लेखिका–विभा पोखरियाल नौडियाल
श्रीनगर गढ़वाल। कल किसी सज्जन ने एक नामी मनोवैज्ञानिक का वक्तव्य शेयर किया जिसमें लिखा था कि अपने बच्चों के मोबाइल चेक करिए, मनोवैज्ञानिक की सहायता लीजिए, ब्राउजिंग हिस्ट्री चेक करिए कि वह क्या देख रहे हैं, वगैरह-वगैरह,।
क्या आप सच में ऐसा सोचते हैं कि यह आईडिया काम करेगा???
महोदय, किस दुनिया में जी रहे हो आप? बच्चों का दिमाग कंप्यूटर से भी तेज है वह आपके सोचने और समझने की शक्ति से कई गुना आगे हैं। वह गूगल पर क्या सर्च करते हैं किन लोगों से दोस्ती कर रहे हैं यह आप तो क्या भगवान भी शायद बता पाए ।आपको तो सिर्फ उसके आचार व्यवहार का वह रूप सामने दिखेगा जिसने आपके रोंगटे खड़े कर देने हैं। मनोवैज्ञानिक चाहे कुछ भी कहे और कैसी भी सलाह दें, लेकिन एक मां और शिक्षक होने के नाते मुझे बच्चों को बहुत करीब से जानने और समझने का मौका मिलता है और इस नतीजे पर पहुंची है कि बच्चे हमारे आचार व्यवहार का नतीजा भुगत रहे हैं। आप लोगों ने उनकी परवरिश ही कुछ इस प्रकार से की है कि वह मौज मस्ती से ज्यादा कुछ सोचना ही नहीं चाहते।
इससे बड़ी चिंताजनक बात कुछ नहीं हो सकती कि 2 साल का बच्चा भी मोबाइल के लिए अपना सिर पटकता रहता है तो क्या यह गलती भी इंटरनेट की है???? बच्चा थोड़ा बड़ा होता है आजकल ऑनलाइन क्लासेस के लिए उसके हाथ में मोबाइल रहता ही है आप उसे कुछ भी सर्च करने से नहीं रोक सकते क्योंकि हर वक्त नजर बनाए रखना संभव भी नहीं। अगर आप ब्राउजिंग हिस्ट्री चेक कर भी लेंगे तो क्या हो सकता है ??
हिंदुस्तान की तो स्थिति यह है ब्राउजिंग हिस्ट्री में कुछ गलत दिख गया तो उस बच्चे को या तो मार पिटाई करेंगे या कहीं दूर हॉस्टल में भेज देंगे ।हर हाल में उसे मानसिक रोगी तो बना कर ही छोड़ेंगे ।अरे भाई कब सुधरोगे आप लोग??? फिर चिकित्सकों के चक्कर लगाते फिरेंगे। अब आप लोग कहेंगे कि इसका समाधान क्या है ??समाधान एक ही है। माता-पिता हो तो माता-पिता की जिम्मेदारी समझें बच्चों को शादी का प्रोडक्ट ना समझे ना ही उन्हें अपने जीवन की सारी खुशियों का कारण समझें। उन्हें इंसान समझें और पहले खुद को समझें और समझदार बनिए। हमारे देश में बहुत सारे माता-पिता इतने समझदार नहीं है तो यहां पर शिक्षकों की जिम्मेदारी बनती है कि वह बच्चों से दोस्ती करें और सही गलत के बारे में उन्हें समझाएं हर बात पर खुलकर चर्चा करें। जीवन में सब कुछ सामान्य है लेकिन हर चीज का एक नियत समय होता है यह उन्हें समझाएं ,जब कोई कार्य गलत समय पर गलत तरीके से किया जाता है तो उसके परिणाम विनाशकारी होते हैं।
जो माता-पिता पढ़े लिखे हैं और अपने बच्चों को पिकनिक, पिक्चर दिखाने, या देश विदेश की सैर कराते हैं उन से रिक्वेस्ट है कृपया एक बार उन हॉस्पिटलों में भी ले जाएं जहां बुरे कर्मों का नतीजा या तो एड्स के रूप में सामने आए हैं, या मनोरोगी जो अपने जीवन में की गई बुरी संगति या गलत कार्यों का नतीजा भुगत रहे हैं। वहां एक बार जरूर घुमा कर लाएं, यकीन मानिए दिल तो क्या आत्मा तक सुधर जाएगी।
साथ ही अपना आचार व्यवहार जैसे दारु पीना ,लड़ना झगड़ना ,अपशब्दों का प्रयोग करना, अपने नाते रिश्तेदारों को गालियां देना ,अड़ोस पड़ोस में झगड़े करना, अपने बॉस को कोसते रहना, मतलब के लिए रिश्ते बनाना, बड़े लोगों की चमचागिरी करना, गरीबों को तुच्छ समझना, किसी की मदद के नाम पर कमरे में छुप जाना, सड़क पर किसी को जरूरत हो तो आगे निकल जाना, और आचार व्यवहार पर अपने बच्चों को भाषण देना,और फिर सारा दोष शिक्षा व्यवस्था पर मढ देना । बंद करिए यह नौटंकी !!!
अभी भी समय है सुधर जाइए विश्वयुद्ध तो बाद में होगा पहले अपने अंदर ही लड़ाई लड़नी पड़ेगी!
लेखिका–विभा पोखरियाल नौडियाल
नोट: लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं
प्रस्तुति -गबर सिंह भंडारी