हरिशंकर सैनी
देहरादून – “रोज़गार मांगने वाले नहीं, देने वाले बनाएं जाएंगे”, यह कोई नारा नहीं, बल्कि एक विज़न है — जो भारत के कोने-कोने में आकार ले रहा है। देश के युवाओं को आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने वाला यह अभियान, स्वदेशी जागरण मंच की ओर से संचालित स्वावलंबी भारत अभियान है। इसकी बागडोर संभाले हुए हैं संगठन के अखिल भारतीय संगठक मंत्री कश्मीरी लाल और विचार विभाग के प्रमुख डॉ. राजीव।
हाल ही में उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष श्रीमती ऋतु खण्डूरी से इस अभियान की प्रान्त टोली ने शिष्टाचार भेंट की और व्यापक चर्चा की। यह भेंट केवल औपचारिकता नहीं थी, बल्कि देश की आत्मनिर्भरता को लेकर गहन चिंतन और कार्यनीति की दिशा में एक अहम कदम थी।
भारत की ज़रूरत: एक नई आर्थिक क्रांति
भारत में युवा वर्ग जनसंख्या का सबसे बड़ा हिस्सा है, लेकिन इसके बावजूद बेरोजगारी की दर चिंता का विषय बनी हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार की कमी और शहरी क्षेत्रों में प्रतिस्पर्धा की अधिकता ने युवाओं के आत्मबल को प्रभावित किया है। ऐसे में एक ऐसे अभियान की आवश्यकता थी जो युवाओं को न केवल रोज़गार प्राप्त करने में मदद करे, बल्कि उन्हें आत्मनिर्भर और नवोन्मेषी बनाए।
स्वावलंबी भारत अभियान की शुरुआत
इस जरूरत को समझते हुए स्वदेशी जागरण मंच ने 21 अगस्त 2022 को “स्वावलंबी भारत अभियान” की शुरुआत की। कोविड-19 लॉकडाउन के बाद यह स्पष्ट हो गया था कि भारत को आत्मनिर्भर बनने की दिशा में तेज़ी से कदम बढ़ाने होंगे। इस अभियान का उद्देश्य स्पष्ट था — युवाओं को उद्यमिता की ओर मोड़ना, उन्हें कौशल आधारित प्रशिक्षण देना, और “रोज़गार ढूंढने वाला नहीं, रोज़गार देने वाला” बनाना।
विधानसभा भेंट: विचार, संवाद और संकल्प
विधानसभा अध्यक्ष श्रीमती ऋतु खण्डूरी से हुई शिष्टाचार भेंट में अखिल भारतीय संगठक मंत्री कश्मीरी लाल के नेतृत्व में एक प्रान्तीय टोली शामिल हुई। इस भेंट में अभियान की गहराई, विस्तार और भविष्य की संभावनाओं पर गंभीर चर्चा हुई।
कश्मीरी लाल ने कहा- : “युवाओं को आत्मनिर्भरता का अर्थ केवल रोज़गार नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माण के संकल्प के साथ समझाया जाएगा। उन्हें बताया जाएगा कि मेहनत और समर्पण ही विकास की असली कुंजी है।”
डॉ. राजीव ने इस अभियान की विचारधारा को सामने रखते हुए कहा:- “भारत में बेरोजगारी की समस्या केवल योजनाओं से नहीं सुलझेगी, इसके लिए सामाजिक चेतना और जनभागीदारी आवश्यक है। स्वावलंबी भारत अभियान इसी दिशा में काम कर रहा है।”
आँकड़ों में आत्मनिर्भरता
यह अभियान केवल बातों तक सीमित नहीं है। इसके प्रभाव को आँकड़ों के माध्यम से भी समझा जा सकता है:
6.5 लाख छात्र-छात्राओं को प्रशिक्षण:
पिछले वर्ष लगभग छह लाख पचास हजार युवाओं को कम से कम ढाई घंटे का विशेष प्रशिक्षण दिया गया।
4000+ संस्थानों में कार्यक्रम:
देशभर के चार हज़ार से अधिक संस्थानों में आयोजित कार्यक्रमों में युवाओं ने सफल उद्यमियों के साथ संवाद किया और प्रोत्साहन पाया।
डिजिटल प्लेटफॉर्म की सहायता:
डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का उपयोग करके भारत सहित विश्वभर के युवाओं को अभियान से जोड़ा गया।
अभियान की कार्यशैली
स्वावलंबी भारत अभियान केवल प्रशिक्षण तक सीमित नहीं है। यह एक समग्र प्रक्रिया है जिसमें निम्नलिखित चरण शामिल हैं:
1. सामुदायिक जागरूकता: ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में नुक्कड़ सभाएँ, संवाद सत्र, और प्रेरक कहानियों के माध्यम से लोगों को जोड़ा जाता है।2. प्रशिक्षण और मार्गदर्शन: छात्रों, बेरोज़गार युवाओं और महिलाओं के लिए विशेष कार्यशालाएँ आयोजित की जाती हैं, जहाँ उन्हें बिज़नेस प्लान बनाना, फाइनेंशियल लिटरेसी, और सरकारी योजनाओं की जानकारी दी जाती है।
3. नेटवर्किंग: स्थानीय उद्यमियों, स्टार्टअप्स और सफल व्यापारियों से सीधे संवाद का अवसर युवाओं को दिया जाता है।
4. नियोजन और नीति: अभियान का लक्ष्य केवल जनजागरूकता नहीं, बल्कि सरकारी स्तर पर “उद्यमिता आयोग” की स्थापना के लिए नीतिगत सुझाव देना भी है।
उत्तराखंड: एक मॉडल राज्य?
