राष्ट्रीय किसान मंच ने केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से कृषि अनुसंधान केंद्र दिल्ली में मुलाकात कर एक राष्ट्र-एक बाजार और कृषि उन्नयन सुविधा एवं निम्न बिंदुओं पर विचार विमर्श किया

राष्ट्रीय किसान मंच ने केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से कृषि अनुसंधान केंद्र दिल्ली में मुलाकात कर एक राष्ट्र-एक बाजार और कृषि उन्नयन सुविधा एवं निम्न बिंदुओं पर विचार विमर्श किया

प्रदीप कुमार

श्रीनगर गढ़वाल। राष्ट्रीय किसान मंच के राष्ट्रीय प्रवक्ता भोपाल सिंह चौधरी ने आज एक प्रतिनिधि मंडल के साथ केन्द्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान से कृषि अनुसंधान केंद्र दिल्ली में मुलाकात कर “एक राष्ट्र-एक बाजार” और कृषि उन्नयन एवं न्यूनतम समर्थन मूल्य सुविधा पर हुई बैठक जिसमें निम्न बिंदुओं पर विचार विमर्श किया गया। 1.यह कि दो दशको से अधिक समय से जिन सुधारों की प्रक्रिया के आधारों पर. 05.06.2020 को “एक राष्ट्र-एक बाजार” के नाम पर जिन तीन कानूनों को केंद्र सरकार लेकर आयी और 29.11.2021 उनको निरस्त करने के लिए संसद को विधेयक पारित करने पड़े थे। इन्ही सुधारों के अंतर्गत केंद्र द्वारा आदर्श कृषि उपज एवं पशुपालन मंडी (उन्नयन एवं सुविधा) अधिनियम,2017 का प्रारूप तैयार किया गया,उसे केंद्र सरकार ने लागू कराने के लिए उतनी ही रूचि दिखाई होती तो देश के किसानो के चेहरे खिले होते। किन्तु कृषि उपजों के दाम देने के लिए उनके द्वारा किये गए तथाकथित सुधारों को भी लागू करने को सरकार तैयार नहीं है। राज्यों ने भी इस विषय में किसानो के साथ बेरुखी ही दिखाई।
2.यह की भारत सरकार द्वारा संसद में प्रश्नोत्तर में यह अवगत कराया गया है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटीड मूल्य है।किसानों को अपनी उपज न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों पर बेचने की विवशता को रोकने के लिए सरकार खरीद सुनिश्चित कर विकल्प उपलब्ध करवाती है। भारत सरकार का यह कथन सच्चाई से कोसों दूर है। कथनी-करनी में अंतर होने पर अविश्वास जन्म लेता है, जो किसी भी सरकार के लिए शुभ नहीं रहता है।
3.यह कि किसानों को उनकी उपजों के सरकारी घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य प्राप्ति के लिए आदर्श कृषि उपज एवं पशुपालन मंडी (उन्नयन एवं सुविधा) अधिनियम,2017 के प्रारूप को वर्ष 2018 में राज्यों को प्रेषित किया गया था। तदन्तर राजस्थान राज्य कृषि उपज एवं पशुपालन मंडी (उन्नयन एवं सुविधा) अधिनियम,2018 का प्रारूप तैयार किया था। तब भी किसानों को अपनी उपजों को घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों पर बेचने को विवश होना पड़ता है। जिससे अनेकों बार किसानों को अपनी उपजों की लागत मल्य भी प्राप्त नहीं होता है जैसा कि निम्न सारणी में दर्शाया हुआ है।
4.यह कि आपके राज्य में उत्तराखंड कृषि उपज मंडी (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 2011 की धारा 26 (2) (XXI) में न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों में क्रय-विक्रय को रोकने के लिए आज्ञापक प्रावधान विद्यमान है। जिसमे कृषि उपजों का क्रय-विक्रय राज्य द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम नहीं होने का प्रावधान है। इसकी पालना नहीं होने के कारण किसानो को अपनी उपजें न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों में विक्रय करने को विवश होना पड़ता है। इस प्रावधान में राज्य द्वारा पोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य का उल्लेख किया गया है। यद्यपि केंद्र द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य के आधार पर राज्य की ओर से अधिसूचना जारी की जाती है तथापि राज्य के साथ केंद्र शब्द को जोड़ना श्रेयस्कर रहेगा।
5.यह कि राज्य की समृद्धि के लिए मांग-आपूर्ति के चक्र को गति देने के लिए अधिकतम उपभोक्ताओं की जेब में पैसा आना आवश्यक है। इसके लिए श्रेयस्कर तो यह है कि किसानो को उनकी उपजओं के लाभकारी मूल्य भी प्राम हो,जब तक यह संभव नहीं हो तब तक न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्राप्ति तो सुनिश्चित हो। इसके लिए कृषि उपज मंडी अधिनियम एवं नियमों में उक्तानुसार संशोधन करना जनहित में है।
6.यह कि उक्त सन्दर्भ में पूर्व में दिनांक 28.03.2022 को ई-मेल द्वारा पत्र प्रेषित किया था किन्तु उसका जवाब अभी तक प्राप्त नहीं हुआ और न ही वार्ता के लिए समय प्रदान करने की सुचना प्राप्त हुई है। अतः ज्ञापन प्रेषित कर विनम्र प्रार्थना है कि किसानो को न्यूनतम समर्थन मूल्य प्रदान करने के लिए उत्तराखंड कृषि उपज मंडी (विकास एवं विनियमन) अधिनियम,2011 की धारा 26 (2) (XXI) में न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दामों में क्रय-विक्रय को रोकने के लिए आज्ञापक प्रावधान की पालना सुनिश्चित कराई जाये एवं राज्य के साथ केंद्र शब्द जोड़ा जाए। कौन देगा न्यूनतम समर्थन मूल्य छत्तीसगढ़ एवं मध्य प्रदेश में आज्ञापक-बाध्यकारी प्रावधान है किंतु उनके अधिनियमों में राज्यों द्वारा ही न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा का उल्लेख है। उत्तराखंड में कृषि उपज और पशुधन विपणन (प्रोत्साहन एवं सुविधा) अधिनियम,2020 में आज्ञापक प्रावधान थे। उत्तराखंड उच्च न्यायालय की खंडपीठ द्वारा उसकी पालना संबंधी निर्णय दिनांक 26-4-2018 के उपरांत अधिनियम को निरस्त कर दिया गया तथा उत्तराखंड कृषि उत्पाद मंडी (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 2011 को पुनर्जीवित किया गया। राज्यों के विधानों में प्रावधानों से संबंधित अंग्रेजी की सारणी संलग्न है। देश के किसानों की ओर से किसान महापंचायत द्वारा सभी राज्यों को पृथक् पृथक् पत्र प्रेषित कर आज्ञापक प्रावधान करने एवं उसके क्रियान्वयन के लिए नियम बनाने का आग्रह किया गया है,जिसमें नीलामी बोली न्यूनतम समर्थन मूल्य से ही आरंभ हो सकेगी। इस प्रकार राज्यों द्वारा किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य की प्राप्ति के लिए कानून बनाए जा सकते हैं। कृषि उपज मंडियों से संबंधित कानून के द्वारा यह सुगम एवं संवैधानिक है। इस बैठक में किसान मंच की राष्ट्रीय प्रवक्ता भोपाल सिंह चौधरी के साथ रूपेश नेगी छात्र संघ उपाध्यक्ष गढ़वाल विश्वविद्यालय,कांग्रेस नेता आयुष भंडारी,टिंकू राणा, रोहित बिष्ट आदि नेता मौजूद रहे।