हिमालय साहित्य एवं कला परिषद श्रीनगर द्वारा चरण सिंह केदारखंडी काव्य संग्रह “मैं लौटकर आऊंगा चिनार”का विमोचन

गबर सिंह भंडारी

श्रीनगर गढ़वाल : हिमालयन साहित्य एवं कला परिषद् श्रीनगर गढ़वाल द्वारा चरण सिंह केदारखण्डी कृत काव्य संग्रह ‘मैं लौटकर आऊंगा चिनार ‘ का बुध पूर्णिमा के पुण्य अवसर पर भव्य दिव्य समारोह में विमोचन किया गया। चरण सिंह उत्तराखण्ड हिमालय के केदारनाथ घाटी के निवासी हैं अतः स्वाभाविक रूप से आपने अपने आगे केदारखण्डी उपनाम अंकित किया हुआ है।आप राजकीय महाविद्यालय जोशीमठ में अंग्रेजी विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं। अंग्रेजी साहित्य का अध्येता हिंदी राष्ट्र भाषा में साहित्य सृजन करता है तो कोई विशेष बात नहीं है।पूर्व में हरिवंश राय बच्चन,फिराक गोरखपुरी आदि अनेक नामों का उल्लेख किया जा सकता है कि उन्होंने विद्यार्थी जीवन में अध्ययन अंग्रेजी साहित्य का किया तत्पश्चात अध्यापन भी वैदेशिक साहित्य व भाषा का ही किया किंतु सृजन हेतु लेखनी चलाई तो अपनी मातृभाषा का लोभ संवरण न कर सके। किंतु यह विशेष बात है कि जो कभी कश्मीर न रहा, न कभी गया, न देखा वह व्यक्ति कश्मीर की पीड़ा को चिनार के माध्यम से व्यक्त करता है और न केवल व्यक्त करता है बल्कि कश्मीर की ऐतिहासिक, धार्मिक, भौगोलिक, आध्यात्मिक व सामरिक पृष्ठभूमि का विस्तृत कैनवास पाठकों के सम्मुख रखता है।श्री चरण सिंह जी का केदारखण्ड में निवास करते हुए कश्मीर पर कलम चलाना उनकी काव्य मनोवृत्ति को ही निरूपित करता है।काव्य संग्रह ‘मैं लौटकर आऊंगा चिनार’ मात्र कल्पना के आकाश में वैचारिक विमान का विस्तृत दृश्यावलोकन नहीं है अपितु वहां के हिंदू पंडितों के परिवारों द्वारा भोगे गये,तथा झेले गए दंश का यथार्थ व वास्तविक चित्रण है।कवि के लिए यह किस प्रकार व कैसे संभव हुआ है?है इसका उत्तर पाठक को संग्रह का आद्योपांत पाठ करने पर स्वत: ही प्राप्त हो जाएगा।
काव्य संग्रह की गद्य भूमिका स्पष्ट बोध कराती है कि रचनाकार ने काव्य प्रक्रिया के विभिन्न चरणों से गुजरने से पूर्व शोधपरक अध्ययन किया है सम्पूर्ण कश्मीर घाटी का।पुस्तक में संग्रहीत रचनाओं का अध्ययन करने पर पाठक स्वत: अवगत हो जाता है संग्रह कि समस्त रचनाएं तथ्यान्वेषण पर आधारित हैं न कि इधर उधर से जुटाई सूचना पर आश्रित।कवि ने सूक्ष्मता के साथ संवेदना के गहन स्तर पर उतरकर भावाभिव्यक्ति की है। कवि का सवेंदनशील हृदय अत्यंत व्यथित हुआ है जब जब घाटी में निर्दोष लोगों का असीम रक्त बहा है।वह कश्मीर की सांस्कृतिक साहित्यिक विरासत को जब आक्रांताओं,अत्याचारियों व क्रूर पाश्विक कबिलाई मानसिकता से ग्रसित समूहों द्वारा तार तार होते देखते हैं तो उनकी कलम स्वाभाविक रूप से बेबसी बयां करने लगती है।वे कलम के माध्यम से विडम्बनाओं,विद्रूप स्थितियों के रक्तिम चित्र कैनवास पर अनायास उकेरते चले जाते हैं।घाटी की अस्थिर, असामान्य व असहज स्थितियां कवि को सहज नहीं रहने देंती।वे दर्द की दवात में आंसुओ की स्याही का इस्तेमाल करते हैं क्षोभ को व्यक्त करने के लिए।वे घाटी से हिंदू पंडितों के पलायन से मात्र दुखी भर नहीं हैं वरन् समस्या के निदान हेतु छटपटाहट भरा समाधान भी कल्पित करते हैं।पुस्तक आमुख पर चिनार पाती का अधोमुखी चित्र संकेत देता है कि चिनार भी दुखी है,विलाप कर रहा है।तथा अपने मूल निवासियों से बिछुड़ने पर वियोग का असहनीय दर्द न झेल पाने के कारण अपनी मूल शाखा से विलग हो आपाती हो गया है।