*उत्तराखंड का सुप्रसिद्ध ऐतिहासिक जीतू बगड़वाल 6 दिवसीय लोकनृत्य कौथिग का समापन*

 

श्रीनगर गढ़वाल से गबर सिंह भण्डारी की रिपोर्ट

श्रीनगर गढ़वाल :- उत्तराखंड की देवभूमि अलौकिक सौंदर्य से भरपूर ऋषि मुनियों की तपोस्थली और नाथ संप्रदायों की मशहूर देवनगरी श्रीनगर में सांस्कृतिक परंपरा का विशेष महत्व है इसीलिए पुराणों में कहा भी गया है कि यहां कण-कण में देवी देवताओं का वास है यहां पर समय-समय पर अपनी संस्कृति को बचाने और उभारने का आयोजन होता रहता है उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र का यह सबसे बड़ा लोक नृत्य है पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार वर्षों से अभी वर्तमान समय तक खिर्सू ब्लॉक की ग्राम सभा जलेथा में जीतू बगड़वाल का 6 दिवसीय लोक नृत्य मंचन होता है ग्राम-जलेथा में 3 मार्च से आरंभ हुआ और आज 8 मार्च 2023 को समापन हुआ आज भी जलेथा वासियों ने पहाड़ की अनमोल सांस्कृतिक विरासत को जीवित रखा है पौराणिक धार्मिक कथाओं के अनुसार जीतू बगड़वाल अकेला वीर पुरुष, सुंदर प्रकृति प्रेमी,गीतों का रसिया, और बांसुरी का वादक था उनके जीवन वृतांत पर जलेथा के सम्मानित बुद्धिजीवियों द्वारा हमें यह जानकारी प्राप्त हुई। धार्मिक कथाओं में टिहरी गढ़वाल राज्य के पंवार वंशीय राजा मानशाह थे जीतू की बुद्धि एवं चातुर्य से राजा अति प्रसन्न रहता था। राजा ने उसे अपना दरबारी नियुक्त कर दिया बाद में उसे कर वसूलने का जिम्मा सौंप दिया जीतू बगड़वाल आकर्षक कद काठी के कारण राजघराने की बहू बेटियों से उनकी निकटता हो गई यह बात राजा को नागवार गुजरी। कुद्ध होकर राजा ने अपने सिपहा सलाहकारों के साथ मतगणना कर सैनिकों की एक टुकड़ी को साथ लेकर श्रीनगर के निकट गंगा मैया की शीतल भूमि पर जीतू का वध करवा दिया। अकाल मृत्यु के कारण उसकी मृत आत्मा राज दरबार में डरावने करतब दिखाने लगी। अंत में प्रेत आत्मा को प्रसन्न करने के लिए राजा के आदेश से गढ़वाल के प्रत्येक गांव में जीतू बगड़वाल की मृत आत्मा को नचाया जाता रहा। जीतू बगड़वाल का अनुमानित जीवनकाल नौवीं सदी उच्ची बगुड़ी गांव जो की छाम के नदी पार है वही विशाल खेत पर्वत कि नीचे जीतू बगड़वाल का अपना गांव था अपनी माता फ्यूचडी, पिता गरीबा, दादा कुंजर और दादी का नाम सुमेरा था, कल्मू, सोवनू और ननिया इनके छोटे भाई थे, कथाकारों के अनुसार राजवंश का एक बड़ा सिंचित सेरा (खेत) था, जिसे मल्यारी नाम से जाना जाता था, इस सेरे में भल्यारी मसाण नाम का देवता रहता था, हल लगाने वाले का नाम मोलू कमेडा था, और जीतू बगड़वाल के परम मित्र मदन थे, छः गते आषाड़ मास की बात है उस समय सेरे (खेत) में धान की रोपाई चल रही थी उसी समय एक ग्रामीण हीरा मोती नाम के सफेद और बादामी रंग के बैलों के साथ चल रहा था। जीतू को यह बैलों की जोड़ी बहुत पसंद आ गई तो जीतू बगड़वाल ने एक चांदी के सिक्कों में उन बैलों को खरीद लिया था। इनकी कुल देवी नगरसैणी