कई विधायक धामी के लिए कर चके हैं सीट छोड़ने की पेशकश
देहरादून। उत्तराखण्ड में दस मार्च को आए नतीजों के बाद भाजपा को फिर से बहुमत मिला है। मगर सीएम कौन होगा इस पर अभी चर्चाओं और कयासबाजी का दौर जारी है।
उत्तराखड में लगातार दूसरी बार जीत हासिल कर भाजपा ने सभी मिथक को तोड़ दिए। इन सबके बीच सीएम पुष्कर सिंह धामी का खटीमा सीट से चुनाव हार जाना सबको चौंकाने वाला रहा।जिसके बाद से सीएम के चेहरे को लेकर चर्चाएं तेजी से आगे बढ़ रही हैं।
धामी के चुनाव हारने के बाद से कयास लगाया जा रहा है कि देवभूमि में किसी और को सीएम बनाया जा सकता है, लेकिन कई पार्टी विधायकों ने पुष्कर धामी के लिए अपना समर्थन जताया है।इतना ही नहीं उन्होंने धामी के चुनाव लड़ने के लिए अपनी सीट भी छोड़ने की भी बात कही है। पार्टी में कई ऐसे विधायक हैं, जो धामी को एक बार फिर से सीएम बनाना चाहते हैं।
चंपावत विधायक कैलाश गहतोड़ी और कपकोट विधायक सुरेश गड़िया के बाद अब भाजपा के कई और विधायकों ने कार्यवाहक मुख्यमंत्री धामी के लिए अपनी सीट छोड़ने की पेशकश की है। कई विधायक सीएम के लिए अपनी सीट छोड़ने को तैयार। उल्लेखनीय है कि रामनगर से विधायक दीवान सिंह बिष्ट और काशीपुर से नवनिर्वाचित विधायक त्रिलोक सिंह चीमा की भी पसंद धामी हैं। पूर्व शिक्षा मंत्री अरविंद पांडे ने पुष्कर सिंह धामी के मुख्यमंत्री बनाने का समर्थन किया है। उन्होंने कहा है कि सीएम पुष्कर धामी के नेतृत्व में उत्तराखड में भाजपाब हुमत के साथ जीती है। इसलिए अगर वह दोबारा मुख्यमंत्री बनते हैं, तो इस पर कोई भी आश्चर्य नहीं होना चाहिए। कई सियासी पण्डितों का कहना है कि जब धामी के नेतृत्व में उत्तराखड में भाजपा जीती है तो केवल उनकी हार मात्र से उन्हें खारिज करना सही नहीं होगा। उनके हार जाने का सीधा मतलब यह है कि उन्होंने पूरे प्रदेश में भाजपा की सरकार बनाने में मेहनत की है। इसलिए वह अपनी विधानसभा पर ध्यान नहीं दे पाए। धामी ऊर्जावान युवा हैं। पार्टी को चाहिए कि उन्हें एक बार फिर मौका दे। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि धामी चुनाव हार कर भी अपने विधायकों और नेताओं के दिलों को जीतने में कामयाब रहे हैं।तभी तो पार्टी में उनके समर्थन में लगातार आवाजें बुलंद हो रही है। धामी के समर्थन में खड़े पार्टी नेताओं की वजह उनका सरल स्वभाव, स्वच्छ छवि और सबको तालमेल के साथ लेकर चलना है।जिसकी वजह से महज 6 माह के कार्यकाल में उन्होंने कई बड़े फैसले लिए जो ना सिर्फ पार्टी की जीत की वजह बनी, बल्कि पार्टी में उनका कद भी बढ़ा । जिस समय सीएम धामी की हाथ में उत्तराखड की कमान सौंपी गई थी, उस समय उनके पास महज 6 माह का कार्यकाल शेष बचा था, जिसमें पार्टी नेताओं की नाराजगी, सरकार के प्रति एंटीकंबेंसी और विपक्ष के आरोपों से उन्हें पार निकलना था।जब धामी सीएम बने उस समय पूरे प्रदेश में आशा, टीईटी शिक्षक, सचिवालय संघ, उपनलकर्मी की हड़ताल से लेकर देवस्थानम बोर्ड के गठन से चारधाम पुरोहितों की नाराजगी चरम पर थी, लेकिन धामी ने धीरे-धीरे हर मुद्दों को बड़े ही शांति के साथ पूरे परिपक्व अंदाज में निपटा दिया। जहां सीएम धामी ने आशा कार्यकर्ताओं का वेतनमान बढ़ाया, वहीं सरकारी कर्मचारियों का गोल्डन कार्ड की समस्या हल करवाई।इसके साथ ही कई विभागों में सैंकडों रित्तिफ़यां निकालकर सरकार के विरोध में उठे स्वर को भी कम कर दिया।इसके अलावा देवस्थानम बोर्ड के मुद्दे पर जो पुरोहितों ने सरकार से आर-पार की लड़ाई ठान रखी थी, उस देवस्थानम बोर्ड को भंग कर पुरोहितों की भी नाराजगी को खत्म कर दिया। धामी सभी मंत्री, विधायक और पार्टी कार्यकर्ताओं को साथ लेकर चले, जिसकी वजह से आज वो अपनों के चहेते बने हुए हैं।यही वजह है कि धामी के चुनाव हारने के बावजूद पार्टी के कई विधायक और नेता उन्हें भावी सीएम के रूप में स्वीकारने को तैयार हैं। ऐसे में अब पार्टी हाईकमान किसी दूसरे चेहरे को मौका देती है या फिर से धामी के नाम पर मुहर लगाती है, यह आने वाले दो तीन दिन मेें साफ हो जाएगा। सीएम के लिए धामी के अलावा चुने गए विधायकों मेें से डॉ. धन सिंह रावत और सतपाल महाराज सहित कई अन्य नाम भी चल रहे हैं। सीएम पद के लिए कोटद्वार से चुनी गईं विधायक ऋतु खण्डूड़ी का नाम भी चर्चाओं में आ गया है। साभार गढ़वाल टाइम्स डॉट इन