25 फरवरी, ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि हमारी सोच और विचार जितने श्रेष्ठ और उन्नत होगे है, उतना ही उच्च हमारा प्रत्यक्ष अनुभव होगा और वैसे ही हमारे भविष्य का निर्माण होता है।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि भारतीय जीवन पद्धति न केवल सहिष्णुता बल्कि सभी धर्मों को सत्य रूप में स्वीकार करने में विश्वास रखती है। हमारी संस्कृति आपसी संघर्ष की नहीं बल्कि सहयोग और मतभेद नहीं बल्कि सद्भाव व शांति का संदेश देती है। भारतीय संस्कृति हमारी श्रेष्ठ और समृद्ध धरोहर है जिसके संरक्षण और संवर्धन की जिम्मेदारी हम सब को लेनी होगी और इसके लिये आपसी समझ और संबंधों को बढ़ाना होगा।
स्वामी जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति ने हमेशा से ही एकता, अखंडता और सद्भाव का संदेश वैश्विक स्तर पर प्रसारित किया है। प्रकृति के स्वच्छन्द वातावरण में पुष्पित-पल्लवित भारतीय संस्कृति, सांस्कृतिक विविधताओं के साथ न केवल गाँवों में बल्कि शहरों में भी जीवंत और जाग्रत बनी हुई है।
स्वामी जी ने कहा कि भारतीय संस्कृति आंतरिक शुद्धता एवं नैतिकता के सिद्धांत पर आधारित है। नैतिकता की शिक्षा और संस्कारों के माध्यम से हम अपने बच्चों को एक अच्छा नागरिक बनने में मदद कर सकते है। उन्होंने कहा कि युवाओं को अपनी सफलता के लिये समर्पण भाव को बढ़ाना होगा तथा भविष्य की चुनौतियों से निपटने के लिये स्वंय को तैयार रहना होगा। युवाओं को आत्मनिर्भर बनने तथा चुनौतियों से निपटने के लिये स्वयं को सक्षम बनाना होगा और इसके लिये भारतीय संस्कृति और संस्कार अत्यंत मददगार है।
भारतीय संस्कृति समर्पण की संस्कृति है; स्वयं को तलाशने; तराशने तथा स्वयं से वयं तक की यात्रा की संस्कृति है। यह स्नेह, संयम, संकल्प, समर्पण, सेवा, साधना और सृजन सप्त पिलरों पर आधारित है। इस सात स्तंभों के साथ जीवन की यात्रा आरम्भ करें तो यह खुद को तलाशने, खुद को तराशने के साथ खुद को बेहतर करते हुये जीवन को बेहतर बना देगी।
वर्तमान समय में भारतीय समाज को जरूरत है कि वह अपनी प्राचीन गौरवशाली विरासत तथा सांस्कृतिक धरोहर को आत्मसात कर उसकी सुदृढ़ नींव पर नए मूल्यों व नई संस्कृति को विकसित करें। प्राचीन मूल्यों को सहेजें; सवारें और आध्यात्मिकता एवं वैज्ञानिकता के महासंगम से सार्वभौमिक एकता और शान्ति का निर्माण करने वाली संस्कृति को विकसित करें।