जीवन में सारथी हो तो प्रभु कृष्ण सा और साथी हो तो वह भी कृष्ण सा हो-स्वामी चिदानन्द सरस्वती

विश्व विरासत दिवस
हमारे सभी विरासत स्थल हमारे राष्ट्र की अमूल्य संपदा
जीवन में साधना और साधनों का एक सेतु हो

ऋषिकेश, 18 अप्रैल। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज ‘विश्व धरोहर दिवस’ के अवसर सांस्कृतिक-ऐतिहासिक, प्राकृतिक और आध्यात्मिक स्थलों, विरासतों और धरोहरों के संरक्षण का संदेश देेते हुये कहा कि ये स्थल हमारे पूर्वजों की दी हुई अनमोल विरासत है इनका संरक्षण और देखभाल करना अत्यंत आवश्यक है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति, संस्कार, परम्परायें, शास्त्र, दर्शन और हमारे ऐतिहासिक, सांस्कृतिक व आध्यात्मिक स्थल हमारी वास्तविक धरोहर हैं। इनके अस्तित्व को बनाये रखने के लिये एकजुटता जरूरी है।
हमारी धरोहर हमारे वन, पर्वत, झील, मरुस्थल, ग्लेशियर और नदियाँ भी हैं इन्हें संरक्षित करना मानवता के लिए अत्यंत आवश्यक है। हमारे सभी विरासत स्थल हमारे देश की अमूल्य संपदा हंै इनका संरक्षण भावी पीढियों और मानवता के हित के लिये नितांत आवश्यक है।
श्रीमद्भागवत कथा के दिव्य मंच से स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि कथायें, प्रभु का सुन्दर चरित्र और हमारे ऋषि हमारी धरोहर है। साथ ही हमारे युवा भी हमारी धरोहर है। इस अवसर पर स्वामी जी ने कथा कल्चर और क्लब कल्चर के बीच के अन्तर को बताते हुये कहा कि कथा कल्चर भीतर की यात्रा कराती है और क्लब कल्चर बाहर की यात्रा कराता है। कथा अपने लिये नहीं समाज के लिये जीना सिखाती है। जीवन में साधना और साधनों का एक सेतु हो तो जीवन में प्रसन्नता भी होती है और सफलता भी होती है। स्वामी जी ने कहा कि जीवन में सारथी हो तो प्रभु कृष्ण सा और साथी हो तो वह भी कृष्ण सा हो। श्री कृष्ण के जीवन में अनेक परिस्थितियाँ आयी परन्तु उनकी बांसुरी सदैव बजती रही, वैसे ही हमारे जीवन का संगीत भी हमेशा बजता रहना चाहिये।
स्वामी जी ने कहा कि किसी भी राष्ट्र का भविष्य उसके इतिहास की नींव और वर्तमान की इमारत पर आधारित होता है। देश का इतिहास जितना गौरवमयी होगा उसका भविष्य भी उतना ही स्वर्णिम होगा। इतिहास का संरक्षण कर हम उज्वल भविष्य का निर्माण कर सकते है। प्राचीन काल में बनी इमारतें, मन्दिर, लिखे गए शास्त्र और साहित्य को हमेशा जीवंत और जाग्रत रखकर प्राचीन संस्कृति की सुदृढ़ नींव पर सुरक्षित भविष्य का निर्माण किया जा सकता है।
स्वामी जी ने कहा कि वर्तमान समय में हमारी महत्वपूर्ण विरासत हमारे जल स्रोत और विलुप्त हो रहे प्राणी एवं वनस्पतियां हैं जिनका संरक्षण किये बिना धरती पर मानव जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। विलुप्त हो रहें जीव और वनस्पतियों के साथ आध्यात्मिक, ऐतिहासिक और सांस्कृतिक इमारतों के मूल को सुरक्षित रखना हम सभी की जिम्मेदारी है परन्तु विडंबना तो यह है कि हमारे द्वारा ही इन्हें नष्ट किया जा रहा है जो चितंन का विषय है।
सुश्री जया किशोरी जी ने आज की श्रीमद्भागवत कथा में प्रभु श्री कृष्ण के जन्म की दिव्य कथा व समुद्र मंथन का प्रसंग सुनाया।
इस अवसर पर श्रीमद्भागवत कथा के आयोजक दिल्ली से आये श्री पीडी अग्रवाल जी, श्रीमती सुलोचना जी, मानसी, सौरव अग्रवाल, विनती अग्रवाल, प्रियंका स्वरूप, तिलक स्वरूप, प्रीति स्काइल्स, ज्योफ स्काइल्स, शिकागो और अग्रवाल परिवार के सदस्य मंत्रमुग्ध होकर कथा का श्रवण करने के साथ विश्व विख्यात गंगा आरती, प्रातःकाल यज्ञ और परमार्थ निकेतन में होने वाली विभिन्न आध्यात्मिक गतिविधियों का आनंद ले रहे हैं।