आवाजें आ रही हैं –कबिकार नीरज नैथानी

गबर सिंह भंडारी श्रीनगर गढ़वाल

आवाजें आ रही हैं –कबिकार नीरज नैथानी

आवाजें आ रही हैं
कदमताल करते
बूटों की।
बैरकों से
आवाजें आ रहीं हैं
पिठ्ठू कसते
सैनिकों की।
आवाजे आ रही हैं
शोर मचाते
टैंको की,
बम धमाकों की।
आवाजें आ रही हैं
गोले बरसाते
लड़ाकू विमानों की‌।
रिहायशी
ठिकाने ध्वस्त
करती मिसाइलों की।
राकेटों की
कानफोड़ू आवाजें
डरा रही हैं
बख्तरबंद गाड़ियां
ना जाने कितनी
ईमारते
गिरा रही हैं।
सरहद के
दोनों तरफ
खून से लतपथ पड़े
घायल सैनिकों
की कराहें
सुनायी दे रही हैं।
खतरनाक किस्म की
आवाजें आ रही हैं
युद्धरत देशों से।
रेतीले तट
औंधे मुंह गिरे
अयलान कुर्दी की
सिसकियां
कानों में
पिघले शीशे की मानिंद
पर्दे जला रही हैं
अनवरत युद्ध का
शोर सुना रही हैं
दुनिया भर से
तमाम किस्म की आवाजें
आ रही हैं।
धूल धुंए के
ऊपर उठते गुबार
के बीच से
सुनायी दे रही है
औरतों की
चीख पुकार।
विलाप करते बच्चे
सूनी आंखों से
निहार रहे हैं
उजड़े घर द्वार।
लाशों के ढेर पर
मण्डराते
गिद्धों की अट्हास
सुनायी दे रही है
भेड़यों की हुआं हुआं
मना रही है
शवोत्सव
जलते शहर
व जमींदोज होती
शहरियत को
देखकर मातम पुर्सी
की आवाजें
अंदर से हिला रही हैं।
अजान के बरअक्स
मस्जिदों से
जेहादी नारों की
आवाजें आ रही हैं।
सुना है
परमाणु बमों
के ढेर पर
बैठी दुनिया
बड़ा धमाका
कर सकती है
पूरी मानवता
खत्म कर सकती है।
संभलो कि
कहीं देर ना हो जाय,
कि हम
किसी भी किस्म की
आवाज सुनने
के काबिल ना रह जांय।
पर,
नक्करखाने में
तूती की
आवाज कौन सुनता है।
यहां तो सिर्फ
नाभिकीय आयुधों
का मौन बोलता है।