महात्मा ज्योति राव फूले सामाजिक क्रांति के अग्रदूत

पुण्यतिथि पर विशेष

देवेंद्र सैनी देव
बिजनौर। हिंदुस्तान की धरती पर समय-समय पर अनेक संत मनीषी क्रांतिकारी चिंतक तथा समाज सुधारक हुए हैं जिनकी प्रतिभा आज भी स्मरणीय है महात्मा ज्योति राव फूले सामाजिक क्रांति के एक ऐसे अग्रदूत हैं जिन्हें युग सदैव याद रखेगा। ज्योति राव फुले का जन्म महाराष्ट्र प्रांत के पुणे मैं 11 अप्रैल सन 1827 को हुआ था यह पिछड़ी जाति माली कुल में पैदा हुए थे यह कुशाग्र बुद्धि के थे पढ़ाई में हमेशा प्रथम आते थे सामाजिक चिंतन इनके मन में हमेशा रहता था सामाजिक ताने-बाने से यह दुखी रहते थे गरीब अमीर ऊंच-नीच की मानव कृत दीवारें इन्हें तुच्छ लगती थी धर्म के ढंग को मिटाकर मानव वादी समतामूलक समाज निर्माण की जहां मन में जगी ब्राह्मण मित्र की बारात में मिला अपमान ने आग में घी का काम किया ज्योतिबा ने ब्राह्मणवादी व्यवस्था को समाप्त करने का संकल्प लिया वर्ण के स्थान पर वर्ग पर आधारित समाज निर्माण का शुभारंभ किया सन 1848 में ज्योतिबा अपने ब्राह्मण सहपाठी सुखराम परांजे के विवाह में सम्मिलित हुए बारात जब सज धज कर वधू के निवास की ओर चली मित्र मंडली के साथ साथ यह भी आगे बढ़े इनके आकर्षण प्रभावशाली और तेजस्वी व्यक्तित्व से जलने वाले कुछ कट्टरवादी ब्राह्मण आग बबूला हो गए। जातीय भेदभाव के प्रबल समर्थक ब्राह्मणों ने इनसे कहा की बारात से वापस चले जाओ और अपने घर जाकर फूल माला बनाओ पंडितों का धर्म भ्रष्ट करने क्यों आए हो। इस सार्वजनिक सामाजिक अपमान से ज्योतिबा हतप्रभ रह गए मन में अनेक विचार उठे आंखें लाल हो गए खून खौल उठा बारातियों के जम्मू घट में अकेले क्या करते अपमान का घूंट पीकर वापस आ गए उनकी व्यथा सुनकर पिता ने समझाया तुम्हारे साथ तो कुछ नहीं हुआ है थोड़ी सी भूल के लिए पुणे के ब्राह्मणों द्वारा शुद्र को हाथी पांव तले कुचलते देखा गया है वर्ण व्यवस्था के अनुसार समाज में ब्राह्मणों का ऊंचा स्थान है वे धर्म के केंद्र बिंदु है दलितों के लिए पढ़ना अच्छा भोजन करना और अच्छा वस्त्र पहनना मना है पेशवा काल में पुना की इन्हीं गलियों से गुजरते हुए हैं अछूतों को गले में हांडी और कमर में कटीली झाड़ी बांध दी जाती थी तथा चलते समय उन्हें आवाज लगानी पड़ती थी अथवा घंटी बजाने पढ़ती थी जिससे कि स्वर्ण संभल जाए अंग्रेजों के आगमन के बाद भी समाज में ब्राह्मणों का वर्चस्व बरकरार रहा इन सब बातों ने ज्योतिबा को झकझोर दिया उन्हें राजनीतिक गुलामी से अधिक जानलेवा सामाजिक विषमता लगी क्योंकि राजनीतिक गुलामी कष्ट करो तिथि पर उसकी सीधी आज आम आदमी पर नहीं आती सामाजिक विषमता की आग तो आदमी को जिंदा जला दी है उसकी आत्मा को तिल तिल कर मारती है ऐसा लगता है कि शूद्र अछूत का जन्म गुलामी करने के लिए हुआ है गरीब अशिक्षित एवं गुलाम के रूप में रहना उसी प्रकार मर जाना उसकी नियति है।
