प्रदीप कुमार
श्रीनगर गढ़वाल। भारत में हरित क्रांति (ग्रीन रेवोल्यूशन) के जनक डा. एमएस स्वामीनाथन (98) वर्ष की आयु में निधन होने पर गढ़वाल विवि के उच्च शिखरीय पादप कार्यिकी शोध केंद्र (हैप्रेक) में दो मिनट का मौन रखकर उन्हें श्रद्धाजंलि अर्पित की गई। इस मौके पर हैप्रेक के निदेशक प्रो. मोहन चंद्र नौटियाल ने उन्हें याद करते कहा कि डा. एमएस स्वामीनाथन को भारत में हरित क्रांति का अगुआ माना जाता है। उनका हैप्रेक संस्थान की स्थापन में बडा योगदान रहा है। कहा कि स्वामीनाथन को भारत के एक लोकप्रिय वैज्ञानिक के तौर पर जाना जाता था। उनका कृषि के क्षेत्र में बड़ा योगदन रहा। प्रो.नौटियाल ने कहा कि डा. स्वामीनाथन ने विभिन्न अनुसंधानों में कृषि वैज्ञानिक के तौर पर कार्य किया है। उन्हें कृषि अनुसंधान के लिए 1967 में उन्हें पद्मश्री, 1972 में पद्मभूषण, 1989 में पद्मविभूषण, 1971 में मैग्सेसे पुरस्कार और 1987 में विश्व खाद्य पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। कहा कि बंगाल में 1942-43 में हुई भूखमरी में लाखों लोगों की जान चले गयी थी। जिससे डा.स्वामीनाथन को बड़ा झटका लगा और उन्होने यह निश्चिय किया कि वह भारत में अनाज के उत्पादक को बढ़ाने में अपना सहयोग प्रदान किया। वे पहले ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने सबसे पहले गेहूं की एक बेहतरीन किस्म को पहचाना और स्वीकार किया। इसके कारण भारत में गेहूं उत्पादन में भारी वृद्धि हुई। इस मौके पर हैप्रेक संस्थान के एसोसिएट प्रोफेसर डा. विजयकांत पुरोहित, डा. बबिता पाटनी, डा. विजयलक्ष्मी त्रिवेदी, डा. वैशाली चंदोला सहित शोध छात्र-छात्राएं एवं कर्मचारी मौजूद थे।