प्रकृति की खूबसूरती को बनाये रखने का संदेश बसंत को ऋतुओं का राजा – स्वामी चिदानन्द सरस्वती

बसंत पंचमी की शुभकामनायें
प्रकृति की खूबसूरती को बनाये रखने का संदेश
बसंत को ऋतुओं का राजा – स्वामी चिदानन्द सरस्वती

ऋषिकेश, 16 फरवरी। आज बसंत पंचमी के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन माँ गंगा के पावन तट पर वेदमंत्रों से बसंत पंचमी पूजन व माँ सरस्वती जी को पुष्पहार अर्पित कर सम्पूर्ण भारत की समृद्धि हेतु प्रार्थना की।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने देशवासियों को सरस्वती पूजा और बसंत पंचमी की शुभकामनाएँ देते हुये कहा कि विद्या और ज्ञान की देवी मां सरस्वती सभी के जीवन से अज्ञान को दूर करें और सभी को ज्ञान और विचारशीलता का आशीर्वाद प्रदान करें। माँ सरस्वती सभी के जीवन में ज्ञान, उल्लास, उमंग, दिव्यता और शान्ति की दिव्य तरंगों का संचार करें।
स्वामी जी ने कहा कि ’’बसंत ऋतु को ऋतुओं का राजा कहा गया है। बसंत पंचमी के आते ही प्रकृति मंे फूलों खिलने लगते है और नई फसल का आगमन होने लगता है। बसंत के अवसर पर प्रकृति की खूबसूरती अपने चरम पर होती है उसी खूबसूरती को बनाये रखने के लिये हम सभी मिलकर प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण हेतु अपना योगदान प्रदान करें।
स्वामी जी ने कहा कि बसंत आता है तो बहार लाता है; बसंत आता है तो प्रकृति अपने अद्भुत रंग बिखेरती है जिससे चारों ओर हरियाली और खुशहाली बिखर जाती है। हम भी अपने जीवन को कुछ ऐसा बनाये कि किसी के काम आयें और किसी के जीवन का उजाला बनंे। हमारा जीवन व शरीर केवल हमारा नहीं है बल्कि इसके निर्माण में हमारे पूर्वजों, माता-पिता, आने वाली पीढ़ियों के साथ समाज और प्रकृति का भी महत्वपूर्ण योगदान है। हमें अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिये प्रकृति, समाज और पूरे ब्रह्मांड पर निर्भर रहना पड़ता है उसी प्रकार अगर हमारे द्वारा कोई सकारात्मक कार्य किया जाता है तो उसका प्रभाव भी पूरे ब्रह्मांड पर पड़ता है इसलिये हम स्वस्थ व आनंदित रहें और पूरे ब्रह्मांड को भी स्वस्थ एवं आनंदित रखें यही बसंत पंचमी हमें संदेश देती है।

बसंत पंचमी का पर्व हिंदू धर्म में विशेष महत्व रखता है. इस दिन मां सरस्वती की पूजा-उपासना करने का विधान है. विद्या और ज्ञान की देवी मां सरस्वती को इस दिन पीले रंग के वस्त्र, पीले पुष्प, पीले रंग का भोग आदि चीजें अर्पित की जाती हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सृष्टि की रचना होने के बाद सभी जीव पृथ्वी पर वास कर रहे थे, लेकिन चारों ओर सन्नाटा पसरा हुआ था. इस वजह से ब्रह्मा जी ने वाणी की देवी मां सरस्वती का आह्वान किया, तब मां सरस्वती प्रकट हुईं. माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को माता सरस्वती का प्रकाट्य हुआ था, उस दिन वसंत पंचमी थी. इस वजह से हर वर्ष वसंत पंचमी पर सरस्वती पूजा की जाती है। मां सरस्वती जी की कृपा से ही जीवों को स्वर प्राप्त हुआ, उन्हें वाणी मिली. सभी बोलने लगे. सबसे पहले मां सरस्वती के वीणा से ही संगीत के प्रथम स्वर निकले. वीणावादिनी मां सरस्वती कमल पर आसिन होकर हाथों में पुस्तक लेकर प्रकट हुई थीं. इस वजह से मां सरस्वती को ज्ञान एवं वाणी की देवी कहा जाता है.