थी, जीतू ‘बगड़वाल बंशी बजाने के बड़े शौकीन थे. एक वार मराणा नाम की अपनी शाली से मिलने के लिए निकले, फूलों का भव्य बगीचा था, मल्या फुलारी से फूल माला पहनी, और शाली को लेकर खैट पर्वत पर ले गये, खैट पर्वत में ही अंछरीयां रहती थी। रोपाई करते समय बैलों की जोड़ी के साथ अंछरीयों (परियों) ने जीतू का अपहरण लिया। लेकिन बैलों की जोड़ी सहित वह जीवित ही धरती में समा गया था। इसी बीच उर्जावान मित्र मदन ने ईश्वर को पुकारा हे विधाता ऐसा क्यों हुआ तब उसने अपनी कुलदेवी नगरसैणी से कहां मर गई ऐसी दुखी पुकार बार-बार लगाने से भगवती नगरसैण प्रकट हुई और उसने अपनी शक्ति के द्वारा समस्त सैना बैल और जीतू बगड़वाल को जीवित कर दिया। आज जलेथा गांववासियों द्वारा होली के 5 दिन पूर्व से भगवती नगरसैणी की पूजा होती हैं और जीतू बगड़वाल रणभूत के रूप में नाचते है और प्रत्येक तीसरे वर्ष नगरसैणी मंदिर में धार्मिक यज्ञ एवं अनुष्ठान होता है। धार्मिक परंपरा के हिसाब से जलेथा गांव के लोग यज्ञ भंडारा करते हैं तथा गांव की बहू बेटियों को जीतू बगड़वाल और मां भगवती का प्रसाद उनके परिवार हेतु दिया जाता है। मां भगवती नगरसैणी के पसवा हरकन्डी के चमोली परिवार से है मां भगवती का मायका जलेथा होने के कारण अपनी लोक मान्यताओं के हिसाब से पहाड़ी ढोल दमाऊ वादकों के साथ मधुर मिष्ठान, पहाड़ी रोट-अरसे,आटे-चावल का दोण भेंट हरकन्डी ससुराल वालों को दिया जाता है। मां नगरासैणी शांति की देवी है प्रसन्नचित्त हो कर सभी भक्तों ,ग्रामवासियों, क्षेत्रवासियों को आशीर्वाद शुफल देती है। जीतू बगड़वाल जैसे अन्य सुप्रसिद्ध नृत्य नाटकों का मंचन गढ़वाल क्षेत्र में होता रहता है। हमारी सरकार को गांव की और ध्यान देना पड़ेगा जिससे हमारी सांस्कृतिक परंपरा बची रहे। जीतू बगड़वाल नृत्य नाटिका में क्षेत्रवासियों ने बढ़ चढ़कर भाग लिया जिसमें सुमाड़ी, देवलगढ़, बुघाणी, भैंसकोट, भाटोली, मलेथा,गहड़,बलोड़ी,सरणा,मसुड़,ढिकवालगांव, खोला और दूर दराज से आई हुई गांवों की क्षेत्रीय जनता जनार्दन का गणेश भंडारी प्रधान जलेथा ने धन्यवाद किया। इस धार्मिक कार्यक्रम को सफल बनाने में मुख्य रूप से जिन लोगों ने सहयोग दिया गढ़वाली परंपराओं का निर्वहन करने वाले पहाड़ी ढोलवादक मदनलाल (गुलाम) उनका साथ देते हुए दमाऊ वादक भारत कुमार भारू,। जीतू बगड़वाल लोक नृत्य नाटिका में आगंतुकों का स्वागत वर्तमान प्रधान गणेश भंडारी के द्वारा किया गया। विशेष सहयोग के रूप में नवीन बहुगुणा गल्थू तथा कार्यक्रम को सफल बनाने में जलेथा ग्रामवासियों का बहुत बड़ा योगदान रहा जिसमें सरपंच बलवीर सिंह चौहान, पूर्व प्रधान गुड्डी देवी, दिगंबर सिंह भंडारी,सुशील बिष्ट ,जगमोहन चौहान, सूरत चौहान पूर्व प्रधान कृष्ण कुमार चौहान, पवन चौहान, समाजसेवी सौरभ भारती, सचिन भंडारी,जयकृत्त राणा, नवीन पुंडीर, लोकपती चौहान, कुन्दन सिंह चौहान,कर्णमोहन राणा, राहुल राणा, विनोद लाल आदि लोगों ने विशेष सहयोग दिया ।