मेरी माँ………..

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मेरी माँ………..

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काला टीका लगा गाल पर ,
सब कुछ वारा करती थी ।
मुझे याद है मेरी माँ नित ,
नजर उतारा करती थी ।।

अपनी नींदें सदा भरी थीं ,
माँ ने मेरी आँखों में ।
दु:ख सहकर नित भरी सुखों की ,
कलियाँ जीवन साखों में ।‌।

मेरी मुस्कानों पर दु:ख माँ ,
सदा विसारा करती थीं ।
मुझे याद है मेरी माँ नित ,
नजर उतारा करती थीं ।।

सहकर चुभन सदा कलियाँ ही ,
लाई थी चुन-चुनकर माँ ।
भरतीं थीं नयनों में मेरे ,
सपने नित बुन-बुनकर माँ ।।

आशीषों से सभी बलायें ,
सदा किनारा करतीं थीं ।
मुझे याद है मेरी माँ नित ,
नजर उतारा करतीं थीं ।।

कठिन घड़ी में सदा छुपाती ,
आँचल की छाया में माँ ।
कितना बल भर देती थी वो,
कोमल सी काया में माँ ।।

आँचल से जीवन पथ मेरा ,
सदा बुहारा करती थी ।
मुझे याद है मेरी माँ नित ,
नजर उतारा करती थी ।।

तम में रहकर मुझे सदा ही ,
किरणों का पथ मधुर दिया ।
हाथ थामकर सोपानों में ,
चढ़ा विजय का शिखर दिया ।।

नवल भोज दे सूखी में माँ ,
सदा गुजारा करती थी ।
मुझे याद है मेरी माँ नित ,
नजर उतारा करती थी ।।

पग में चालें भरीं उसी ने ,
रसना में थे बोल भरे ।
उर में आदर,करुणा,पूजन ,
रतन बड़े अनमोल भरे ।।

विजय दिलाने मुझे जगत में ,
सब कुछ हारा करती थी ।
मुझे याद है मेरी माँ नित ,
नजर उतारा करती थी ।।

विद्यालय में भेज मुझे नित ,
मुदित बहुत होती थी माँ ।
चोट लगे यदि गिर जाने पर ,
पीड़ा में रोती थी माँ ।।

तिलक लगा माथे पर मेरे ,
सदा निहारा करती थी ।
मुझे याद है मेरी माँ नित ,
नजर उतारा करती थी ।।

माँ ने माँ का ताज जगत में ,
सर्वोत्तम निर्माण किया ।
सुत की बाधाओं को चीरे ,
आँचल का वो बाँण दिया ।।

देवालय में मेरे हित ही ,
सदा पुकारा करती थी ।
मुझे याद है मेरी माँ नित ,
नजर उतारा करती थी ।।

काला टीका लगा गाल पर ,
सब कुछ वारा करती थी ।
मुझे याद है मेरी माँ नित ,
नजर उतारा करती थी ।।‌

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©️डा० विद्यासागर कापड़ी

सर्वाधिकार सुरक्षित

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मातृ दिवस की आप सभी
मित्रों को बहुत-बहुत शुभकामनाएं ।।

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