हम हिमालय को नष्ट कर रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप गंभीर पारिस्थितिक समस्याएं पैदा हो रही हैं- प्रोफेसर एम.पी.एस.बिष्ट

 देहरादून- “हिमालय दिवस”, शक्तिशाली हिमालय के संरक्षण और परिरक्षण के लिए समर्पित प्रति वर्ष 9 सितंबर को राज्य भर में मनाया जाता है। पर्यावरणविद् पद्मभूषण डॉ. अनिल जोशी ने हमारे दिन-प्रतिदिन के जीवन में हिमालय की उपस्थिति और महत्व को मनाने के लिए इस दिन को मनाने की शुरुआत करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।  हिमालय दिवस पूरे समुदाय में यह संदेश प्रसारित करने के लिए मनाया जाता है कि हिमालय के सतत विकास एवं पारिस्थितिक स्थिरता का समाधान हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र की तरह ही अद्वितीय होना चाहिए।  इस वर्ष राष्ट्र 14वां हिमालय दिवस मना रहा है।

प्रत्येक वर्ष की भांति, सीएसआईआर-आईआईपी ने 15 सितंबर, 2023 को हिमालय दिवस मनाया। इस कार्यक्रम में भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून के पूर्व निदेशक  सुजीत कुमार मुखर्जी विशेष अतिथि रहे तथा डॉ. एम.पी.एस. बिष्ट, प्रोफेसर (भूविज्ञान), एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय, उत्तराखंड और पूर्व निदेशक, उत्तराखंड अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (यूसैक) ने इस अवसर पर मुख्य अतिथि के तौर पर कार्यक्रम कि शोभा बढ़ाई।  राधा चटर्जी, फ्रेंड्स ऑफ दून सोसाइटी कि सदस्य, ने भी समारोह में भाग लिया।

सीएसआईआर-आईआईपी के निदेशक डॉ. हरेंद्र सिंह बिष्ट ने विशिष्ट आमंत्रित वक्ताओं एवं  सम्मानित श्रोताओं का स्वागत किया तथा हिमालय दिवस मनाने के महत्व पर प्रकाश डाला।  हिमालय समस्त विश्व के लिए एक शक्ति का स्रोत और एक बहुमूल्य विरासत है। इसलिए इसके संरक्षण की आवश्यकता है। वैज्ञानिक ज्ञान को बढ़ावा देने के अतिरिक्त , यह दिन जागरूकता एवं सामाजिक भागीदारी बढ़ाने में मदद करता है।

श्री सुजीत कुमार मुखर्जी ने कहा कि हिमालय दिवस मात्र एक वार्षिक कार्यक्रम नहीं है, बल्कि यह देश के भौगोलिक रूप से संवेदनशील इस क्षेत्र की वर्तमान स्थिति पर चिंतन करने का अवसर है। यह आम जन के बीच जागरूकता और संरक्षण गतिविधि में उनकी भागीदारी को बढ़ाने के दृष्टिकोण से भी एक महत्वपूर्ण अवसर है।  उन्होंने हिमालय के सतत विकास और पारिस्थितिक स्थिरता पर ध्यान आकर्षित करने के लिए श्री सुंदर लाल बहुगुणा, श्री चंडी प्रसाद भट्ट और श्रीमती वंदना शिवा जैसे पर्यावरणविदों और कार्यकर्ताओं के योगदान को भी स्वीकार किया।  उन्होंने हिमालयी क्षेत्र की हमारी जैव विविधताओं, वनस्पतियों और जीव-जंतुओं के संरक्षण पर भी जोर दिया, हमें केवल विकास के नाम पर जैव विविधता को नष्ट नहीं करना चाहिए, अगर हम ऐसा करते हैं तो हमें प्रकृति के प्रतिकूल परिणामों का सामना करना पड़ेगा।

प्रोफेसर एम.पी.एस.बिष्ट ने “हिमालय का बदलता चेहरा” विषय पर सचित्र प्रस्तुति दी, जिसमें उन्होंने कहा कि हिमालय ताकत का स्रोत है।  पूरे हिमालयी क्षेत्र को देवभूमि के रूप में जाना जाता है, इसलिए, इसे संरक्षित करने की आवश्यकता है।  इसके अलावा उन्होंने कहा कि हम हिमालय को नष्ट कर रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप गंभीर पारिस्थितिक समस्याएं पैदा हो रही हैं।

प्रशासनिक अधिकारी श्री सीए बोध ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया।  कार्यक्रम का सफल आयोजन और समन्वय वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक डॉ. जी. डी. ठाकरे द्वारा किया गया और सीएसआईआर-आईआईपी के प्रधान तकनीकी अधिकारी श्री डी. के. पांडे द्वारा संचालित किया गया।