हरिशंकर सिंह
भूमिका: देवभूमि की स्वास्थ्य चेतना में नई लहर
देहरादून-उत्तराखंड की राजधानी देहरादून इन दिनों एक नई स्वास्थ्य जागरूकता क्रांति की ओर अग्रसर है। डीडी कॉलेज, नींबूवाला, गढ़ीकैंट, देहरादून में आयोजित एक विशेष समारोह में जब सुप्रसिद्ध आयुर्वेदिक विशेषज्ञ डॉ. राजीव कुरेले का स्वागत हुआ, तो यह सिर्फ एक सम्मान नहीं था, बल्कि एक बड़े मिशन की शुरुआत थी। उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय, हररावाला के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. कुरेले का यह दौरा देवभूमि के उस पुराने वैदिक स्वास्थ्य परंपरा को आधुनिक संदर्भ में पुनः जाग्रत करने का संकेत था।
विज़न: डीडी कॉलेज और दिव्या एजुकेशनल सोसाइटी की आयुष यात्रा
इस अवसर पर डी0डी0 कॉलेज के अध्यक्ष एवं प्रसिद्ध शिक्षाविद् जितेंद्र यादव ने स्पष्ट किया कि दिव्या एजुकेशनल सोसाइटी के माध्यम से डीडी कॉलेज उत्तराखंड में स्वास्थ्य रक्षण एवं रोग निवारण पर केंद्रित जागरूकता शिविर और व्याख्यानमालाओं की श्रृंखला शुरू करेगा।
उनकी दृष्टि स्पष्ट है:
“उत्तराखंड को केवल योग और तीर्थों की भूमि नहीं, बल्कि आयुर्वेदिक चेतना के केंद्र के रूप में पुनर्स्थापित करना हमारा ध्येय है।”
डॉ. यादव ने यह भी बताया कि इस मुहिम में ग्रामीण क्षेत्रों को विशेष प्राथमिकता दी जाएगी, जहां आधुनिक चिकित्सा सुविधाओं की पहुंच सीमित है, लेकिन जड़ी-बूटियों और पारंपरिक ज्ञान की विरासत गहरी है।
सहयोग की प्रतिबद्धता: डॉ. राजीव कुरेले की सहभागिता
कार्यक्रम की मुख्य विभूति, डॉ. राजीव कुरेले ने आश्वासन दिया कि वे न केवल व्यक्तिगत रूप से, बल्कि अपने सहयोगियों के साथ मिलकर दिव्या एजुकेशनल सोसाइटी की स्वास्थ्य यात्रा में पूर्ण सहयोग देंगे। उन्होंने स्पष्ट कहा:
“यह मेरा धर्म है कि जहां कहीं भी स्वास्थ्य शिविरों, जागरूकता कार्यक्रमों की आवश्यकता होगी, मैं और मेरी टीम अपनी सेवाएं प्रदान करेगी। यह केवल सेवा नहीं, उत्तराखंड के प्रति हमारी श्रद्धा है।”
प्रेरणा सत्र: जब डॉ. कुरेले ने गुरु मंत्र दिए
इस भव्य बैठक के सबसे प्रभावशाली क्षण वह था जब डॉ. कुरेले ने ऑक्यूपेशनल हेल्थ पर आधारित जागरूकता सत्र को संबोधित किया। उन्होंने बताया कि आज की कॉर्पोरेट और डिजिटल दुनिया में कैसे लगातार बैठकर काम करने, कंप्यूटर स्क्रीन पर आंखें गड़ाए रखने, मानसिक तनाव और असंतुलित खानपान से बीमारियों का जाल फैल रहा है।
उनके शब्द थे —
“आरोग्यम परमं भाग्यम् — स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा सौभाग्य है, और इसे बचाना आज के युग की सबसे बड़ी चुनौती।”
उपायों की झलक: आयुर्वेद और योग का यथार्थ दर्शन
डॉ. कुरेले ने दैनिक कार्यस्थल के भीतर ही किए जा सकने वाले कुछ प्रभावशाली उपाय सुझाए:
1. त्रिकाल आसन — तीन बार, दिन में 5 मिनट योगासन।
2. त्रिफला जल स्नान — आँखों और चेहरे की थकान मिटाने का सरल तरीका।
3. ब्राह्मी, अश्वगंधा, शंखपुष्पी — मानसिक तनाव को दूर करने की आयुर्वेदिक औषधियाँ।
4. ‘सत्वृत’ सिद्धांत — सदाचार, संतुलित दिनचर्या, और आत्म-नियंत्रण की आयुर्वेदिक जीवनशैली।
उनकी बातों में यह स्पष्ट था कि आयुर्वेद केवल दवा नहीं, बल्कि जीवन जीने की कला है।
प्रतिक्रिया: डीडी कॉलेज का स्टाफ हुआ प्रभावित
सभी शिक्षकों, स्टाफ सदस्यों और विद्यार्थियों ने डॉ. कुरेले के इस प्रेरणादायक सत्र को सराहा। एक शिक्षक ने कहा:
“हमने पहली बार महसूस किया कि स्वास्थ्य की रक्षा केवल दवाओं से नहीं, बल्कि हमारी दिनचर्या, सोच और प्रकृति के साथ सामंजस्य से होती है।”
आयुर्वेदिक पुनर्जागरण की ओर एक कदम
डीडी कॉलेज और डॉ. राजीव कुरेले की यह साझेदारी केवल एक औपचारिक बैठक नहीं, बल्कि उत्तराखंड की युवा पीढ़ी और समाज को आयुर्वेद की अमूल्य थाती से जोड़ने का प्रयत्न है। जिस धरती ने चरक, सुश्रुत, और पतंजलि जैसे आयुर्वेदिक मनीषियों को जन्म दिया, वहां इस तरह के आयोजन एक नव-चेतना का संचार करते हैं।
भविष्य की रूपरेखा: क्या कुछ विशेष होने जा रहा है?
प्रत्येक माह में एक जिला स्तरीय स्वास्थ्य शिविर
कॉलेजों में ‘आयुर्वेदिक लाइफस्टाइल क्लब’ की स्थापना
डिजिटल प्लेटफॉर्म के माध्यम से योग एवं स्वास्थ्य वेबिनार
महिला स्वास्थ्य, किशोरावस्था, बुजुर्गों की देखभाल पर केंद्रित विशेष व्याख्यान
यह पहल एक मॉडल के रूप में उभर सकती है, जहां शैक्षिक संस्थान केवल अकादमिक केंद्र न होकर, जनस्वास्थ्य जागरूकता के मंदिर बन जाएं। इस ऐतिहासिक शुरुआत को सराहते हुए यह विश्वास करता है कि यदि इस प्रयास को सतत और समर्पित भाव से आगे बढ़ाया जाए, तो उत्तराखंड आयुष स्टेट से हेल्थ मॉडल स्टेट बनने की दिशा में अग्रसर हो सकता है।