स्वस्थ तन और प्रफुल्लित मन का मूल मंत्र है योग स्वामी चिदानन्द सरस्वती

परमार्थ निकेतन में क्रिया योग प्रशिक्षण शिविर का समापन
 
मनुष्य एवं प्रकृति के बीच परिपूर्ण सामंजस्य का सूत्र है योग
 
स्वस्थ तन और प्रफुल्लित मन का मूल मंत्र है योग
स्वामी चिदानन्द सरस्वती
 

ऋषिकेश, । परमार्थ निकेतन में आयोजित क्रिया योग प्रशिक्षण शिविर का समापन हुआ। क्रिया योग शिविर के समापन अवसर पर योग जिज्ञासुओं ने परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी से भेंट कर आशीर्वाद लिया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि जब आप माँ गंगा के तट और हिमालय की गोद में आकर योग का प्रशिक्षण लेते हैं तो न केवल आप योग को जानते है बल्कि उसे जीते भी है। योग, केवल क्षण मात्र का अनुभव नहीं है बल्कि चारों पहर की अनुभूति है। योग हमें स्वस्थ तन और प्रफुल्लित मन का दिव्य मंत्र सिखाता है।
स्वामी जी ने कहा कि योग का ‘फोल्डिंग हैंड लोगो’ हाथों की यह मुद्रा सार्वभौमिक चेतना के साथ व्यक्तिगत चेतना के मिलन का संदेश देती है। आत्मा एवं परमात्मा, मन एवं शरीर, मनुष्य एवं प्रकृति के बीच एक परिपूर्ण सामंजस्य, सभी के स्वस्थ जीवन और कल्याण के लिये एक समग्र दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति कराती है। साथ ही शरीर के किसी हिस्से में दर्द हो या फिर मानसिक तनाव इन सभी को बिना किसी नकारात्मक प्रभाव के ठीक करने में योग एक बहेतर विकल्प है।
योगाचार्य साध्वी आभा सरस्वती जी ने बताया कि क्रिया योग ध्यान की एक प्राचीन तकनीक है, जिससे हम प्राण शक्ति और अपने श्वास को नियंत्रण में ला सकते हैं। क्रिया योग का अभ्यास एक व्यापक आध्यात्मिक तकनीक और जीवन का हिस्सा भी है, जिसे सात्विक जीवन शैली अपनाकर आत्मसात किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि हमारे जीवन के चार आयाम हैं – भाव, बुद्धि, शरीर और ऊर्जा। योग जब भावों से जुड़ता है तो भक्ति योग का मार्ग प्रशस्त होता है, योग जब बुद्धि से जुड़ता है तो जीवन में ज्ञान की वृद्धि होती है, योग जब शरीर से जुड़ता है तो शारीरिक स्वास्थ्य प्राप्त होता है और योग जब आसनों के रूप में किया जाता है तब जीवन में ऊर्जा का प्रादुर्भाव होता है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने सभी योग साधकों को जल संरक्षण और प्लास्टिक मुक्त जीवन जीने का संकल्प कराया।