नई शिक्षा नीति में शिक्षा का लक्ष्य व्यापक : प्रो.जोशी*

*केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के तीन परिसरों में कार्यशालाएं शुरू*
*यूजीसी के सचिव ने श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर से किया कार्यक्रमों का उद्घाटन*

प्रदीप कुमार

देवप्रयाग/श्रीनगर गढ़वाल। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय की तीन शास्त्र कार्यशालाओं का एक साथ उद्घाटन किया गया। देवप्रयाग,जयपुर और शृंगेरी परिसरों में एक माह तक चलने वाली इन कार्यशालाओं का शुभारंभ विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के सचिव प्रो.मनीष आर.जोशी और केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.श्रीनिवास वरखेड़ी ने देवप्रयाग परिसर से किया। शृंगेरी और जयपुर परिसर इस कार्यक्रम में आभासीय पटल पर जुड़े रहे।
श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर,देवप्रयाग में न्यायशास्त्र प्रशिक्षण वर्ग, जयपुर परिसर की व्याकरण तथा शृंगेरी परिसर की वेदांत कार्यशाला का उद्घाटन करते हुए यूजीसी सचिव प्रो.मनीष आर.जोशी ने कहा कि हमारी प्राच्यविद्या संस्कृत के संरक्षण और प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देने के लिए इस प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन नितांत आवश्यक है। केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय संस्कृत शास्त्रों के ज्ञान को बांटने का उत्कृष्ट और सराहनीय कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि नई शिक्षा नीति में शिक्षा प्राप्त करने के उद्देश्य को बहुत व्यापक कर दिया गया है। अब शिक्षा का उद्देश्य केवल निजी आकांक्षाओं की पूर्ति करना नहीं,अपितु संपूर्ण विश्व की समस्याओं का समाधान करना तथा पूरी मानव जाति का कल्याण करना है। यह हमारे भारत की सदियों पुरानी सोच भी है। अतः आज हम विद्यार्थियों को भविष्य की समस्याओं के समाधाकर्ता के रूप में देख रहे हैं। सारस्वत अतिथि रूप में प्रो.के.ई.देवनाथ और प्रो.बृजभूषण ओझा ने संबोधन किया। विशिष्ट अतिथि रूप में हावाई विश्वविद्यालय के आचार्य प्रो.अरिंदम चक्रवर्ती के साथ ही प्रो.मणिद्राविड शास्त्री तथा प्रो.श्रीकृष्ण शर्मा ने संबोधित किया। संयोजक प्रो.कुलदीप शर्मा ने जयपुर परिसर से प्रास्ताविक प्रस्तुत किया। अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो.श्रीनिवास वरखेड़ी ने कहा कि कार्यशालाओं में देश के कोने-कोने से प्रतिभाशाली छात्र आए हैं। ऐसे में ये कार्यक्रम न केवल ज्ञानार्जन के लिहाज से, अपितु भारत की विभिन्नता में एकता वाली संस्कृति और विभिन्न भाषाओं को जानने के लिहाज से भी उपयोगी साबित होंगे। उन्होंने कहा कि अकेले के बजाय सामूहिक रूप से अध्ययन करने के अनेक लाभ होते हैं।श्रवण,मनन,चर्चा इत्यादि ज्ञान को प्राप्त करने में सहायक होते हैं और जब ज्ञान की प्राप्ति होने लगती है तो अहंकार नष्ट होने लगता है। उन्होंने कहा कि श्रद्धा और तर्क एक साथ चलते हैं। दोनों की अपनी असीम शक्ति और सामर्थ्य होती है। कार्यक्रम के आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए श्री रघुनाथ कीर्ति परिसर,देवप्रयाग के निदेशक प्रो.पीवीबी सुब्रह्मण्यम ने देश के विभिन्न भागों से कार्यशाला में भाग लेने आए प्रतिभागियों और प्राध्यापकों के लिए समुचित सुविधाएं जुटाई गई हैं। यूजीसी सचिव प्रो.जोशी तथा कुलपति प्रो.वरखेडी़ ने प्रतिभागी छात्रों को अध्ययन के लिए पुस्तकें प्रदान कर उनके साथ संवाद भी किया। देवप्रयाग परिसर में कार्यक्रम का संचालन जनार्दन सुवेदी ने किया। इस अवसर पर स्थानीय संयोजक डॉ.सच्चिदानंद स्नेही,डॉ.ब्रह्मानंद मिश्रा,डॉ.सुरेश शर्मा,डॉ.अमंद मिश्र,डॉ.अनिल कुमार,डॉ.वीरेंद्र सिंह बर्त्वाल,डॉ.अंकुर वत्स,डॉ.अरविंदसिंह गौर,डॉ.आशुतोष तिवारी,डॉ.श्रीओम शर्मा,डॉ.शैलेंद्र नारायण कोटियाल,डॉ.सुशील प्रसाद बडोनी,पंकज कोटियाल,डॉ.मनीषा आर्या,डॉ.सुधांशु वर्मा,डॉ.मनीष शर्मा आदि उपस्थित थे।