शरीर और चेतना–लेखक-एम.एस.रावत

प्रदीप कुमार

श्रीनगर गढ़वाल
जीवन का अर्थ सामाजिक सबंध है, बिना सम्बाद, या संचार के सम्बन्ध टूट जाएंगे, और जीवन ढह जायेगा, बिना स्वस्थ मन के कोई स्वस्थ शरीर-अन्य व्यक्तियों सम्बाद का अच्छा तरीका नहीं बन सकता, स्वस्थ या अच्छे मनके बिना अच्छा शरीर व मन का होना नितांत आवश्यकता होती है,अस्वस्थ शरीर व्यक्ति की मानसिक शक्तियों को स्थूल स्तर पर ही लगाये रहता है, फलत: व्यक्ति शरीर के अतिरिक्त अन्य किसी विषय ऐ संबंध में सोच भी नहीं सकता, पीड़ा स्वार्थ परता को जन्म देती है, ज़ब कोई व्यक्ति सतत किसी शारीरिक कष्ट से पीड़ित होता है तो उसके लिये संभव नहीं होता कि वह दूसरों कि और ध्यान दे सके प्रतेक मनुष्यके पास दुसरो को देने की ओर ध्यानदे सके प्रतेक मनुष्यके पास दूसरों को देने के लिये कुछ न कुछ होता अवश्य है,यदि कोई व्यक्ति कष्ट के कारण दूसरों को अपनी सेवाये अर्पित नहीं करता है तो निश्चित ही वह अस्वस्थ है,
पीड़ा व कष्ट से मुक्ति पाने के लिये जीवन को शारीरिक पक्ष से अधिक श्रेष्ठ आयाम को खोजने का प्रयास करना चाहिये, ज़ब मनुष्य की आत्मविश्लेषण प्रारम्भ करता है, तो वह अपने कोसमझना भी प्रारम्भ कर देता है, तब उसको यह ज्ञान होने लगता हैकि वह केवल शरीर नहीं है, वह शरीर के साथ इतने दीन रहचुका है कि वह शरीर से अपने को भिन्न नहीं समझता तथा शरीर को ही वह सर्वस्व समझने लगता है, यह विश्वास इतना दृढ होगाया होता है कि व्यक्ति चाहे जितना भी अध्ययन करे, चाहे जीतनी उस को शिक्षा प्रदान करे, लेकिन उस व्यक्ति कि सम्पूर्णत: चेतना देह भाव के चारों ओर केंद्रित हो गई होती है, वस्तुतः शरीर वायुयान के अड्डे के समान है, जिसमे आत्मा रूपी यान उतरता है,उड़ता है, कुछ देर बाद कुछ भी सोचना या समझना बंद कर दीजिये, आपको शीघ्र है मालूम होगा कि आपका शरीर खड़े होने का काम भी नहीं कर रहा है? अपितु आपके शरीर के अंदर कोई और है जो हड्डियों,मांस के ढेर को खड़े होनेका आदेश देता है, शरीर तो साधन का मात्र एक उपकरण है, जो आदेश का पालन करता है।
ज़ब व्यक्ति शूक्षम रूपसे अपना आत्मा निरिक्षण करता है, तब ज्ञान के चक्षु खुलते हैं कि शरीर के अंदर एक केंद्र विन्दु है, जिसमे इतनी शक्ति होती है, जिसके कारण व्यक्ति दृढ़ता से खड़ा हो लेता है, शक्ति से बैठ लेता है, चलता, फिरता, व प्रतीक्षा, अथवा जो कुछ भी करता है कर सकता है, इस केंद्र में इतनी क्षमता है कि वह आपका सबसे बड़ा मित्र है, व सबसे बाद शत्रु, व रोग का सबसे बड़ा मूल करक बनता है,
इसलिये अच्छा सोचे अच्छा बोले अच्छी तरह समाज की सेवा में अपना तनमन लगाये रहिये और स्मरण करते रहिये।