प्रदीप कुमार
श्रीनगर गढ़वाल हम अपने विवेक और प्रज्ञा का सही प्रयोग करके अनेक भौतिक उपलब्धियों के साथ ही यस, कीर्तिमान – प्रतिष्ठा पा सकते हैं, इसके लिए सम्भावनाओं का विशाल समुद्र का भी निरंतर विस्तार लिए हुए हैं, चिंतन और विचारो से आचरण की पृष्टभूमि निर्मित होती है, जरूरी है हमे इसे सही दिशा देने की, हम अपनी सात्विक सोच से प्रगति का मार्ग प्रशस्त कर सकते हैं, इसके लिए पुरुषार्थ करने का अनुकूल वातावरण मिलता चला जाता है।जीवन की सम्पूर्णता के लिए भौतिक उपलब्धियों के साथ-साथ आध्यात्मिक चेतना का भी मार्ग प्रशस्त होना चाहिए, जिसके नैतिक और मानव मूल्यों के प्रति सम्पूर्णभाव की अवश्यकता पड़ती है।
यह शरीर और इससे जुड़ा जीवन केवल अपने लिए नहीं होता है, सामाजिक दायित्वों का ईमानदारी से निर्वहन करना भी जीवन की सम्पूर्णता के अंतर्गत आता है, क्योंकि इसके साथ कुछ नहीं जाना है, सब यहीं पर पड़ा रह जाना है, अतः हम आचरण और व्यक्तित्व की उत्कृष्टता की दिशा में कटौती क्यों करे। सेवा भाव तथा उदारता के साथ ही सद्गुणों की अभीवृति के लिए, निरंतर प्रयत्नशील रहना चाहिए, क्योंकि अवसर निकल जाने पर फिर पछताना न पड़े, सीखने की कोई उम्र नहीं होती, यदि सीखने की कोई इच्छा होती जीवन भर सिखा जा सकता है,वैसे सदभावना का परिचय दूसरों के सुख दुःख में भागीदार बन कर दिया जा सकता है। भाव हमेसा आध्यात्मिकता की पहचान है, उत्कृष्ट चिंतन और विचारों से य़ह पोषित होती है, हम अपने आचरण और सदविचारों से अपने आसपास के वातावरण को तो स्वस्थ और स्वच्छ रख ही सकते हैं, जिससे अपने साथ साथ अन्य लोगों का भी भला हो सके, मानव जीवन एक बहुमूल्य सम्पदा है, इसके लक्ष्य के पल-पल, कण-कण,को बचाना है, यही सम्पदा है, और अच्छे कार्यों में लगाना है, जीवन का उद्देश्य परोपकारी होना चाहिए, दिनचर्या को इतना नियमित रखना चाहिए कि उसमें समय की कमी न नज़र आये,और मनमें हो समर्पण ही जीवन हो, इसमें अपार संभावनाएं हैं, उपयोग कर के देखिये।
इसी प्रकार अपनी कल्पनाओं, विचारों में भी केवल रचनात्मकता का ही समावेश हो, य़ह सभी बाते हमे अपने जीवन की सम्पूर्णता की ओर ले जाते हैं, सादा जीवन उच्च विचार के सिधांत को अपना कर हम जीवन में आदर्शों के पुंज स्थापित कर सकते हैं, अच्छा हो कि हम इस जीवन शैली को प्रत्येक प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति अपनाये और अपने सम्पर्क में आने वाले लोगों को इसके लिए प्रेरित करे, ताकि वह अपना भला करने के साथ-साथ समाज का भी भला कर सके, जीवन की सम्पूर्णता इसी में निहित है कि जब अन्य सुखी होंगे तभी हम भी सुखी रह पाएँगे, ज्ञानार्जन ही सच्चे अर्थों में सुख संपन्न बनाता है, योग्यता, क्ष्मता,विशेषता के अंकुर तो सभी मे फूटते हैं, किन्तु इनको विकशित करने की क्षमता किसमें है और कोण कर्ता है, कर सकता है, या कर रहा है, यही महत्वपूर्ण होना चाहिए, ये सा मेरा मानना है।