कल्चरल हेरिटेज के साथ नेचर हेरिटेज का भी संरक्षण -स्वामी चिदानन्द सरस्वती

अतीत का संरक्षण ही भविष्य की समृद्ध धरोहर
कल्चरल हेरिटेज के साथ नेचर हेरिटेज का भी संरक्षण
-स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश, । परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने आज संदेश दिया कि अतीत का संरक्षण ही भविष्य की समृद्ध धरोहर है। भारत के पास अतीत का दर्शन, संस्कृति, संस्कार और परम्पराओं के रूप में एक समृद्ध धरोहर है; एक अद्वितीय विरासत है, जिसके आधार पर सुखद भविष्य का निर्माण किया जा सकता है।

स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भारत की सांस्कृतिक पहचान और संस्कार रूपी समृद्ध धरोहर अंगीकार कर एक उज्वल भविष्य के निर्माण के साथ ही हम उसे जीवंत और जाग्रत बनाये रख सकते हैं। हमारी संस्कार रूपी धरोहर पीढ़ियों से चली आ रही है और इन दिव्य संस्कारों को हम एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित हैं। चाहे हम भारत भूमि में हो या फिर पश्चिम की धरती पर हो इन दिव्य संस्कारों से अपने परिवारों को पोषित करते रहे ताकि आध्यात्मिक, धार्मिक, सामाजिक महत्त्व के साथ भारतीय समाज का संस्कार युक्त ताना-बाना हमेशा बना रहे।
स्वामी जी ने कहा कि भारत की धरोहर अपने आप में विभिन्न संस्कारों, समुदायों, रीति-रिवाजों, परंपराओं, धर्मों, संस्कृतियों, आस्थाओं, भाषाओं, और सामाजिक व्यवस्थाओं का एक वृहद संग्रहालय है तथा विविधता में एकता और सहिष्णुता इस संग्रहालय को समृद्धि प्रदान करती है।
स्वामी जी ने कहा कि संस्कार रूपी धरोहर के संरक्षण के लिये हमें भावी पीढ़ियों को संस्कारों से पोषित करना होगा। साथ ही जो हमारे धरोहर स्थल है; हमारी आस्था और विश्वास के केन्द्र है उनका संरक्षण करने के लिये हमें प्रदूषण को कम करना होगा, ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन को रोकना होगा और इसके लिये हमें व्यवहार परिवर्तन करना होगा। साथ ही हमें अपने कल्चरल हेरिटेज के साथ नेचर हेरिटेज पर भी विशेष ध्यान देना होगा।
स्वामी जी ने कहा कि हम अपने स्मारकों, विरासतों और ऐतिहासिक स्थलों का पुनरुद्धार तो कर सकते हैं परन्तु जल, जमीन और प्राकृतिक संसाधनों का पुनरूद्धार नहीं कर सकते उनका केवल संरक्षण और सुव्यवस्थित रूप से उपयोग किया जा सकता है जिसके लिये हम सभी को प्रतिबद्ध होना होगा।
उन्होंने कहा कि भारत में भूजल स्तर में गिरावट मुख्य रूप से चिंतन का विषय है क्योंकि यह पेयजल का प्राथमिक और सुलभ स्रोत है। हम अपने उपयोग किये जाने वाले कुल जल का लगभग 70 प्रतिशत भूजल स्रोतों से प्राप्त करते हैं। भूजल की कमी और जल प्रदूषण न केवल भारत बल्कि पूरे विश्व के लिये एक गंभीर समस्या है इसलिये इस पर विशेष रूप से ध्यान देने की जरूरत है, नही ंतो भविष्य में जल की कमी संघर्ष की स्थिति को जन्म दे सकती है।
स्वामी जी ने कहा कि वर्तमान समय की सबसे बड़ी जरूरत है कि हम भावी पीढ़ियों को जल संबंधी शिक्षा और जागरूकता के साथ जल संरक्षण के महत्त्व और भूजल के बारे में जागरूकता बढ़ाये क्योंकि जल है तो कल है।