ज्योतिबा समस्त दुख गांव का मूल कारण अन्याय को मानते थे उन्होंने समाज सुधार का प्रथम कदम शिक्षा प्रसार के रूप में उठाया उन्होंने शुद्र अछूतों के लिए शिक्षा के द्वार खुले सभी को पढ़ने के लिए प्रेरित किया इसके लिए उन्हें तमाम बाधाओं झंझा वतो परेशानियों को झेलना पड़ा । ज्योतिबा फुले सामाजिक क्रांति के अग्रदूत के रूप में चिर स्मरणीय है उन्होंने दलितों तथा पिछड़ी जाति की लड़कियों के लिए कन्या पाठशाला की स्थापना कर शिक्षा का द्वार सर्वसाधारण के लिए खोल दिया इस पाठशाला का उच्च वर्ग के लोगों ने बड़ा विरोध किया और पिता ने उन्हें घर से भी निकाल दिया अपनी धुन में लगन के पक्के ज्योति राव फूले निरंतर सामाजिक कामों में लगे रहे उन्होंने अपना सार्वजनिक जीवन अछूतों के माध्यम से प्रारंभ किया अछूतों के बच्चों के लिए उन्होंने पाठशाला प्रारंभ की सरकार से भूखंड तथा विद्यालय हेतु सहायता प्राप्त की वह जाति पाति वर्ग भेद तथा छुआछूत के विरोधी थे वह अछूतों के बीच में जाकर बुद्धिमान युवकों को समाज सेवा के लिए प्रेरणा देते थे उनकी कथनी और करनी में कोई अंतर नहीं था महात्मा बुद्ध के समान मानव के उद्धार का कार्य ज्योतिबा फुले ने किया इसलिए उन्हें महात्मा कहना उचित होगा शिक्षा के क्षेत्र में ज्योतिबा ने जितना कार्य किया किसी अन्य ने नहीं जिस समय प्रोड शिक्षा का प्रचलन भी नहीं हुआ था उस समय ज्योतिबा तथा उनकी पत्नी सावित्रीबाई ने अपने निवास स्थान पर साईं कालीन पाठशाला प्रारंभ की किसानों मजदूरों ऐसे क्षेत्र शुद्र तथा उनकी पत्नियों को निशुल्क शिक्षा दी जाती थी ज्योतिबा लीक और परंपरा से हटकर कुछ नया करने वाले देश के मूर्तिमान अनुरागी व्यक्ति थे वह जानते थे कि शिक्षा के माध्यम से जड़ता कुरीतियां दूर की जा सकती है इसलिए शिक्षा का उन्होंने सर्वाधिक प्रचार व प्रसार किया। ज्योतिबा समस्त दुख विपदाएं का मूल कारण अन्याय को मानते थे उनके मन में यह धारणा दृढ़ होती गई की मनुष्य को राजनीतिक स्वतंत्रता से कहीं अधिक आवश्यकता सामाजिक स्वतंत्रता की है जिस को दूर करना हमारा पहला कर्तव्य है उनका मन हाहाकार कर उठा और उन्होंने इन बुराइयों को दूर करने का हर संभव जीवन पर्यंत कार्य किया अपने इन्हीं कार्य के कारण जनता ने उन्हें महात्मा कहना शुरू कर दिया समाज के इस काटो भरे मार्ग पर चलते हुए ज्योतिबा का शरीर दिन प्रतिदिन 69 होता चला गया पक्षाघात की बीमारी के कारण व लेखन कार्य बाएं हाथ से करते रहे अज्ञान व सामाजिक बुराइयों से जीवन पर्यंत लड़ने वाला ज्योतिबा की ज्योति 28 नवंबर 1890 को अनंत में विलीन हो गई जन जन का साथी उठ गया तीनों ने अपना शुभचिंतक खो दिया देशहित के महान यज्ञ में एक महत्वपूर्ण आहुति का स्वाहा कार हुआ देश का एक सच्चा महात्मा चला गया भारत माता एक सच्चे सपूत से वंचित हो गई
देवेंद्र सैनी देव