स्व-सहायता समूह से जुड़कर महिलाएं लिख रही हैं कामयाबी की नई इबारत

 

स्व-सहायता समूह से जुड़कर महिलाएं लिख रही हैं कामयाबी की नई इबारत

इन्दौर : ना परिवेश समर्थन करता था और ना अच्छी पढ़ाई मिली थी, बावजूद इसके गांव की गलियों से निकली महिलाएं कामयाबी की इबारत लिख रही हैं। सामाजिक बंधन होने के उपरांत भी आगे बढ़ने के जज्बे ने इंदौर निवासी माया को आजीविका मिशन से जुड़कर स्वावलंबी बनने की दिशा प्रदान की।

माया बताती है कि उनका जन्म एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके परिवार की आर्थिक स्थिति खराब होने के कारण वे ज्यादा पढ़ाई नहीं कर पाई। शादी के बाद वे अपने परिवार का भरण-पोषण करने के लिए रोज मजदूरी करने जाती थी। परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत ही खराब थी, छोटी-छोटी आवश्यकताओं के लिये भी वह बहुत परेशान होती थी।

उन्होंने बताया कि एक दिन उनके गाँव में आजीविका मिशन के समूह बनाने के लिए अन्य गाँव से सीआरपी आई थी और इसके बाद उनके गांव की महिलाओं ने मिलकर एकता आजीविका स्व-सहायता समूह गठित किया। इस समूह की अध्यक्ष माया को बनाया गया। इस प्रकार माया समूह से जुड़कर सिलाई का कार्य करने लगी। इससे हुए मुनाफे से उन्होंने एक दुकान खोली और दुकान में साड़ी और कटलरी का सामान बेचने लगी। उन्होंने बताया कि मध्यप्रदेश शासन के निर्देश अनुसार उनके समूह का बैंक लिंकेज भी कराया गया। बैंक से प्राप्त ऋण से उन्होंने मुर्गी पालन फार्म तैयार किया और इसके बाद पशुपालन विभाग से उन्हे 450 मुर्गी के बच्चे मिले, उसकी भी देखरेख माया द्वारा की जाती है। मुर्गी पालन व दुकान के संचालन से माया की आर्थिक स्थिति में कई गुना ज्यादा सुधार आया। माया बताती है कि उन्हें साड़ी की दुकान, मुर्गी पालन और मनहारी दुकान से प्रति माह लगभग 21 हजार रूपये का मुनाफा हो रहा है।  वे पहले घर से बाहर नहीं जाती थी अब वे पंचायत, बैंक, जनपद और अन्य मिटिंग में भी जाती है और घर वाले भी अब मना नहीं  करते है। आजीविका मिशन से उनके परिवार की आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति में जो सुधार आया है उसके लिए वह मध्यप्रदेश सरकार को धन्यवाद करती हैं।

 पूजा थापक