पर्व और प्रदूषण, गंदगी और बंदगी साथ-साथ नहीं चल सकते -स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ब्रजवासियों का त्यौहार विश्ववासियों का त्यौहार बने  
पर्व, पर्यावरण और प्रकृति का सामंजस्य है अन्नकूट
पूजा और पर्यावरण साथ-साथ लेकर चले
पर्व और प्रदूषण, गंदगी और बंदगी साथ-साथ नहीं चल सकते
-स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश, 26 अक्टूबर। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने देशवासियों को गोर्वधन पूजा, अन्नकूट महोत्सव और भाईदूज की शुभकामनायें देते हुये कहा कि पूजा और पर्यावरण साथ-साथ लेकर चलना होगा क्योंकि पर्व और प्रदूषण, गंदगी और बंदगी साथ-साथ नहीं चल सकते।
परमार्थ निकेतन में आज धूमधाम से गोवर्धन पूजा और अन्नकूट महोत्सव मनाया गया। स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि गोवर्धन पूजा में गोधन अर्थात गायों और गौवंश की पूजा की जाती है। गौ माता उसी प्रकार पवित्र है जैसे नदियों में माँ गंगा। शास्त्रों में गौ माता को देवी लक्ष्मी का स्वरूप भी कहा गया है। देवी लक्ष्मी जिस प्रकार सुख समृद्धि प्रदान करती हैं उसी प्रकार गौ माता भी अपने दूध से स्वास्थ्य रूपी धन प्रदान करती हैं और गौवंश खेतों में अनाज उगाता है इसलिये कार्तिक शुक्ल पक्ष प्रतिपदा के दिन गोर्वधन की पूजा की जाती है।
स्वामी जी ने कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन को उठाने के लिये सभी से सहयोग का आह्वान किया उसी प्रकार अब समय आ गया है कि हम सभी अपने टाईम, टैलेंट, टेक्नालाॅजी और टेनासिटी से आगे बढ़े और इस धरा को प्रदूषण मुक्त करने में सहयोग प्रदान करें। स्वामी जी ने कहा कि गोवर्धन सहित अन्य पर्वतों को बचाना है तो हमें अधिक से अधिक पौधों का रोपण करना होगा।
स्वामी जी ने बताया कि आज से 33 वर्ष पूर्व गोवर्धन तीर्थ के संरक्षण के लिये पूज्य महामंडलेश्वर गुरूशरणानन्द जी महाराज, पूज्य भाई श्री और अन्य पूज्य संतों के मार्गदर्शन में एक ट्रस्ट बनाया गया था जिसके माध्यम से हम सभी ने मिलकर गोवर्धन की तलहटी के विकास और संरक्षण के लिये अनेकों योजनायें बनायी गयी और कार्य प्रारम्भ हुआ व सेवा का कार्य तीव्र गति से आगे बढ़ता गया। साथ ही अनेकों पौधों का रोपण किया और अब वे पौधें चारों ओर हरियाली फैला रहे हैं। हमें ज्ञात होना चाहिये कि वृक्ष है तो हम है, वृक्ष है तो वायु है और वायु है तो आयु है इसलिये नूतन संकल्पों के साथ अपने पर्वों और त्यौहारों को मनायें।
स्वामी जी ने गोवर्धन पूजा का महत्व बताते हुये कहा कि भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों को मूसलधार वर्षा से बचाने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी सबसे छोटी उँगली पर उठाकर रखा और गोप-गोपिकाएँ उसकी छाया में छः दिनों तक सुखपूर्वक रहे। सातवें दिन भगवान श्री कृष्ण ने गोवर्धन को नीचे रखा और तब से प्रतिवर्ष गोवर्धन पूजा करके अन्नकूट महोत्त्सव मनाने की आज्ञा दी। तभी से यह उत्सव अन्नकूट के नाम से मनाया जाने लगा।
स्वामी जी ने कहा कि भाई दूज पर्व भी रक्षाबंधन की भांति भाई-बहन के आपसी प्रेम और स्नेह का प्रतीक है। इस दिन बहन अपने भाई के माथे पर टीका लगाती हैं, उनकी आरती उतारती है और लंबी उम्र की कामना करती हैं। आईये गोवर्धन पूजा, अन्नकूट महोत्सव और भाईदूज  के अवसर पर विश्व शान्ति और समृद्धि की प्रार्थना करें।