प्रणाम का महत्व–पुराणवक्ता पं.प्रकाश चन्द्र चमोली

प्रदीप कुमार

श्रीनगर गढ़वाल आज पाठकों को प्रणाम के महत्व में पुराणवक्ता पं.प्रकाश चन्द्र चमोली वृस्तित जानकारी दे रहे हैं। प्रणाम-एक प्रेम है,प्रणाम -एक अनुशासन है,प्रणाम-आदर सिखाता है,प्रणाम-में शीतलता है,प्रणाम-से सुविचार आते हैं,प्रणाम-झुकना सिखाता है,प्रणाम-क्रोध मिटाता है,प्रणाम-आंसू धो देता है,प्रणाम-अहंकार मिटाता है,प्रणाम हमारी संस्कृति और सभ्यता है। पद्मपुराण में एक आख्यान भृगु के पुत्र मृकंडू का है,जिन्होंने प्रणाम के बल पर ब्रह्मा की आयु प्राप्त की तथा इस बात को सिद्ध किया कि जो नित्य प्रणाम करने का स्वभाव वाला और बृद्धों की सेवा करने वाला है,उसकी आयु,विद्या,बुद्धि,और बल ये चारों बढ़ते हैं,विधुर नीति में कहा गया है।(अभिवादनशील्य नित्यं वृद्धोपसेविन:। चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्धमो॔ यशो बलम।।)
इसी सन्दर्भ में यह भी कहा गया कि जब कोई वृद्ध स्त्री/पुरुष निकट आते हैं तो उस समय नव युवक के प्राण ऊपर उठने लगते हैं,फिर जब वह वृद्धों के स्वागत में उठकर खड़ा होता है और प्रणाम करता है तो पुन: प्राणों को वास्तविक रूप प्राप्त होता है,निश्चय ही प्रणाम समस्त दु:खों का सम्मान करने वाला तथा सर्व पापों का विनाशक है,प्रणाम करने की अपनी एक विधि है। उत्तम रीति यह है कि दोनो हाथों को जोड़ कर मस्तक झुकाया जय तथा जिस समाज में प्रणाम के समय जो करने की प्रथा हो कही जाय,चिल्ला कर व पीछे से प्रणाम नही करना चाहिए सामने आकर शांति पूर्वक प्रणाम करना चाहिए,जो गुरुजन घर में हैं,उन्हे सबेरे उठाते ही प्रणाम करना चाहिए,प्रभु राम प्रात:काल उठते हि गुरूजनों को प्रणाम करते थे,तुलसी के शब्दों में प्रातःकाल उठी कै रघुनाथा,मात पिता गुरु नवाहि माथा इसी के साथ यह भी निर्देशित है कि जब कोई भजन कर रहा हो,स्नान कर रहा हो,तब उसे प्रणाम नहीं करना चाहिए,उन्हे इन कार्यों से निवृत होने पर ही प्रणाम करना चाहिए,प्रणाम करने पर गुरुजनों के लिए अपेक्षित है कि वह आयुष्मान भव: का आशीर्वाद दे,आशीर्वाद पाकर हमारा हृदय प्रफुल्लित हो उठता है,इससे आत्मविश्वास जागृत हो जाता है,जैसे सारी शक्तियां वायु,विद्युत,आत्मा आदि अदृश्य है,उसी प्रकार गुरुजनों के आशीर्वाद की शक्ति भी अदृश्य है,वह हमारी शांति का प्राप्त हुआ,शक्ति केंद्र है,सिद्धि के लिए आशीर्वाद पाना इस देश की प्राचीन परम्परा है,हमारी संस्कृति अध्यात्मता से ओतप्रोत है,श्रद्धा और विश्वास के होने पर यह धारणा दृढ़ हुए बिना नहीं करती कि ईश्वर सर्व व्यापक है,तथा सभी प्राणियों के हृदय में स्थित है,यह विश्वास संकीर्णताओं से ऊपर उठा देता है,इस लिऐ हमारे शास्त्रों में प्रणाम करने की परंपरा है।