Delhi(PIB) देशभर में इन दिनों ‘स्वच्छता ही सेवा’ अभियान के अंतर्गत स्वच्छता के लिए एक ‘जन आंदोलन’ चल रहा है, जिसमें विभिन्न राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लोग ‘स्वच्छ भारत’ बनाने के लिए बड़ी संख्या में भाग ले रहे हैं। इस आंदोलन में सभी राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के लोगों ने अपने-अपने तरीके से योगदान दिया है। ऐसी ही एक कहानी कर्नाटक राज्य की है जहां हजारों लोगों ने मंदिर जल निकाय जिन्हें ‘कल्याणी’ कहा जाता है, को पुनर्जीवित करने में अपना समय, प्रयास और संसाधन लगा दिया है। ‘स्वच्छता ही सेवा’ अभियान के दौरान कर्नाटक के चार जिलों में फैली 52 से अधिक ‘कल्याणियों’ को साफ और पुनर्जीवित किया गया है। श्रमदान के माध्यम से हजारों लोग इन जल निकायों को पुनर्जीवित करने में सफल हुए हैं और भावी पीढ़ियों के लिए जल निकायों की स्वच्छता और सुरक्षा के बारे में जागरूकता बढ़ाने में लगे हुए हैं।
कर्नाटक के रामनगर, गडग, मांड्या और कोलार जिलों में, कई वर्षों तक बेसुध पड़े कल्याणी को साफ करके इनका कायाकल्प कर दिया गया है। ये कल्याणियां पानी का स्थायी स्रोत होने के साथ-साथ मंदिरों के प्राचीन और ऐतिहासिक महत्व से भी गहराई से जुड़ी हुई हैं।
कर्नाटक में जल निकाय केवल अतीत के अवशेष नहीं हैं, वे राज्य के इतिहास, संस्कृति और विरासत के बहुमुखी पहलू का प्रतिनिधित्व करते हैं, साथ ही समकालीन जल प्रबंधन चुनौतियों का समाधान करने की क्षमता भी रखते हैं। ऐसे जल निकाय बहुमूल्य जल संसाधनों के स्थायित्व के लिए महत्वपूर्ण हैं। इन बावड़ियों के महत्व का अंदाजा निम्नलिखित पहलुओं से लगाया जा सकता है:
1. जल संग्रहण और प्रबंधन – कर्नाटक के शुष्क क्षेत्रों में जल भंडारण और प्रबंधन के लिए जलनिकाय महत्वपूर्ण थे। यह निकाय शुष्क मौसम के दौरान समुदायों को पानी जमा करने में सहायक रहे, जिससे पीने, सिंचाई और दैनिक जरूरतों के लिए पानी की विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित हुई।
लक्कुंडी में मुसुकिना बावी नामक जल निकाय मणिकेश्वर मंदिर के पास बना हुआ है। भूजल प्रबंधन के लिए जलनिकाय बनाए गए थे और तपती गर्मी के दौरान वे अमूल्य थे। निर्माताओं ने भूजल को वर्ष भर उपलब्ध रखने के लिए गहरी खाइयां खोदीं और लोगों के नीचे उतरने के लिए कलात्मक सीढ़ियां बनाईं।
2. स्थापत्य विरासत- कई जल निकाय, विशेषकर गडग जिला लक्कुंडी कल्याणी, चालुक्य वास्तुकला के शिखर का प्रतीक हैं। कर्नाटक वास्तुशिल्प चमत्कार हैं, जो प्राचीन निर्माताओं की सहजता और शिल्प कौशल का प्रदर्शन करते हैं। इनमें अक्सर जटिल नक्काशी, अलंकृत खंभे और अद्वितीय डिजाइन देखे जाते हैं, जो महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और स्थापत्य विरासत की बेजोड़ झलक हैं।
3. सांस्कृतिक महत्व – यह जल निकाय केवल उपयोग करने की संरचनाएं नहीं थीं; वह समुदायों के लिए एकत्र होने के स्थान भी थे। इसने सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की मेजबानी की और स्थानीय लोगों को पहचान और अपनेपन की भावना प्रदान की। उदाहरण के लिए, रामानगर जिले के ग्राम बैरवेश्वर मंदिर में कल्याणी का निर्माण केम्पेगौड़ा काल के दौरान किया गया था।
4. ऐतिहासिक संदर्भ – जल निकायों में अक्सर ऐतिहासिक शिलालेख और नक्काशी होती है जो क्षेत्र के इतिहास, संस्कृति और परंपराओं के बारे में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करती है। वे ऐतिहासिक दस्तावेज़ीकरण का एक समृद्ध स्रोत हैं।
5.आध्यात्मिक महत्व: कुछ जल निकाय धार्मिक या आध्यात्मिक महत्व से जुड़े थे। वह अक्सर मंदिरों के पास स्थित होते थे या ध्यान और चिंतन के स्थान के होते थे।
6. पर्यटन और शिक्षा: यह जल निकाय पर्यटकों और शोधकर्ताओं को आकर्षित करते हैं। इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती हैं। ये जल निकाय पारंपरिक जल प्रबंधन प्रणालियों के बारे में जानकारी देते हैं।
7. पर्यावरण संरक्षण – आज के संदर्भ में, जल निकायों का पुनरुद्धार और रखरखाव स्थायी जल प्रबंधन प्रथाओं और भूजल संसाधनों के संरक्षण में योगदान दे सकता है।