संग्रह की एक एक रचना जीवंत दस्तावेज है घाटी के खूनी घटनाक्रम का। अनगिनत गुमनाम लोगों की नृशंस हत्या होने पर कवि संवेदना प्रकट करता है,वह महसूस करता है कि उसके परिवार का सदस्य निरपराध कत्ल हुआ है,वह महसूस करता है कि विस्थापित किस तरह शरणार्थी शिविरों में यातनापूर्ण जीवन व्यतीत कर रहे हैं।वह राजनैतिक स्वार्थ की चक्की में पिस रहे मासूम परिवारों के पुनर्वास को लेकर भी चिंता प्रकट करता है।इस परिदृश्य में अपनी कोई सार्थक भूमिका निर्वहन न कर पाने का अपराधबोध भी कचोटता है कवि हृदय को।फिर भी वह आशान्वित है कि सब ठीक होगा,हालात सुधरेंगे व “मैं लौटकर आऊंगा चिनार” का संबोधन कवि की सकारात्मक सोच की पुष्टि करने में सफल रहता है। कार्यक्रम का श्रीगणेश करते हुए डा प्रकाश चमोली ने अपने उद्बोधन में कहा कि गढ़वाल हिमालय के एक कवि हृदय ने हिमालय के दूसरे छोर कश्मीर मे रह रहे हमवतनों के प्रति सच्ची सहानुभूति प्रकट की है इस काव्य संग्रह के माध्यम से।डा चमोली ने कहा कि शीतल घाटी में आतंकी तापमान बढ़ने के विभिन्न कारकों का सही पोस्टमार्टम करने में सफल हुआ है यह काव्य संग्रह।
कार्यक्रम में आमंत्रित मुख्य अतिथि प्रोफेसर डी आर पुरोहित जी ने उत्तराखंड के गढ़वाल मंडल में रह रहे पुरोहित परिवारों का कश्मीर से संबंध स्थापित करते हुए घाटी से स्वयं के समूह के निर्वासित होने को रेखांकित किया। पुरोहित ने गाजा पट्टी, जेरुसलम,फिलीस्तीन,बेरुत,गोलन पहाड़ी,सीरिया आदि भू क्षेत्रों से विस्थापित हुए परिवारों की पीड़ा को कश्मीर के पंडितों के पलायन से जोड़ते हुए किसी भी किस्म के अलगाव व पृथकतावादी आंदोलन का विरोध करने की जरूरत पर जोर दिया। पुरोहित ने कहा कि इन संदर्भों में उनके शिष्य चरण सिंह केदारखण्डी ने कवि कर्तव्य निर्वहन करते हुए यथोचित विधि से कश्मीर का‌ बहुत सही खाका खींचा है।
विशिष्ट अतिथि राकेश चंद्र जुगराण ने अपने वक्तव्य में कहा कि कश्मीर में बम धमाकों, सामूहिक नरसंहार में बहते रक्तिम धारों,आशंका व असुरक्षा के धूल गुबार को छांटती यह पुस्तक आशा की किरण उत्पन्न करती है कि मैं लौटकर आऊंगा चिनार एक दिन,इस हेतु वे केदारखण्डी की लेखनी को साधूवाद ज्ञापित करते हैं। हिमालयन साहित्य एवं कला परिषद् श्रीनगर गढ़वाल की मुख्य ट्रस्टी तथा कार्यक्रम की अध्यक्षा प्रोफेसर उमा मैठाणी ने अपने उद्बोधन में काव्य संग्रह की विस्तृत मीमांसा करते हुए समस्त रचनाओं को तथ्यपरक व प्रभावशाली श्रेणी में रखते हुए चरण सिंह केदारखण्डी को बधाई प्रेषित की।
अंत में रचयिता डा चरण सिंह केदारखण्डी ने इस संग्रह के संदर्भ में रचना धर्मिता का निर्वहन करते समय विभिन्न पड़ावों से गुजरने का विस्तृत ब्यौरा पेश किया।
समापन से पूर्व वरिष्ठ रंगकर्मी विमल बहुगुणा ने समस्त आमंत्रित सदस्यों के प्रति आभार प्रकट किया।समारोह में कृष्णा नंद मैठाणी (पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष),पौड़ी जनपद के व्यापार व उद्योग संघ के जनपदीय अध्यक्ष वासुदेव कंडारी,नगर के प्रमुख व्यवसायी राजीव शाह,हिंदुस्तान दैनिक समाचार पत्र समूह के चीफ ब्यूरो कृष्ण उनियाल,शाह टाइम्स के प्रभारी देवेन्द्र गौड़, प्रमुख समाजसेवी अनिल स्वामी थपलियाल,आर पी कपरवान,शम्भू प्रसाद भट्ट स्नेहिल,जय कृष्ण पैन्यूली,वीरेन्द्र रतूड़ी, पूनम रतूड़ी,देवेन्द्र उनियाल,महेश गिरि,डा राजेश जैन,हीरा मणि काला,के पी काला,सत्येन्द्र मिश्रा, मेनका मिश्रा,पत्रकार गंगा असनोड़ा, संदीप रावत, रेखा रावत,कु० भारती जोशी,कु० चेतना थपलियाल,माधुरी नैथानी,डा दीपक द्विवेदी, मैडम उनियाल ,मीनाक्षी चमोली, आदि ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति प्रदान की।