो सकता है। गुजरात क्षेत्र के लोग स्वतंत्र भारत की अलख जगाने में अग्रणी रहे हैं। उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम दशक में, दादाभाई नौरोजी और फिरोज शाह मेहता जैसी हस्तियों ने भारतीयों के अधिकारों के लिये आवाज उठाई थी। उस संघर्ष को गुजरात के लोग लगातार मजबूत करते रहे, जो फलस्वरूप महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारत की स्वतंत्रता की पराकाष्ठा को पहुंचा।
राष्ट्रपति ने कहा कि महात्मा गांधी ने न केवल भारत के स्वतंत्रता संग्राम को नेतृत्व प्रदान किया, बल्कि उन्होंने पूरी दुनिया को नई राह भी दिखाई, नये विचार और नया दर्शन दिया। आज विश्व में जहां भी किसी प्रकार की हिंसा होती है, तो बापू के मंत्र ‘अहिंसा’ का महत्व समझ में आने लगता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि गुजरात का इतिहास अनोखा है। यह महात्मा गांधी और सरदार पटेल की भूमि है तथा इसे सत्याग्रह की भूमि कहा जा सकता है। सत्याग्रह का मंत्र पूरी दुनिया में उपनिवेश के विरुद्ध अचूक अस्त्र के रूप में स्थापित हो गया है। बारडोली सत्याग्रह, नमक आंदोलन और दांडी मार्च ने हमारे स्वतंत्रता संग्राम को न केवल नया आकार दिया, बल्कि प्रतिरोध की अभिव्यक्ति तथा जन आंदोलन की पद्धति को नये आयाम भी दिये।
राष्ट्रपति ने कहा कि सरदार पटेल ने स्वतंत्र भारत को एकता के सूत्र में बांधा और प्रशासन की आधारशिला रखी। नर्मदा के किनारे स्थित उनकी प्रतिमा ‘स्टेच्यू ऑफ यूनिटी’ विश्व की सबसे ऊंची प्रतिमा है तथा उनकी स्मृति के प्रति यह कृतज्ञ राष्ट्र का अकिंचन उपहार है। भारतवासियों के मन में उनका कद तो इससे भी बड़ा है।
राष्ट्रपति ने कहा कि राजनीति से इतर, गुजरात ने सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आध्यात्मिक रूप से देखा जाये तो नरसिंह मेहता की इस भूमि का बहुत प्रभाव है। उनका भजन “वैष्णव जन तो तेने कहिये जे पीर पराई जाने रे” तो हमारे स्वतंत्रता संघर्ष का गान बन गया था। इस भजन ने भारतीय संस्कृति के मानवीय पक्ष का भी प्रसार किया। राष्ट्रपति ने कहा कि गुजरात के लोगों की उदारता, भारतीय संस्कृति की प्रमुख विशेषता है। सभी वर्गों और समुदायों के लोग प्राचीन काल से ही यहां भाईचारे की भावना के साथ रह रहे हैं।
राष्ट्रपति ने इस बात का भी उल्लेख किया कि गुजरात ने आधुनिक काल में विज्ञान के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान किया है। जहां डॉ. होमी जहांगीर भाभा को भारतीय परमाणु कार्यक्रम का पितामह कहा जाता है, वहीं भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला के संस्थापक डॉ. विक्रम साराभाई को भारतीय विज्ञान, विशेषकर भारत के अंतरिक्ष अनुसंधान का युगद्रष्टा माना जाता है।
राष्ट्रपति ने कहा कि 1960 में जब गुजरात अस्तित्व में आया था, तब से वह अपने उद्यम और नई सोच के आधार पर विकासपथ पर बढ़ता जा रहा है। उन्होंने कहा कि श्वेत क्रांति गुजरात की भूमि पर ही शुरू हुई थी और उसने पोषण के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव कर दिया है। आज भारत दूध के कुल उत्पादन और खपत में विश्व में पहले स्थान पर है। गुजरात की दूध सहकारितायें इस सफलता की जनक हैं। उन्होंने कहा कि भारत सरकार ने सहकारिता मंत्रालय का गठन किया है, जिसका उद्देश्य गुजरात की सफलता तथा सहकारी संस्कृति के लाभों का देशभर में विस्तार करना है।
राष्ट्रपति ने कहा कि गुजरात विधान सभा ने राज्य के आमूल विकास के लिये कई क्रांतिकारी कदम उठाये हैं। गुजरात पंचायत विधेयक, 1961 और गुजरात अनिवार्य बुनियादी शिक्षा अधिनियम, 1961 के जरिये स्थानीय स्व-शासन तथा शिक्षा में प्रगतिशील प्रणाली स्थापित की गई थी। गुजरात अकेला ऐसा राज्य है, जहां गुजरात अधोसंरचना विकास अधिनियम, 1999 को विधान सभा ने पारित किया था, ताकि अवसंरचना में निवेश तथा विकास को प्रोत्साहित किया जा सके। गुजरात जैविक कृषि विश्वविद्यालय अधिनियम, 2017 को विधान सभा ने पारित किया, जो भविष्य को देखते हुये कानून को दिशा देने के संदर्भ में महत्वपूर्ण है। उन्होंने गुजरात की वर्तमान और पूर्व की सरकारों तथा गुजरात विधान सभा के वर्तमान और पूर्व सदस्यों की प्रशंसा की कि उन सभी ने गुजरात की बहुपक्षीय प्रगति में योगदान किया है।
राष्ट्रपति ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों से विकास के गुजरात मॉडल को अनुकरणीय माना जा रहा है, जिसे देश के किसी भी राज्य और क्षेत्र में लागू किया जा सकता है। साबरमती रिवर-फ्रंट शहरी रूपांतरण का प्रभावशाली उदाहरण है। साबरमती और उसके रहने वालों के बीच के रिश्ते को एक नया आयाम मिला है, वहीं पर्यावरण भी सुरक्षित हो गया है। यह देश के उन शहरों के लिये भी अच्छा उदाहरण बन सकता है, जो नदी किनारे आबाद हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे हैं, तो हमारा यह कर्तव्य बनता है कि हम अपने स्वतंत्रता सेनानियों को याद करते हुये देश के उज्ज्वल भविष्य के लिये सार्थक कदम उठायें। इसलिये 2047 में जब भारत अपनी स्वतंत्रता की शती मना रहा होगा, तो उस समय की पीढ़ी अपने देश पर गर्व करेगी। राष्ट्रपति ने विश्वास व्यक्त किया कि भारत सरकार, राज्य सरकारें तथा समस्त देशवासी भारत के शताब्दी वर्ष को स्वर्ण युग बनाने के लिये एक साथ विकास पथ पर आगे बढ़ते रहेंगे।