इंदौर संभाग के खरगोन जिले में पनपा प्राकृतिक खेती का आत्मनिर्भर किसान मॉडल

इंदौर संभाग के खरगोन जिले में पनपा प्राकृतिक खेती का आत्मनिर्भर किसान मॉडल
एक हेक्टेयर व एक वर्ष में 70 फसलें लेने में किसान का अनुपम प्रयोग
45 दिनों से 45 वर्षों तक होगा कृषि से आय

इन्दौर : प्रदेश के कृषि क्षेत्र में खरगोन अपनी एक अलग पहचान रखता है। यह पहचान समय-समय पर किसानों द्वारा अपनी दूरदृष्टि और मेहनत के बल पर बनी है। जिले में बिस्टान क्षेत्र के अविनाश दांगी ने किसानों को आत्मनिर्भर बनाने कि दिशा में कृषि का आत्मनिर्भर मॉडल तैयार किया है। इस मॉडल का सबसे खुबसुरत पहलु यह है कि इससे हर मौसम में लगातार आय निश्चित रूप से सम्भव है। गत जून माह में 1 हेक्टेयर (ढाई एकड़) कृषि भूमि में अनुपम मॉडल की शुरुवात की है। अविनाश पिछले 18 वर्षों से अपने पिताश्री के साथ हाथ बंटाते हुए उन्नत कृषि के अनूठे आयाम गढ़ चुके है। उन्हें अब तक 5 जिला स्तरीय पुरुस्कार व 5 निजी कंपनियों के पुरुस्कार के साथ 1 जैव विविधता के क्षेत्र में राज्य स्तरीय सम्मान और आर्गेनिक इंडिया द्वारा वर्ष 2019 में नेशनल फ़ायनलिस्ट की टॉप टेन की सूची में शामिल किया है। अब वे अपने सुपुत्र के साथ मिलकर कृषि की उभरती नई अवधारणा को सफल बनाने में जुटे है। इसकी शुरुआत इन्होंने पिछले जून से की थी जो जून 2022 तक चलेगी। इस एक वर्ष में वे 70 तरह की विभिन्न फसलों की खेती का लाजवाब प्रयोग कर रहे है। इनके खेत में अभी 18 तरह की सब्जियां 32 तरह के फल और 4 मसाले वाली फसलें लगी है। ये सभी फसलें एक या दो नहीं बल्कि भरपूर मुनाफा दे सके इतनी संख्या में है। फसले करीब 360 फीट लंबी 21 कतारों रूप में हैं। इन्होंने इन फसलों के प्रबंधन के लिहाज से पर्याप्त संख्या में लगाई है। जिससे कि हर फसल को एक दुसरी फसल से सहयोग मिल सके। जून से दिसम्बर तक हरा धनिया, मूंगफली, उडद, गेंदाफूल और स्वीट कॉर्न की फसले ले चुके है। जिससे उन्हें लगभग 1 लाख का लाभ हुआ है। वर्तमान में अविनाश के मॉडल में 53 फसलें देखी जा सकती है। अविनाश ने यह मॉडल कृषि और उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों के सहयोग से तैयार कर रहे है।

45 दिनों से 45 वर्षों तक खेती से आय का फार्मूला

अविनाश बताते हैं कि जैविक व प्राकृतिक खेती के संदर्भ में यह मॉडल ’’मल्टी लेयर मल्टी क्रॉप फ्रूट फॅारेस्ट फैमिली फार्मिंग मॉडल’’ है। मल्टी लेयर से मतलब है भूमि के अंदर से उपर तक 5 से 6 परतों में विभिन्न फसलों की खेती करना है। ऐसे मॉडल में किसी भी परिवार की जरूरतों के मुताबिक हर सीजन में हर फल सब्जी अनाज या दालें उपलब्ध होगी। इस मॉडल में 4 से 5 वर्ष में प्राकृतिक पॉली हॉउस का निर्माण होगा। इसी प्रबंधन के साथ हर एक फसल को लगाया गया है। अभी मौसम के अनुकूल ही फसले लगाई गई है। इस मॉडल में भी ड्रीप और फ्लड सिंचाई का ही उपयोग किया जाता है।

फास्ट फूड में शामिल सब्जियों को भी किया शामिल

अविनाश ने इस मॉडल में हर एक पेड़ की उपयोगिता और उससे उपयोग लेने के प्रबंधन पर विचार कर स्थान और दूरी पर लगाया है। इनके खेत न सिर्फ भारतीय परमपरा में उपजाने वाली फसलों को शामिल किया है। बल्कि दक्षिणी चीनी व पूर्वी एशिया में उपजाने वाली फसलों को भी तरजीह दी गई है। खासतौर इन दिनों फास्ट फूड के प्रचलन में उपयोग में आने वाली सब्जियों को भी उगाया गया है। इसमें ग्रीन व ब्लेक बॉकचोय, ग्रीन व रेड लेट्यूस, बाकला, बरबति, ब्रोकली, और फ्रेंच बिन्स के अलावा फूलगोभी, लाल व सफेद मूली रेड व हरी पत्तागोभी, पर्पल, रंगीन व ऑरेंज फूलगोभी, पालक और मेथी आज भी देखी जा सकती है। वही अभी इनके खेत में अभी 252-252 पपीता, सुरजना और केला, 122-122 चार प्रजाति के सीताफल व सात प्रजाति के अमरूद, 44-44 नारियल, मोसंबी, संतरा और आम, 20 निम्बू, 14-14 कटहल, चीकू, 12-12 सेवफल और अंजीर, 10-10 लाल व हरा आँवला, जामुन, अनार, वॉटर एप्पल और 4-4 लीची, चेरी, फालसा, काजू और रामफल के पौधे है। अभी अरहर, चना, हल्दी और अदरक निकालने की स्थिति में है। उनके स्थान पर खीरा, करेला, धनिया, टमाटर, मुंग और औषधियों के पौधे वाली फसलो को लगाने की तैयारी की जा रही है।

मॉडल के फायदे

इस मल्टी लेयर मल्टी क्रॉप से कई तरह के फायदे है। कुछ फायदे भूमि को है तो कुछ फायदे सीधे वातावरण को भी है। एक ओर जहां इस मॉडल से मानव या किसान को फायदा है तो दूसरी ओर अनगिनत पक्षियों की प्रजाति लिए भी शरणगाह के रूप में लाभ है। इसके अलावा प्रकृति में संतुलन, जैव विविधता भी बनी रहती है। पोषक तत्वों का प्रबंधन, कीट प्रबंधन, पानी का बचाव, कम लागत में अधिक उत्पादन, समय की बचत और परिवार की आवश्यकता वाली सभी जरूरतें एक ही स्थान पर उपलब्ध होती है।

किसानों के लिए बनाएंगे प्रशिक्षण प्रक्षेप

अविनाश का कहना है कि आगामी समय में किसानों के लिए उन्नत कृषि को लेकर बेहतर कार्य करना उनका प्लान भी है और सपना भी है। इसमें उन्नत कृषि मॉडल बनाकर जागरूक किसानों को तकनीक और आवश्यक सहायता व मदद करना है।