स्वच्छ पर्यावरण स्वस्थ जीवन प्रकृति की समृद्धि हेतु बदले अपनी जीवन पद्धति -स्वामी चिदानन्द सरस्वती

स्वच्छ पर्यावरण स्वस्थ जीवन
प्रकृति की समृद्धि हेतु बदले अपनी जीवन पद्धति
-स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश, 24 फरवरी। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी अपनी विदेश यात्रा के पश्चात परमार्थ निकेतन पधारे, उन्होंने अपनी यात्रा की स्मृतियों को परमार्थ निकेतन परिवार और श्रद्धालुओं से साझा करते हुये कहा कि पूरे विश्व में ई-कचरा अप्रत्याशित गति से बढ़ रहा है जो कि मानवता और पर्यावरण दोनों के लिये घातक है। भारत में लगभग 95 प्रतिशत ई-कचरे का निस्तारण अनौपचारिक और अवैज्ञानिक तरीके से या तो जलाकर या एसिड के माध्यम से किया जाता है जो कि चिंतन का विषय है।
स्वामी जी ने कहा कि प्रदूषण से पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान को रोकने  के लिये कानून के साथ सोच और व्यवहार को बदलना अत्यंत आवश्यक है। किसी भी समाज को विकास करने के लिये बिना पर्यावरण को नुकसान पहुंचाये आगे बढ़ना अत्यंत मुश्किल है, परंतु विकास के नाम पर पर्यावरण को पूर्णतः नजरअंदाज नहीं किया जा सकता इसलिये विकास और पर्यावरण दोनों को ध्यान में रखते हुये वैकल्पिक रास्तों की तलाश करना अत्यंत आवश्यक है।
स्वामी जी ने कहा कि प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवनकाल में पर्यावरण के अनुकूल प्रबंधन करने की जिम्मेदारी लेनी होगी और इसके लिये प्लास्टिक कचरे के उत्पादन और उपयोग को कम करना होगा। हमें प्लास्टिक कचरे को फैलने से रोकने के साथ ही प्रबंधन हेतु स्थानीय निकायों को जिम्मेदारियां सौंपनी होगी। स्वामी जी ने बताया कि पर्यावरण की रक्षा हेतु दुनिया भर में जागरूकता और कार्रवाई को प्रोत्साहित करने के लिये स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी के मार्गदर्शन में ग्लोबल इंटरफेथ वाश एलायंस विभिन्न गतिविधियों का आयोजन करता है, परन्तु प्रदूषण को कम करने के लिये प्रत्येक व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी समझनी होगी।
स्वामी जी ने कहा कि धरती को हमारी आवश्यकता नहीं है परन्तु बिना उसके हमारे जीवन की कल्पना भी नहीं, की जा सकती इसलिये धरती का शोषण नहीं, पोषण करें, दोहन नहीं संवर्द्धन करें। हमारे ऋषियों ने  हमें प्रकृति के अनुरूप जीने का मार्ग दिखाया। प्राकृतिक और जैविक जीवन पद्धति अपनायें तथा हमें प्रकृति के साथ शांति और सामन्जस्यपूर्ण व्यवहार करना होगा तभी हमारी प्रकृति, संस्कृति और संतति बची रहेगी।
स्वामी जी ने कहा कि प्रकृति अपने आप को रीस्टोर कर सकती है, स्वयं समृद्ध हो सकती है परन्तु उसके लिये हमें भी अपनी जीवनशैली बदलनी होगी। जो कुछ भी प्रकृति के लिये नुकसानदायक है हमें उन चीजों का उपयोग करना बंद करना होगा, तभी तो वह अपने मूल स्वरूप में वापस जा सकती है। प्रतिवर्ष अरबांे टन प्लास्टिक, पेस्टिसाइड्स, जहरीली गैसें और अनेक ऐसी चीजें हैं जिनका उपयोग कर हम प्रकृति और पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहे हंै। आईये संकल्प ले कि प्रकृति के अनुरूप व्यवहार करेंगे।