अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के उपलक्ष में ‘एक रचनाकार – एक रचना कार्यक्रम’ का आयोजन
सीएसआईआर – भारतीय पेट्रोलियम संस्थान, देहरादून में अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस के उपलक्ष में एक रचनाकार – एक रचना कार्यक्रम का आयोजन किया गया. इसके अंतर्गत विभिन्न भारतीय भाषाओं के प्रतिष्ठित कवियों की एक-एक रचना तथा उसके हिन्दी सारांश का पाठ किया गया। इस आयोजन का शुभारंभ ‘जौनसारी धरेती ऊंचे पहाड़ों री धारा, बड़ा बांका मुल्क मेरा प्यारा जौनसारा। महासू शिवजी देवता मानेणा, साथे मानेणा पीर तेरा बोठा राज देवा थईने मंदिर… सेवा…’ श्री सूरत राम शर्मा द्वारा मंगलाचरण के साथ हुआ. संस्थान के निदेशक डॉ. अंजन रे ने इस कार्यक्रम की अध्यक्षता की. प्रो. कुमुदिनी नौटियाल, पूर्व प्रोफेसर हिंदी, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी, मसूरी तथा प्रो दिनेश चमोला ‘शैलेश’, प्रमुख, संस्कृत विभाग, उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय, हरिद्वार इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे. इस कार्यक्रम में संस्थान के हिंदी तथा हिंदीतर भाषी वैज्ञानिकों/अधिकारियों तथा शोधछात्रों द्वारा अपनी – अपनी मातृभाषा में कविता पाठ किया गया तथा हिंदीतर भाषी कविताओं का सारांश हिंदी में भी प्रस्तुत किया गया. इस कार्यक्रम में मुख्य रूप से उत्तराखंड की जौनसारी, कुमाऊनी, गढ़वाली भाषा के अतिरिक्त नेपाली, तमिल, तेलुगू मराठी, पंजाबी, मलयालम, बांग्ला, अवधि, भोजपुरी, मैथिली, मारवाड़ी, राजस्थानी, उर्दू तथा गुजराती भाषा/बोली की कविताओं का पाठ किया गया. संस्थान के निदेशक डॉ. अंजन ने अपने वक्तव्य में कहा कि इस कार्यक्रम का उद्देश्य भारत की इस भाषाई विविधता का संरक्षण और प्रचार–प्रसार है. उन्होने स्वयं भी प्रसिद्ध बांग्ला कवि नलिनी रंजन बेरा की कविता ‘शेरपा गान’ का पाठ किया और इसका हिन्दी अनुवाद कर उसका भी पाठ करते हुए विभिन्न भारतीय भाषाओं के साहित्य के अन्य भाषाओं में अनुवाद और देश के अन्य प्रान्तों के पाठकों तक पहुँच का महत्व प्रतिपादित किया। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि प्रो. कुमुदिनी नौटियाल ने अपने काव्य संग्रह ‘हंसी किराए की’ से एक कविता “सच कहो मेरे मन ……क्या कभी कभी तुम्हारी इच्छा नहीं होती आकाश में निर्बंध उड़ान भरने की, फिर क्यूँ नहीं उड़ लेते एक बार अपनी शक्ति को समेट कर असीम आकाश में” के पाठ के माध्यम से प्रतिभागियों का प्रोत्साहित किया। उन्होंने सभी को बधाई देते हुए कहा कि यह एक अद्भुत संयोग है कि विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी संस्थान तथा उसके अधिकारी कर्मचारी साहित्य के क्षेत्र में भी इस प्रकार पूरे उत्साह के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं तथा साहित्य रचना और अनुवाद का कौशल भी रखते हैं। हमारी संस्कृति के संरक्षण और प्रचार – प्रसार के लिए आवश्यक है हम अपनी मातृभाषा से जुड़ें ताकि हम अपनी संस्कृति की धरोहर को आगे बढ़ा सकें। मुख्य अतिथि प्रो. दिनेश चमोला ‘शैलेश’ ने भी अपने संबोधन में आईआईपी के साथी वैज्ञानिकों द्वारा किए गए प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि यह अद्भुत आयोजन है कि वैज्ञानिक संस्थान के विज्ञानी इतना सुंदर कविता पाठ भी करते हैं, रचना करते हैं और इसके द्वारा मातृभाषा, संस्कृति और साहित्य की भी सेवा कर रहे हैं, उसकी श्रीवृद्धि कर रहे हैं। उन्होने रचना ‘झंझा झकोर गर्जन थी, बिजली थी नीरद माला। पाकर के इस शून्य हृदय को – सबने आ डेरा डाला – गीत भी हूँ – गीत की झंकार भी मैं’ के माध्यम से प्रतिभागियों का हौसला बढ़ाया तथा कहा कि सभी ने इस कार्यक्रम में अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से सम्पूर्ण भारत की संस्कृति के इंद्र्धनुष को सजीव कर किया। कविता एक शास्त्र भी है और शस्त्र भी, जो आपको सतत परिष्कृत करता है। इस कार्यक्रम का संचालन संस्थान के वरिष्ठ हिंदी अधिकारी श्री सोमेश्वर पांडेय ने किया उन्होने इस पूरे सप्ताह संस्थान में हिंदी तथा मातृभाषा प्रचार-प्रसार को लेकर किए जा रहे सभी प्रयासों/कार्यों की जानकारी भी दी। संस्थान के वैज्ञानिक डॉ सुमन लता जैन, डॉ जी डी ठाकरे, डॉ बबिता बहरा, डॉ सेंथिल कुमार, डॉ सुनील सुमन, डॉ प्रणब दास, डॉ प्रेम लामा, डॉ राजकुमार सिंह एवं श्रीमती संध्या जैन, डॉ पोन्नकांति नागेंद्रम्मा, श्रीमती पद्मा कुमारी, डॉ श्रीमती ज्योति पोरवाल, श्रीमती कमला यादव, शोधछात्रा श्रीमती प्रतीक्षा जोशी तथा तकनीकी अधिकारी श्री रघुवीर सिंह और श्री वाला विशाल ने इस कार्यक्रम में भाग लिया तथा अपनी मातृभाषा में कविता पाठ करते हुए हिंदी में भावार्थ भी प्रस्तुत किया। श्री सूर्य देव, श्री देवेंद्र राय तथा श्री तिलक कुमार ने इस कार्यक्रम के आयोजन में महत्वपूर्ण सहयोग किया।।