उत्तराखंड जैसे राज्य, जहाँ युवाओं में रोजगार की कमी को लेकर चिंता है, स्वावलंबी भारत अभियान के लिए एक आदर्श प्रयोगशाला बन सकते हैं। इसीलिए कश्मीरी लाल ने विधानसभा अध्यक्ष से अनुरोध किया कि उत्तराखंड में उद्यमिता आयोग की स्थापना शीघ्र की जाए, जिससे राज्य के युवा तेज़ी से इस अभियान से जुड़ सकें।
भेंट में शामिल प्रमुख कार्यकर्ताओं में सुशील कुमार (प्रान्त पूर्णकालिक), गौरव कुमार (प्रांत युवा प्रमुख), प्रवीण ममगईं (समन्वयक), हिमांशु त्यागी (संभाग संयोजक), चंद्रकांत तोमर (जिला संयोजक), आशीष पोरवाल (महानगर संयोजक), और सौरभ (महानगर युवा प्रमुख) का योगदान उल्लेखनीय रहा।
जन-जन तक पहुंचता अभियान
यह अभियान केवल शहरों में नहीं, बल्कि गाँवों, कस्बों और दुर्गम पहाड़ियों तक पहुँच चुका है। इसमें महिलाएँ, किसान, कारीगर, छात्र और सेवा निवृत्त सैनिक तक शामिल हो चुके हैं। अभियान की एक विशेषता यह है कि यह न तो किसी सरकारी अनुदान पर टिका है, न ही केवल शहरी युवाओं के लिए है।
“हम हर उस व्यक्ति को जोड़ना चाहते हैं जो कुछ करने की इच्छा रखता है,”
कश्मीरी लाल ने जोर देकर कहा।
चुनौतियाँ और भविष्य
हालांकि यह अभियान कई मायनों में प्रेरणादायक है, लेकिन इसकी राह में चुनौतियाँ भी कम नहीं।
स्थायी वित्तीय सहायता: प्रशिक्षण और नेटवर्किंग की स्थिरता के लिए फंडिंग की आवश्यकता होती है।
सरकारी सहयोग: उद्यमिता आयोग जैसे ढांचे की स्थापना में प्रशासनिक विलंब और राजनीतिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है।
सामाजिक मानसिकता में बदलाव: नौकरी को प्रतिष्ठा और व्यवसाय को जोखिम मानने वाली मानसिकता बदलनी होगी।
एक क्रांति का बीजारोपण
स्वावलंबी भारत अभियान न केवल आर्थिक दृष्टिकोण से, बल्कि सामाजिक और राष्ट्रीय दृष्टिकोण से भी एक क्रांतिकारी पहल है। यह भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में एक सशक्त प्रयास है जिसमें हर नागरिक को भागीदारी की आवश्यकता है।
श्रीमती ऋतु खण्डूरी से हुई भेंट इस दिशा में एक ठोस कड़ी है। अब आवश्यकता है कि केंद्र और राज्य सरकारें इस पहल को संस्थागत रूप दें ताकि यह आंदोलन एक स्थायी बदलाव में परिवर्तित हो सके।
“जब एक युवा आत्मनिर्भर बनता है, तो केवल उसका भविष्य नहीं बदलता — बल्कि राष्ट्र की दशा और दिशा भी बदलती है।”
— स्वदेशी जागरण मंच टीम
-हरिशंकर सैनी, प्रान्त संगठन मंत्री, अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत, उत्त्ताराखंड प्रान्त