मर्म चिकित्सा में 107 केन्द्रों का उपयोग किया जाता है, जो हमारे शरीर और चेतना के द्वार है: डॉ नवीन जोशी
योग प्रशिक्षण शिविर के तृतीय दिवस बच्चों ने सीखे मर्म चिकित्सा व विभिन्न आसन
देहरादून , अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत एवं डीडी कॉलेज के संयुक्त तत्वाधान में योग प्रशिक्षण शिविर का आयोजन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ माधव शाखा राजकीय इंटर कॉलेज खुडबुडा देहरादून में किया गया। बच्चों ने विभिन्न असान सीखे और स्वास्थ्य लाभ के गुर जाने। शिविर के तृतीय दिवस का शुभारंभ उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ नवीन जोशी जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ माधव शाखा रामनगर देहरादून के शाखा कार्यवाह श्री वीरेंद्र गोयल जी और अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत उत्तराखंड प्रांत संगठन मंत्री हरिशंकर सिंह सैनी और योगाचार्य हरविंदर सिंह
ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर किया।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ नवीन जोशी जी ने बच्चों को बताया कि मर्म चिकित्सा में 107 केन्द्रों का उपयोग किया जाता है, जो की हमारे शरीर और चेतना के द्वार हैं। हमारा मन 108वां मर्म विंदु है।
डॉ जोशी ने कहा कि हमारें शरीर के 107 विंदु मुख्य मर्म से सम्बंधित है और हमारे शरीर में ऊर्जा के केंद्र हैं; जबकि गौण केंद्र धड़ और उसके चारों ओर फैले हुए है। इन विन्दुओं का आकार एक से छः इंच व्यास तक होता है। इन विन्दुओ के प्रारूप को विस्तारपूर्वक सदियों पूर्व आयुर्वेद के महान ग्रन्थ सुश्रुत संहिता में बताया गया है।
उन्होंने कहा कि मर्म चिकित्सा से उपचार करते ही कई मरीजों की तकलीफ में तुरंत आराम मिलता है तो कई मरीजों को काफी हद तक लगातार उत्प्रेरण से फायदा पहुंचता है । चलने-फिरने में असमर्थ वर्षों से बिस्तर पर लेटकर जिंदगी काट रहे रोगियों में मर्म बिंदुओं को उत्प्रेरित करने से लाभ मिलता है। कई मामलों में तो चमत्कार ही हुआ है। पिछले बीस वर्षों से पैरों में दर्द से परेशान थीं और चलने-फिरने में असमर्थता लोग पूर्ण से,मर्म चिकित्सा से ठीक हो जाते हैं यह चिकित्सा कई स्तरों पर कार्य करती है जैसे- शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक एवं आध्यात्मिक साथ ही यह शरीर में असाधारण बदलाव लाती है।
डॉ. नवीन जोशी जी ने बताया कि हमारी आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति आदिकाल से आज तक निरापद रूप से मानवजीवन को खुशहाल बनाती आई है। आज भी इसका उतना ही महत्व है जितना कि आदिकाल में था। हमारे ऋषियों ने अथक परिश्रम कर शरीर के विभिन्न रोगों के स्थाई निदान खोजे हैं।आज भी परंपरागत रूप से रोगों का इलाज किया जा रहा है, जो बहुत लाभकारी सिद्ध हुआ है। हमारी परंपरागत चिकित्सा पद्धति हमारे शरीर को बीमारियों से दूर रखती है। बीमारी होने पर उसकी तह तक जाकर निदान के तरीके अपनाती है। शरीर के दर्दों से मुक्ति पाने के लिए यह सबसे सुरक्षित चिकित्सा पद्धति है।
उन्होंने बताया कि मर्म चिकित्सा वास्तव में अपने अंदर की शक्ति को पहचानने जैसा है। डॉ जोशी का कहना है कि शरीर की स्वचिकित्सा शक्ति (सेल्फ हीलिंग पॉवर) ही मर्म चिकित्सा है। मर्म चिकित्सा से सबसे पहले शांति व आत्म नियंत्रण आता है और सुख का अहसास होता है।
इस अवसर पर योगाचार्य हरमिंदर जी, व योगाचार्य श्रीमती सुमन चौहान जी , के द्वारा बच्चों को योग के प्रारंभिक आसनों और प्राणायामों से अवगत कराया गया। शिविर में प्रशिक्षुओं को प्राणायाम, नौकासन, हलासन, सर्वांगासन,पद्मासन,भुजंगासन,पर्वतासन, सूर्य नमस्कार, ताड़ासन, भस्त्रिका प्राणायाम, कपाल भाति, अनुलोम-विलोम सहित अन्य योग आसनों का अभ्यास कराया गया।
इस मौके पर योगाचार्य सुमन चौहान ने कहा कि सभी लोगों में योग के प्रति जागरूकता की आवश्यकता है। उन्होंने सभी बच्चों से तन-मन को स्वस्थ रखने के लिए अपनी दिनचर्या में योग को अनिवार्य रूप से शामिल करने का आव्हान किया।
इस अवसर पर सुमन चौहान, सेवा प्रमुख राजकुमार शर्मा , सावन कुमार , वीरेंद्र गाेयल ,हर्ष और छात्र आदि उपस्थित रहे।