गबर सिंह भंडारी
चन्द्रवीर गायत्री -श्रीनगर गढ़वाल – देवलगढ़ ऐतिहासिक संस्कृतिक व देव स्थली नगरी रही है इस नगरी का निर्माण कब हुआ कैसे हुआ ए तो कहना मुश्किल है किंतु इतिहासकारो के अनुसार गढ़ राजाओं द्वारा इसे बसाया गया बताया गया है स्पष्ट प्रमाण तो नही कहा जा सकता पर हम महाभारत काल की बात करें तो भगवान कृष्ण जब अपने गुरु के साथ भगवान बद्रीनाथ के दर्शन के लिए आते हैं तो उनका स्वागत राजा सुबाहू करते हैं फिर देवलगढ़ के बारे में हिमाचल के राजा देवल का जिक्र भी होता है गढ़वाली व अंग्रेजी इतिहास लिखने वाले राज अजयपाल का जिक्र भी करते है लेकिन कुछ सूत्र इसे शिव पार्वती का घर बताते हैं क्या देवलगढ़ ऐसा भू भाग रहा होगा, जो कभी खंडित हुआ हो! सायद समय समय पर इसमें भी परिवर्तन आया है नदी छेत्र से कुछ किलोमीटर की परिधि में फैले इस छेत्र के मुख्य गांव आस पास की समृद्ध सँस्कृति को प्रदर्शित करते है ! मैं एक बार फिर जिक्र कर रहा हूँ गहड़(गढ़) का इसके आस पास के पहाड़ो पर पूर्व में बसागत थी अथवा घर बने हुए थे जिसे मैंने अपने बचपन मे देखा है सायद अवशेष अभी भी हो सबसे पहले जिक्र कर रहा हूँ जफ़्फ़र की धार का जो गहड़ के पश्चिमी भाग मेंअलकनंदा नदी के ठीक ऊपर श्रीकोट के माथे पर यह पर्वत है बचपन मे जब भी हम गायों के साथ जाते थे तो अक्सर खण्डरों में दिन भर खेला करते थे तो हमारे बुजर्ग बताते थे ए जोगियों के घर हैं
पड़ोसी गांव स्वीत के कई परिवार बर्षो तक वहां रहे दूसरा जिक्र कर रहा हूँ सुराड़ी जो कि आज बलोड़ी गांव का हिस्सा है गहड़ के दक्षिणी भाग में है तीसरा जिक्र कर रहा हूँ समतियो कि धार जो गहड़ के उत्तर में है यहाँ आज भी नाथ सम्प्रदाय के लोगो की समाधी है चौथा जिक्र कर रहा हूँ नाइखेत का जो आज बुघाणी गांव का हिस्सा है और गहड़ का पूर्वी भाग है नाइखेत देवलगढ़ से लगा हुआ छेत्र है इस तरफ माता राज राजेश्वरी सहित गौरा देवी का भव्य मंदिर सुशोभित है वही गहड़ के दक्षिणी हिस्से में हरकंडी के ऊपर माँ नागरकसनी देवी का मंदिर है तो स्वतः ही लग जाता है इस कटोरे रूपी नगर का निर्माण युगों से होता चला आ रहा है जैसे कि पूर्व के लेखों में मैंने स्पष्ट किया है कि यह यात्रा मार्ग भी रहा होगा पर गहड़ के चारों तरफ बसागत व खेती मठ मन्दिर खुले रास्ते इसे नगर या गढ़ होने के संकेत देते है अगर हम इसे दैविक रूप से देखें तो गहड़ शिवलिंग के रूप में प्रदर्शित होता है जिसमे बलोड़ी जलेथा व मसूड़ से निकलने वाली जल धारा ( गधिरा) व दत्ताखेत मलेथा से निकलने वाली जलधारा (गधिरा) स्वी त में मिलते है इनके ठीक ऊपर जो लिंगरूपी पर्वत समतियों की धार मिलकर शिवलिंग का रूप ले लेते हैं यह दृश्य स्वीत गांव या मलेथा गांव या मसूड़ बलोडी सरणा से दिखाई देता है!
गहड़ श्रीगर व देवलगढ़ का मध्य भाग है तो संभावनाएं बढ़ जाती है गहड़ के ठीक ऊपर दक्षिण भाग में सुमाड़ी गांव है जिसे गौरा देवी का माइका माना जाता है आज देवी अपने घर से अपनी ससुराल बुघाणी देवलगढ़ जाती है यह पर्व वैशाखी पर होता है साफ स्पष्ट हो जाता है कि देवताओं के इस छेत्र में बिचरण करने व मठ मन्दिर इस बात की पुष्टि करते है कि यह छेत्र युगों युगों से भारत भूमि का महत्वपूर्ण देव स्थल है इस छेत्र के भव्य विकास के लिए सरकार को कार्ययोजना बनानी चाहिए श्रीनगर देवलगढ़ सुमाड़ी को पर्यटन छेत्र में जोड़ना चाहिए इन छेत्रों के विकास व प्रचार प्रसार से छेत्र को लाभ होगा जिन छेत्रों का जिक्र लेख में किया गया है वहाँ पड़ी ऐतिहासिक विरासत को संजोने का कार्य होना चाहिए बंजर पड़े खेतो को उद्यान का रूप दिया जा सकता है गावो की सहभागिता व सरकार की कार्ययोजना का लाभ छेत्र वासियों को मिलना चाहिए गौरा देवी राजराजेश्वरी के मन्दिर की पहुंच कैसे हर बद्रीनाथ केदारनाथ के यात्री से बने इस कार्ययोजना पर कार्य होना चाहिए ! जनप्रतिनिधियों व समाजसेवकों को चाहिए कि वो सरकार को अवगत कराते रहें और इस देव धरती व तीर्थ स्थान को राज्य का अग्रणीय स्थान का दर्जा दिलवाएं!
चन्द्रवीर गायत्री स्वत्रन्त्र पत्रकार